दो साल पहले केंद्र सरकार के थिंक टैंक इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स ने साफ तौर पर कहा था कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के स्वतंत्र निदेशकों के चयन में राजनीतिक आत्मीयता को वरीयता दी जा रही है, जिसने इस पद के विचार को ही दूषित कर दिया है.
नई दिल्ली: बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) मंगलवार को इस बात पर चर्चा कर सकता है कि स्वतंत्र निदेशकों की प्रणाली- उनकी नियुक्ति और बोर्ड में उनकी भूमिका, में कैसे सुधार किया जाए.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, दो साल पहले केंद्र सरकार के थिंक टैंक इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स (आईआईसीए) ने साफ तौर पर कहा था, ‘सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए स्वतंत्र निदेशकों (आईडी) का चयन स्वतंत्र नहीं रहा है. क्षेत्र के अनुभवी विशेषज्ञों के बजाय, पूर्व-आईएएस या राजनीतिक आत्मीयता को वरीयता दी जा रही है, इसलिए आईडी के पूरे विचार को दूषित कर दिया गया है.’
सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त डेटा और 146 केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के रिकॉर्ड की जांच से पता चलता है कि 98 सार्वजनिक उपक्रमों में 172 स्वतंत्र निदेशक हैं.
इन 172 स्वतंत्र निदेशकों में से 67 सार्वजनिक उपक्रमों में काम करने वाले कम से कम 86 स्वतंत्र निदेशक सत्ताधारी भाजपा से जुड़े हुए हैं.
ये स्वतंत्र निदेशक पिछले तीन साल में 25 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करने वाले महारत्नों में भी सेवारत हैं. इस अख़बार ने सभी 86 स्वतंत्र निदेशकों से संपर्क किया, जिसमें से 81 ने जवाब दिया जबकि पांच ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
इसमें सिर्फ भाजपा के विभिन्न मौजूदा और पूर्व पदाधिकारी ही नहीं बल्कि मौजूदा केंद्रीय मंत्री के परिवार के सदस्य और पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक, पूर्व विधान परिषद सदस्य आदि शामिल हैं.