बिहार: ग्रामीण इलाकों में कोविड टीकाकरण की राह आसान नहीं है

कोविड टीकाकरण को लेकर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच बहुत गहरी खाई है. बिहार के अररिया और पूर्णिया ज़िलों में विभिन्न अफ़वाहों और भ्रामक जानकारियों चलते ग्रामीण टीका नहीं लगवाना चाहते हैं. टीका न लगवाने की अन्य वजहें जागरूकता की कमी, शैक्षणिक-सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के साथ सरकारी अनदेखी भी है.

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Health workers collect personal data from a man as they prepare a list during a door-to-door survey for the first shot of COVID-19 vaccine for people above 50 years of age and those with comorbidities, in a village on the outskirts of Ahmedabad, India, December 14, 2020. REUTERS/Amit Dave##########x##########

कोविड टीकाकरण को लेकर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच बहुत गहरी खाई है. बिहार के अररिया और पूर्णिया ज़िलों में विभिन्न अफ़वाहों और भ्रामक जानकारियों चलते ग्रामीण टीका नहीं लगवाना चाहते हैं. टीका न लगवाने की अन्य वजहें जागरूकता की कमी, शैक्षणिक-सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के साथ सरकारी अनदेखी भी है.

पूर्णिया की दनसार पंचायत के ग्रामीण. (फोटो: हेमंत कुमार पाण्डेय)
पूर्णिया की दनसार पंचायत के ग्रामीण. (फोटो: हेमंत कुमार पाण्डेय)

अभी सुबह के नौ ही बजे हैं. लेकिन बिहार के दनसार ग्राम पंचायत की सड़कों पर बहुत कम लोग दिखते हैं. सड़क पर खेल रहे कुछ बच्चे बताते हैं कि अधिकांश लोग खेतों में गए हैं. पूर्णिया के जलालगढ़ प्रखंड स्थित इस मुसलमान बहुल पंचायत में 18 से अधिक उम्र के लोगों की संख्या करीब 7,000 है. इनमें मुसलमानों के साथ महादलित और आदिवासी समुदाय के लोगों की भी बड़ी संख्या है.

इस वक्त हम दनसार के धनगामा गांव में है. यहां हमारी मुलाकात कुछ खेत मजदूरों से होती है. अधिकांश लोग खेतों में पहुंच चुके हैं और कुछ पहुंचने की तैयारी में हैं. करीब 40 साल के खेत-मजदूर और बंटाई पर खेती करने वाले मुहम्मद महफूज भी इनमें से एक हैं.

‘अब तक गांवों में कोई भी भैक्सिन (वैक्सीन) नहीं लिया है. लोग सब बोलता है कि वैक्सीन लेने पर आदमी पहले बीमार पड़ता है, फिर मर जाता है. अगर हम वैक्सीन लिए और एक-दो दिन में मर गए तो हमरा खेत कौन देखेगा!’ महफूज हमसे कहते हैं.

उनके परिवार में कुल सात सदस्य हैं और कमाने वाले में वे अकेले हैं. वैक्सीन पर भरोसे को लेकर वे आगे कहते हैं, ‘किसी की भी बातों पर विश्वास नहीं कर लेंगे. कोई बड़ा डॉक्टर आकर इसके बारे में बताएगा तो ही मानेंगे. या फिर जानकार आदमी समझाएगा या आलिम-मौलवी वगैरह बोलेगा तो भैक्सिन लगवाएंगे.’

इस गांव में वैक्सीन को लेकर इस तरह की सोच रखने वाले महफूज अकेले नहीं है. बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक का ऐसा ही मानना है. इसके पीछे सोशल मीडिया और सुनी-सुनाई बातों के चलते इनके बीच फैली वे सारी अफवाहें हैं, जिसके चलते लोग टीकाकरण के दूर भाग रहे हैं. इन अफवाहों में बुखार होना, बीमार होना, नपुंसक हो जाना और मर जाना शामिल है.

यहां तक की स्थिति ऐसी है कि अगर कोई बाहर से गांव आया है और कोई उसके बारे में कह दे कि ये सुई (टीका) लगाने के लिए आए हैं, तो उसके करीब लोग नहीं पहुंचते हैं. इसके चलते अब तक इस गांव में केवल सरकारी कर्मचारी या स्वास्थ्यकर्मियों का ही टीकाकरण हुआ है. आम लोग इससे अब तक दूरी बनाकर रखे हुए हैं.

टीकाकरण को लेकर इन अफवाहों पर विश्वास करने और इससे डरने वालों में केवल मुसलमान ही नहीं, बल्कि महादलित सहित अन्य पिछड़ी समुदाय के लोग भी है. मुसलमानों की बस्ती से थोड़ी दूर आगे जाने पर मुसहर समुदाय के लोगों से मुलाकात हुई.

इनमें से एक रामानंद ऋषिदेव हैं. वे टीका लेने के सख्त खिलाफ दिखते हैं. रामानंद कहते हैं, ‘हम वैक्सीन नहीं लेंगे. आदमी 10 दिन बीमार हो जाता है. सुई लगाने के बाद बहुत तेज बुखार आता है. कोई कितना भी समझाएगा, लेकिन हम नहीं लेंगे.’

वैक्सीन को लेकर ऐसा मानने वालों में महादलित समुदाय में रामानंद अकेले नहीं है. इस समुदाय के अधिकांश लोगों का कहना है कि गांवों में कोरोना नहीं है. ये सब ‘अमीरों और एसी में रहने वालों’ को होता है. हम लोगों को कोई दिक्कत नहीं है तो हम ये टीका क्यों लेंगे?

जागरूकता और सुविधा तक पहुंच की कमी

26 साल के हारून रशीद ने बताया कि अब तक गांव में कोरोना या वैक्सीन के बारे में बताने के लिए सरकार की ओर से कोई नहीं आया है. वे आगे कहते हैं, ‘गांवों में अब तक टीके के लिए कोई शिविर नहीं लगा है. जलालगढ़ में वैक्सीन दिया जाता है, लेकिन वहां लॉकडाउन और बीमारी के डर से लोग नहीं जाते हैं.’

गांव के लोगों में जागरूकता की इतनी कमी है कि वे अब तक कोरोना महामारी से जुड़ी बुनियादी जानकारी का भी अभाव है.

हालांकि गांव की एक आशा स्वास्थ्यकर्मी सनम का कहना है, ‘गांव में जलालगढ़ से एएनएम आई थीं टीका लगाने के लिए, लेकिन कोई नहीं लगाया था. सभी लोगों ने अपनी अलग-अलग परेशानी बताकर टीका लगाने से इनकार कर दिया.’

बिहार में 45 या इससे अधिक उम्र के लोगों के टीकाकरण के लिए जिला प्रशासन की ओर से टीका एक्सप्रेस भी चलाया जा रहा है. लेकिन लोगों के बीच जागरूकता के अभाव की वजह से सरकार की पहल पूरी तरह सफल नहीं हो पा रही है.

जलालगढ़ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ब्लॉक डाटा ऑफिसर राजकुमार विश्वास ने बताया, ‘टीका एक्सप्रेस में करीब 200 खुराकें भेजी जाती हैं, लेकिन इसमें से करीब 10 फीसदी खुराकें ही लोगों को लग पाती हैं.’

दनसार पंचायत के उप-मुखिया प्रतिनिधि मुहम्मद मुश्ताक आलम इसके लिए प्रशासन को जिम्मेदार मानते हैं .उनका कहना है, ‘ब्लॉक के आस-पास ही लोगों को जागरूक किया जा रहा है. शहरी क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार किया जा रहा है. गांवों में लोग जागरूक नहीं हो रहा है. सरकार-प्रशासन की ओर से शहरों पर ही अधिक ध्यान दिया जा रहा है.’

राज्य में टीकाकरण के लिए लोगों को जागरूक करने का काम जीविका समूहों को दिया गया है. लेकिन जमीन पर ऐसा कुछ नहीं दिखा. दनसार पंचायत की सितारा जीविका समूह की सचिव अफसाना खातून बताती हैं, ‘सुई (वैक्सीन) लगाने के बारे में हमें कुछ नहीं बताया गया है. इस बारे में कोई भी अब तक बताने को लेकर नहीं आया है.’

हालांकि, जलालगढ़ स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. तनवीर हैदर इन बातों का खंडन करते हैं. उन्होंने बताया, ‘जलालगढ़ प्रखंड में 10 पंचायतें हैं. हमने 10 पंचायतों के अलग-अलग जगहों पर वैक्सीन के लिए एएनएम और नोडल ऑफिसर को मेडिकल टीम के साथ भेज रहे हैं. इस बीच में कुछ दिनों के लिए कम टीकाकरण हुआ है. अभी खेती का टाइम है तो लोग आते नहीं है, इसलिए अब सुबह 6 बजे से ही टीकाकरण शुरू किए हैं.’

जलालगढ़ का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र. (फोटो: हेमंत कुमार पाण्डेय)
जलालगढ़ का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र. (फोटो: हेमंत कुमार पाण्डेय)

टीकाकरण की राह में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन एक बड़ी बाधा

सरकार की दिशा-निर्देशों के मुताबिक 18 साल से अधिक और 45 साल से कम उम्र के लोगों को कोविड टीका लगाने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया से गुजरना होगा. इसकी वजह से गांवों के युवा टीके की खुराक नहीं ले पाए हैं. इनमें से अधिकांश के पास स्मार्ट फोन नही है. अगर ये है भी तो उन्हें इसकी जानकारी नहीं है कि टीके की खुराक के लिए इस पर बुकिंग कैसे की जाती है.

26 साल के हारून रशीद ने हाफिज-मौलवी की पढ़ाई की है. साल 2020 के लॉकडाउन से पहले वे कर्नाटक के रायचूर में एक निजी मदरसे में पढ़ाने का काम करते थे. लॉकडाउन के दौरान मई, 2020 में वे घर वापस लौटे थे. उसके बाद पिछले एक साल से वे बेरोजगार हैं.

उनके हाथ में एंड्रायड स्मार्ट फोन है. इंटरनेट का भी इस्तेमाल करते हैं. लेकिन कोविड टीके के लिए को-विन सहित अन्य प्लेटफॉर्म पर कैसे बुकिंग की जाती है, इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है.

हारून रशीद कहते हैं, ‘अभी तक मालूम नहीं है कि कैसे बुक करते हैं. इसके लिए कभी खुद से कोशिश भी नहीं की है. गांव में वैक्सीन लगाने के लिए आएगा तो, इसे लगवा लेंगे. जो समझदार होगा, वह टीका लगा लेगा.’

पूर्णिया जिले में 18 साल से अधिक उम्र वालों की संख्या 21,09,990 है. को-विन पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़े की मानें, तो जिले में अब तक टीके की 4,33,860 खुराकें (दोनों मिलाकर) दी गई हैं. इनमें पहले खुराक की संख्या 3,80,319 है. इनमें से 18 साल से अधिक उम्र वालों की संख्या 1,16,278 है. यानी वैक्सीन लेने वालों में चार में से केवल एक 45 साल की उम्र से कम के हैं.

टीकाकरण को लेकर में ‘भारत’ और ‘इंडिया’ के बीच गहरी खाई

एक तरफ जहां शहर से दूर गांव के युवा अशिक्षा, जानकारी और इंटरनेट के अभाव में कोविड टीके से वंचित हैं या गांव में टीकाकरण शिविर लगने का इंतजार कर रहे हैं, वहीं शहर के युवा 40-50 किलोमीटर दूर जाकर वैक्सीन लगवा रहे हैं.

अररिया जिले के फारबिसगंज शहर में रहने वाले शौकत अंसारी भी इनमें से एक हैं. जिले में 18 साल से अधिक उम्र वालों की संख्या 18,41,951 है. अब तक इनमें से केवल 2,09,817 लोगों को ही टीका लग पाया है. जिले में अब तक दी लोगों को दी गई कुल खुराकों की संख्या भी 2,46,990 ही है.

शौकत बताते हैं, ‘वैक्सीन को लेकर तो अफवाह शहर में भी है, लेकिन लोग इस पर विश्वास नहीं कर रहे हैं. हम और कुछ और लोग यहां से 45 किलोमीटर दूर सिकटी जाकर वैक्सीन लिए थे. फारबिसगंज या इसके आस-पास के इलाकों में स्लॉट नहीं मिल पा रहा था. जब बुकिंग खुलता था, तो कुछ मिनट के भीतर ही बुक हो जाता था. वहां भी वैक्सीन लगाने के लिए आने वालों में शहर के लोग ही थे. स्थानीय लोग नहीं थे.’

शौकत की बातों को आधार बनाते हुए जब को-विन पोर्टल पर वैक्सीन स्लॉट की उपलब्धता की जांची, तो ये साफ दिखता है कि शहरी क्षेत्रों में वैक्सीन के लिए स्लॉट उपलब्ध नहीं रहता है.

वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में इसके ठीक उलट स्थिति है. इसे देखते हुए ही शहरों से बड़ी संख्या में लोग टीका लेने शहर से दूर स्थित टीकाकरण केंद्र पहुंच रहे हैं. वहीं, गांव के लोग अफवाहों और अन्य कारणों से इससे दूर भाग रहे हैं.

देश के सबसे पिछड़े 100 जिलों की सूची में शामिल बिहार के सीमांचल के इन दोनों जिलों- पूर्णिया और अररिया के ग्रामीण और शहरी इलाकों में कई लोगों से बातचीत की. हमने पाया कि कोविड टीकाकरण अभियान पर शिक्षा के स्तर के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन भी अपना असर छोड़ रही है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)