हाथरस मामलाः पत्रकार कप्पन, तीन अन्य के ख़िलाफ़ शांति भंग के आरोप रद्द

उत्तर प्रदेश पुलिस ने पिछले साल पांच अक्टूबर को हाथरस जाने के रास्ते में केरल के एक पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन समेत चार युवकों को गिरफ़्तार किया था. उन पर आरोप लगाया था कि हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के मद्देनज़र सांप्रदायिक दंगे भड़काने और सामाजिक सद्भाव को बाधित करने की कोशिश कर रहे थे. यूपी सरकार ने दावा किया था कि कप्पन पत्रकार नहीं, बल्कि अतिवादी संगठन पीएफआई के सदस्य हैं.

पत्रकार सिद्दीकी कप्पन. (फोटो साभार: ट्विटर/@vssanakan)

उत्तर प्रदेश पुलिस ने पिछले साल पांच अक्टूबर को हाथरस जाने के रास्ते में केरल के एक पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन समेत चार युवकों को गिरफ़्तार किया था. उन पर आरोप लगाया था कि हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के मद्देनज़र सांप्रदायिक दंगे भड़काने और सामाजिक सद्भाव को बाधित करने की कोशिश कर रहे थे. यूपी सरकार ने दावा किया था कि कप्पन पत्रकार नहीं, बल्कि अतिवादी संगठन पीएफआई के सदस्य हैं.

केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन. (फोटो साभार: ट्विटर/@vssanakan)
केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन. (फोटो साभार: ट्विटर/@vssanakan)

मथुराः उत्तर प्रदेश के मथुरा की एक स्थानीय अदालत ने केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन और तीन अन्य लोगों को शांति भंग करने के आरोप से मंगलवार को मुक्त कर दिया, क्योंकि पुलिस इस मामले की जांच तय छह महीने में पूरा नहीं कर पाई. बचाव पक्ष के वकील ने उक्त जानकारी दी.

चरमपंथी समूह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के साथ संबंध होने के संदेह में कप्पन और उनके कथित सहयोगियों को पांच अक्टूबर, 2020 को गिरफ्तार किया गया था. ये लोग हाथरस में एक युवती के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में उसके गांव जा रहे थे.

बचाव पक्ष के वकील मधुबन दत्त चतुर्वेदी ने बताया कि उप संभागीय मजिस्ट्रेट राम दत्त राम ने मंगलवार को आरोपियों अतिकुर्रहमान, आलम, पत्रकार सिद्दीकी कप्पन और मसूद अहमद को आरोप मुक्त कर दिया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, वकील ने बताया कि सीआरपीसी की धारा 116 (6) के तहत कार्यवाही सीमा समाप्त होने की वजह से सब मजिस्ट्रेट ने आरोप रद्द कर दिए.

बचाव पत्र के वकील मधुवन दत्त चतुर्वेदी ने कहा कि पांच अक्टूबर 2020 को गिरफ्तारी के बाद उन्हें सब डिविजनल मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया गया था, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था.

न्यायिक हिरासत के दौरान अदालत ने शांति भंग मामले की सुनवाई की और पुलिस द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के आधार पर सीआरपीसी की धारा 111 के तहत नोटिस भेजा.

जेल में भेजे गए नोटिस में उनसे पूछा गया कि उन्हें एक-एक लाख रुपये के निजी बॉन्ड और दो गारंटर से समान राशि का मुचलका भर जमानत क्यों नहीं दे दी जाए.

वहीं, आरोपियों ने खुद पर लगे आरोपों से इनकार किया.

वकील ने कहा, ‘मैंने सब डिविजनल मजिस्ट्रेट की अदालत में याचिका दायर कर उनसे आग्रह किया है कि आरोपियों के खिलाफ मामले को रद्द कर दिया जाए, क्योंकि पुलिस निर्धारित छह महीने की सीमा में कोई साक्ष्य पेश नहीं कर पाई. इसके बाद अदालत ने आज तकनीकी आधार पर आरोपियों को मुक्त कर दिया.’

उन्होंने कहा, ‘अदालत ने सीआरपीसी की धारा 116 (6) के तहत मामला बंद कर दिया.’

दरअसल इस धारा में कहा गया है कि जांच शुरू होने से छह महीने के भीतर जांच पूरी की जानी चाहिए और अगर जांच पूरी नहीं की जाती तो जांच को रद्द माना जाएगा.

मालूम हो कि सिद्दीक कप्पन और तीन अन्य की गिरफ्तारी के दो दिन बाद यूपी पुलिस ने उनके खिलाफ राजद्रोह और यूएपीए के तहत विभिन्न आरोपों में अन्य मामला दर्ज किया था.

यूएपीए के तहत दर्ज मामले में आरोप लगाया गया था कि कप्पन और उनके सह-यात्री हाथरस सामूहिक बलात्कार-हत्या मामले के मद्देनजर सांप्रदायिक दंगे भड़काने और सामाजिक सद्भाव को बाधित करने की कोशिश कर रहे थे. कप्पन न्यायिक हिरासत में है.

पुलिस ने बाद में इस मामले में चार और लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया. इस साल अप्रैल में पुलिस ने मथुरा की स्थानीय अदालत में कप्पन सहित सभी आठ लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी.

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