पौड़ी से लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा त्रिवेंद्र सिंह रावत के स्थान पर मुख्यमंत्री चुना गया था. उत्तराखंड भाजपा में उपजे असंतोष के कारण त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बीते नौ मार्च को पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. नियमों के मुताबिक निर्वाचन आयोग संसद के दोनों सदनों और राज्यों के विधायी सदनों में ख़ाली सीटों के रिक्त होने की तिथि से छह माह के भीतर उपचुनाव द्वारा भरने के लिए अधिकृत है. तीरथ सिंह रावत के पास 10 सितंबर तक विधायक चुने जाने का समय था.
देहराहून/नई दिल्ली: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार आधी रात के क़रीब राज्यपाल बेबी रानी मौर्य से मुलाकात कर अपना इस्तीफा उन्हें सौंप दिया. अपनी तीन दिन की दिल्ली यात्रा से देहरादून लौटने के कुछ घंटों बाद ही तीरथ सिंह रावत ने यह कदम उठाया है. इस यात्रा के दौरान वह दो बार भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और एक बार गृह मंत्री अमित शाह से मिले थे.
दिल्ली से लौटने के तुरंत बाद उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाने के साथ कुछ घोषणाएं की थीं. ऐसी अटकलें थीं कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में वह इस्तीफा दे देंगे. हालांकि आधी रात के क़रीब उनके इस्तीफ़े के साथ इन अटकलों पर विराम लग गया.
अब शनिवार दोपहर बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक दल की बैठक में वर्तमान विधायकों में से ही किसी एक को विधायक दल का नेता चुना जाएगा.
दिल्ली से लेकर देहरादून तक दिन भर चली मुलाकातों और बैठकों के दौर के बाद रावत ने शुक्रवार रात करीब 11:30 बजे अपने मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सहयोगियों के साथ राज्यपाल से मुलाकात कर अपना इस्तीफा सौंपा.
इस्तीफा देने के बाद मुख्यमंत्री रावत ने संवाददाताओं को बताया कि उनके इस्तीफा देने का मुख्य कारण संवैधानिक संकट था, जिसमें निर्वाचन आयोग के लिए चुनाव कराना मुश्किल था.
उन्होंने कहा, ‘संवैधानिक संकट की परिस्थितियों को देखते हुए मैंने अपना इस्तीफा देना उचित समझा.’
रावत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अपने केंद्रीय नेतृत्व का आभार व्यक्त किया और कहा कि उन्होंने उन्हें उच्च पदों पर सेवा करने का मौका दिया.
तीरथ सिंह रावत, जो अभी भी पौड़ी से लोकसभा सांसद हैं, को केंद्रीय नेतृत्व द्वारा त्रिवेंद्र सिंह रावत के स्थान पर मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया था. उत्तराखंड भाजपा में उपजे असंतोष के कारण त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बीते नौ मार्च को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद 10 मार्च को तीरथ सिंह रावत ने राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और उनके पास 10 सितंबर तक विधायक चुने जाने का समय था.
इस तरह से बीते चार महीने में भाजपा की ओर तीसरा मुख्यमंत्री उत्तराखंड का शासन संभालेगा.
दरअसल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए के मुताबिक, निर्वाचन आयोग संसद के दोनों सदनों और राज्यों के विधायी सदनों में खाली सीटों के रिक्त होने की तिथि से छह माह के भीतर उपचुनावों के द्वारा भरने के लिए अधिकृत है, बशर्ते किसी रिक्ति से जुड़े किसी सदस्य का शेष कार्यकाल एक वर्ष अथवा उससे अधिक हो.
यही कानूनी बाध्यता मुख्यमंत्री के विधानसभा पहुंचने में सबसे बड़ी अड़चन के रूप में सामने आई, क्योंकि विधानसभा चुनाव में एक साल से कम का समय बचा है. वैसे भी कोविड महामारी के कारण भी फिलहाल चुनाव की परिस्थितियां नहीं बन पाईं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के नेता पूरे प्रकरण में केंद्रीय नेतृत्व द्वारा निभाई गई भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं, जिसने कुछ महीनों के भीतर मुख्यमंत्री के दो परिवर्तनों के साथ पार्टी को अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले अविश्वसनीय स्थिति में छोड़ दिया है.
भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का यह भी कहना है कि पार्टी ने तीरथ सिंह रावत को निर्वाचित कराने का कम से कम एक मौका समय से गंवा दिया, जब अप्रैल में सल्ट विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव हुआ था.
भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के निधन के कारण यहां उपचुनाव कराना पड़ा था. रावत के मुख्यमंत्री बनने के 19 दिन बाद 29 मार्च को भाजपा ने जीना के बड़े भाई महेश को अपना उम्मीदवार घोषित किया था.
यह पूछे जाने पर कि संवैधानिक संकट से बचने के लिए प्रदेश में अप्रैल में हुआ सल्ट उपचुनाव उन्होंने क्यों नही लड़ा, मुख्यमंत्री ने कहा कि उस समय वह कोविड से पीड़ित थे और इसलिए उन्हें इसके लिए समय नहीं मिला.
सूत्रों ने कहा कि भाजपा को इस बात का यकीन नहीं था कि तीरथ सिंह रावत सल्ट से जीत पाएंगे. यह सीट कुमाऊं क्षेत्र में आती है और रावत का राजनीतिक करिअर गढ़वाल तक ही सीमित रहा है. महेश के उम्मीदवार के रूप में होने से भाजपा ने यह सीट 2017 के विधानसभा चुनावों की तुलना में अधिक अंतर से सीट जीती थी.
भाजपा की ओर से उठाए गए इस कदम के पीछे वजह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के हारने का इतिहास भी हो सकता है. 2012 में भाजपा के बीसी खंडूरी कोटद्वार से हार गए थे और 2017 में कांग्रेस नेता हरीश रावत किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण दोनों सीटों से हार गए थे.
मुख्यमंत्री रावत के साथ मौजूद प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने कहा, ‘निर्वाचन आयोग ने कहा कि उपचुनाव नहीं करा पाएंगे, इसलिए हम लोगों ने उचित समझा कि संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न न हो.’
उन्होंने कहा कि नए नेता का चयन करने के लिए शनिवार को पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में विधायक दल की महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है.
शनिवार को अपराह्न तीन बजे बुलाई गई इस बैठक की अध्यक्षता स्वयं प्रदेश अध्यक्ष कौशिक करेंगे, जबकि केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और भाजपा महासचिव और उत्तराखंड के प्रभारी दुष्यंत गौतम मौजूद रहेंगे.
उन्होंने बताया कि पार्टी की ओर से सभी विधायकों को शनिवार की बैठक में उपस्थित रहने की सूचना दे दी गई है.
उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर अटकलें उसी दिन लगने लगी थीं जब रावत को केंद्रीय नेतृत्व ने दिल्ली तलब किया था और सभी निर्धारित कार्यक्रमों को छोड़कर वह बीते 30 जून को दिल्ली पहुंच गए थे.
अपने तीन दिन के दिल्ली दौरे पर उन्होंने एक जुलाई की रात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मंत्रणा की थी. अगले दिन दो जुलाई को उन्होंने 24 घंटे के भीतर दूसरी बार नड्डा से मुलाकात की.
देहरादून लौटने के बाद मुख्यमंत्री रावत राज्य सचिवालय पहुंचे और वहां संवाददाताओं से मुखातिब हुए, लेकिन उन्होंने अपने इस्तीफे के संबंध में कोई बात न करते हुए नई घोषणाएं कर सबको हैरानी में डाल दिया. ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि वह इस संवाददाता सम्मेलन में अपने इस्तीफे की घोषणा कर सकते हैं.
उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए परिवहन और पर्यटन आदि क्षेत्रों के लोगों को राहत देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं और उन्हें लगभग 2000 करोड़ रुपये की सहायता दी जाएगी.
इसके अलावा उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने कोविड-19 महामारी से प्रभावित युवाओं को रोजगार देने के लिए छह माह में 20,000 रिक्तियां भरने की घोषणा की है.
उन्होंने कहा कि वह यह घोषणा पहले ही करना चाहते थे, लेकिन तीन दिन दिल्ली में रहने के कारण अब कर रहे हैं.
प्रदेश में फिलहाल विधानसभा की दो सीटें- गंगोत्री और हल्द्वानी रिक्त हैं. भाजपा विधायक गोपाल सिंह रावत का इस वर्ष अप्रैल में निधन होने से गंगोत्री, जबकि कांग्रेस की वरिष्ठ नेता इंदिरा हृदयेश के निधन से हल्द्वानी सीट खाली हुई है.
भाजपा नेतृत्व के कारण तीरथ रावत मजाक के पात्र बन गए: हरीश रावत
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद शुक्रवार को कटाक्ष करते हुए कहा कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की वजह से तीरथ मजाक के पात्र बन गए.
उन्होंने ट्वीट किया, ‘2017 में सत्तारूढ़ हुई उत्तराखंड भाजपा ने अपने दो नेताओं की स्थिति हास्यास्पद बना दी है, दोनों भले आदमी हैं. त्रिवेंद्र रावत जी को बजट सत्र के बीच में बदलने का निर्णय ले लिया, जबकि वित्त विभाग भी उन्हीं के पास था, बजट पर चर्चा और बहस का जवाब उन्हीं को देना था, बजट उन्हीं को पारित करवाना था.’
बजट उन्हीं को पारित करवाना था। सब हबड़-तबड़ में बजट भी पास हुआ और त्रिवेन्द्र सिंह जी की विदाई भी हो गई और उतने भले ही आदमी @TIRATHSRAWAT जी मुख्यमंत्री बने और तीरथ सिंह जी की स्थिति कुछ उनके बयानों ने और जितनी रही-सही कसर थी, वो #भाजपा के शीर्ष द्वारा उनके… 2/3
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) July 2, 2021
हरीश रावत ने कहा, ‘सब हबड़-तबड़ में बजट भी पारित हुआ और त्रिवेंद्र सिंह जी की विदाई भी हो गई और उतने भले ही आदमी तीरथ रावत जी मुख्यमंत्री बने. तीरथ सिंह जी की स्थिति कुछ उनके बयानों ने और जितनी रही-सही कसर थी, वो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उनके चुनाव लड़ने के प्रश्न पर निर्णय न लेने कारण हास्यास्पद बन गई, वो मजाक के पात्र बनकर के रह गए.’
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री ने दावा किया, ‘लोग कह रहे हैं कि हमारे मुख्यमंत्री को जब इसी बात ज्ञान नहीं था कि उनको कब चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचना है तो ये व्यक्ति हमारा क्या कल्याण करेगा!’
खिलौनों की तरह मुख्यमंत्री बदलने के लिए प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष जिम्मेदार: कांग्रेस
कांग्रेस ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद शनिवार को भाजपा पर ‘सत्ता की बंदरबांट’ करने का आरोप लगाया और दावा किया कि ‘खिलौनों की तरह मुख्यमंत्री बदलने’ के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा जिम्मेदार हैं.
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि अब उत्तराखंड की जनता चुनाव का इंतजार कर रही है, ताकि वह स्थिर और प्रगतिशील सरकार के लिए कांग्रेस को मौका दे सके.
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘उत्तराखंड की देवभूमि, भाजपा की सत्ता की लालच, सत्ता की मलाई के लिए होड़ और भाजपा की विफलता का उदाहरण बनती जा रही है.’
सुरजेवाला ने दावा किया, ‘राज्य के लोगों ने पूर्ण बहुमत देकर भाजपा को सरकार बनाने का मौका दिया, लेकिन भाजपा ने सिर्फ सत्ता की मलाई बांटने और सत्ता की बंदरबाट करने का काम किया. भाजपा के लिए यह अवसर सत्ता की मलाई चखने का अवसर बन गया.’
उन्होंने दिल्ली, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में अतीत की भाजपा सरकारों में कई मुख्यमंत्रियों को बदलने जाने का उल्लेख करते हुए कहा, ‘भाजपा का एक ही कार्यकाल में मुख्यमंत्री बदलने का इतिहास है. भाजपा खिलौनों की तरह मुख्यमंत्री बदलती है. यही उत्तराखंड में हो रहा है.’
सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि इस स्थिति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जेपी नड्डा जिम्मेदार हैं.
उन्होंने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा, ‘भाजपा ने उत्तराखंड में पहले भी तीन-तीन मुख्यमंत्री बदले थे और इस बार भी तीसरा मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी में हैं. हम तो कहेंगे कि अगले छह महीनों में दो-तीन और बदल दीजिए, ताकि देश में सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री बदलने का रिकॉर्ड बन जाए.’
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव ने आरोप लगाया, ‘यह भाजपा नेतृत्व की लापरवाही और नासमझी है. एक ऐसे मुख्यमंत्री को उत्तराखंड पर थोपा गया कि जो विधानसभा का सदस्य नहीं है. भाजपा ने खुशहाल देवभूमि को बदहाल करने के लिए यह सब किया है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)