लोजपा: चिराग ने पांच सांसदों को पार्टी से निकाला, पारस गुट ने उन्हें अध्यक्ष पद से हटाया

लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन के महज़ आठ महीने बाद पार्टी में विभाजन के संकेतों के बीच चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं और दोनों ही ख़ुद को पार्टी का कर्ताधर्ता दर्शाने का प्रयास भी कर रहे हैं.

बीते मंगलवार को बिहार की राजधानी पटना स्थित लोजपा के दफ्तर के बाहर पशुपति कुमार पारस सहित पार्टी के अन्य बागी सांसदों के पोस्टरों पर काला पेंट पोतते चिराग पासवान के समर्थक. (फोटो: पीटीआई)

लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन के महज़ आठ महीने बाद पार्टी में विभाजन के संकेतों के बीच चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं और दोनों ही ख़ुद को पार्टी का कर्ताधर्ता दर्शाने का प्रयास भी कर रहे हैं.

बीते मंगलवार को बिहार की राजधानी पटना स्थित लोजपा के दफ्तर के बाहर पशुपति कुमार पारस सहित पार्टी के अन्य बागी सांसदों के पोस्टरों पर काला पेंट पोतते चिराग पासवान के समर्थक. (फोटो: पीटीआई)
बीते मंगलवार को बिहार की राजधानी पटना स्थित लोजपा के दफ्तर के बाहर पशुपति कुमार पारस सहित पार्टी के अन्य बागी सांसदों के पोस्टरों पर काला पेंट पोतते चिराग पासवान के समर्थक. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस की अगुवाई वाले दो धड़ों ने बीते मंगलवार को पार्टी पर नियंत्रण के लिए कोशिशें तेज कर दीं, जहां पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पांच असंतुष्ट सांसदों को निष्कासित करने का दावा किया गया, वहीं पारस नीत गुट ने चिराग को पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया.

अपने चाचा पारस द्वारा पांच सांसदों की मदद से लोकसभा में पार्टी के नेता पद से हटाए जाने के बाद पहली प्रतिक्रिया में चिराग पासवान ने पार्टी की तुलना एक मां से करते हुए कहा कि इसके साथ ‘विश्वासघात’ नहीं किया जाना चाहिए.

चिराग ने ट्विटर पर एक पत्र भी साझा किया, जो उन्होंने 29 मार्च को अपने पिता रामविलास पासवान के सबसे छोटे भाई पारस को लिखा था और जिसमें उन्होंने अपने चाचा से दिवंगत लोजपा संस्थापक के विचारों के अनुसार पार्टी को चलाने की बात कही.

चिराग के पिता और लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान के निधन के महज आठ महीने बाद पार्टी में विभाजन के संकेतों के बीच दोनों धड़े पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं और दोनों ही खुद को पार्टी का कर्ताधर्ता दर्शाने का प्रयास भी कर रहे हैं.

लोजपा के छह लोकसभा सदस्यों में से पांच के पारस खेमे में जाने के साथ ही चिराग की अगुवाई वाले समूह ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की डिजिटल बैठक आयोजित की, जिसमें पार्टी के 76 में से 41 सदस्य उपस्थित थे. यह जानकारी पार्टी की बिहार इकाई के कार्यवाहक अध्यक्ष राजू तिवारी ने दी.

तिवारी ने संवाददाताओं को बताया कि बैठक में सर्वसम्मति से पांचों सांसदों को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए लोजपा से निष्कासित करने का निर्णय लिया गया है. उन्होंने कहा कि बैठक आनन-फानन में बुलाई गई. तिवारी ने दावा किया कि कई अन्य सदस्यों ने भी इस फैसले को समर्थन जताया है, और चिराग पासवान के नेतृत्व पर भरोसा व्यक्त किया है.

दूसरी तरफ पारस नीत गुट ने भी दावा किया कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की एक आपात बैठक में जमुई से सांसद चिराग पासवान को ‘एक व्यक्ति, एक पद’ के सिद्धांत के अनुसार पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाने का फैसला हुआ है. हालांकि यह नहीं बताया गया कि बैठक में कितने सदस्यों ने भाग लिया.

पारस ने लोकसभा अध्यक्ष द्वारा उन्हें सदन में पार्टी के नेता के तौर पर मान्यता दिए जाने के बाद चिराग पासवान की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उन्हें और चार अन्य सांसदों को निष्कासित करने के फैसले को हास्यास्पद बताया.

उन्होंने दावा किया कि उनके खेमे द्वारा आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी का फैसला लोजपा के ‘एक व्यक्ति, एक पद’ के सिद्धांत के अनुरूप है. उन्होंने अपने भतीजे को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाने के अपने फैसले की वैधता को दोहराया. पारस ने कहा कि नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए पांच दिन में पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाई जाएगी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी के पांच असंतुष्ट सांसद पशुपति कुमार पारस (हाजीपुर), चौधरी महबूब अली कैसर (खगड़िया), चंदन कुमार (नवादा), वीना देवी (वैशाली) और प्रिंस राज (समस्तीपुर) बीते 13 जून की शाम और 14 जून को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला से मुलाकात कर पारस को लोजपा संसदीय दल का नेता और कैसर को उप-नेता चुने जाने की जानकारी दी थी. 14 जून की रात लोकसभा सचिवालय ने एक सर्कुलर जारी कर पारस को लोकसभा में लोजपा नेता बनाए जाने की पुष्टि कर दी थी.

बहरहाल पार्टी पर नियंत्रण की यह लड़ाई जल्द निर्वाचन आयोग तक पहुंच सकती है.

चिराग ने एक ट्वीट में कहा कि उन्होंने अपने पिता और परिवार द्वारा स्थापित पार्टी को एकजुट रखने के प्रयास किए, लेकिन वह विफल रहे. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है. चिराग ने पार्टी में भरोसा जताने वालों का आभार भी जताया.

पारस को लिखे पत्र में चिराग ने अनेक मुद्दों पर अपने चाचा की नाखुशी को उजागर किया है, जिसमें उनका पार्टी अध्यक्ष होना भी शामिल है.

चिराग के करीबी सूत्रों ने कहा कि उन्हें लगता है कि इस विभाजन के पीछे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दिमाग हो सकता है, क्योंकि वह 2020 के विधानसभा चुनावों में जदयू के खिलाफ लोजपा के तीखे प्रचार के बाद वह लोजपा अध्यक्ष को राजनीतिक रूप से कमजोर कर देना चाहते हैं.

चिराग ने चाचा को लिखे पत्र को साझा करके यह दर्शाना चाहा है कि पारस के व्यवहार ने उनके पिता को उस समय आहत किया था जब वह अस्वस्थ थे.

उन्होंने लिखा कि जब चचेरे भाई प्रिंस राज को कथित तौर पर एक महिला ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाकर ब्लैकमेल करने का प्रयास किया तो पारस ने तो इसकी अनदेखी की थी, लेकिन उन्होंने ही राज को पुलिस के पास जाने की सलाह दी थी. हालांकि प्रिंस ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. वह भी लोजपा के सांसद हैं और पारस खेमे में हैं.

भाजपा ने पूरे घटनाक्रम पर चुप्पी साध रखी है, जिसके नेतृत्व वाले राजग में लोजपा और जदयू दोनों शामिल हैं.

लोजपा ने 2019 लोकसभा में छह सीटें जीती थीं, जिनमें वैशाली (बीना देवी), समस्तीपुर (रामचंद्र पासवान और बाद में उनके बेटे प्रिंस राय), खगड़िया (चौधरी महबूब अली कैसर), नवादा (चंदन कुमार) और जमुई (चिराग पासवान) शामिल हैं.

लोजपा के एकमात्र विधायक राज कुमार सिंह, जो 2020 विधानसभा चुनाव में बेगुसराई के मटिहानी सीट जीते थे, वह पहले ही जदयू में शामिल हो चुके हैं.

बता दें कि अक्टूबर 2020 में पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग ने पार्टी की कमान संभाली थी.

इसके बाद अक्टूबर-नवंबर में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जमुई से सांसद चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने के लिए बिहार में सत्ताधारी राजग से अलग होने वाले चिराग पासवान ने हालांकि नरेंद्र मोदी और भाजपा समर्थक रुख कायम रखा था.

चिराग ने जदयू के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से कई भाजपा के बागी थे. लोजपा ने अपने दम पर राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा था.

इसने उन सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए जहां जदयू मैदान में थी, जबकि भाजपा के लिए कुछ सीटें छोड़ दी थी. हालांकि लोजपा बिहार चुनावों में केवल एक सीट जीत सकी, लेकिन इसने जदयू को गंभीर नुकसान पहुंचाया, जिसकी संख्या 71 से गिरकर 43 हो गई थी.

लोजपा उम्मीदवारों की मौजूदगी के कारण 35 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की हार का सामना करने वाली जदयू पहली बार राज्य में भाजपा से कम सीट पाई और यही वजह है कि वह लोजपा के कई सांगठनिक नेताओं को अपने पाले में लाने की लिए प्रयासरत थी. इससे पहले लोजपा के एक मात्र विधायक ने भी जदयू का दामन थाम लिया था.

हालांकि, विधानसभा चुनाव में सहयोगी पार्टी भाजपा से कम सीट जीतने के बावजूद नीतीश के नेतृत्व में राज्य में जदयू की ही सरकार बनी थी.

बहरहाल लोजपा के अकेले विधायक राजकुमार सिंह के बिहार विधानसभा उपाध्यक्ष पद के चुनाव में राजग उम्मीदवार महेश्वर हजारी के पक्ष में मतदान करने के बाद जदयू में शामिल होने के बमुश्किल तीन महीने बाद में केंद्रीय स्तर पर इस दल में यह घटनाक्रम सामने आया है.

पार्टी मां के समान है और उसके साथ ‘विश्वासघात’ नहीं किया जाना चाहिए: चिराग पासवान

अपने चाचा पशुपति कुमार पारस द्वारा लोकसभा में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के नेता पद से हटाए जाने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान ने मंगलवार को पार्टी की तुलना एक मां से करते हुए कहा कि इसके साथ ‘विश्वासघात’ नहीं किया जाना चाहिए.

पासवान ने कहा कि लोकतंत्र में लोग सर्वोच्च हैं और उन्होंने पार्टी में विश्वास रखने वालों को धन्यवाद दिया.

पासवान ने मार्च में अपने पिता के सबसे छोटे भाई पारस को लिखे गए एक पत्र को भी साझा किया, जिसमें उन्होंने उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने सहित कई मुद्दों पर अपने चाचा की नाखुशी को उजागर किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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