अदालत का जामिया शूटर को ज़मानत से इनकार, कहा- ऐसे लोग महामारी से ज़्यादा ख़तरनाक

जनवरी 2020 में सीएए के ख़िलाफ़ जामिया मिलिया इस्लामिया के पास प्रदर्शन कर रहे समूह पर गोली चलाने वाले नाबालिग युवक को अब हरियाणा के पटौदी में हुई एक महापंचायत में सांप्रदायिक भाषण देने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है. स्थानीय अदालत ने युवक को ज़मानत देने से मना करते हुए कहा कि नफ़रती भाषण देना फैशन बन गया है.

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30 जनवरी 2020 को जामिया मिलिया इस्लामिया के बाहर बंदूक लहराता आरोपी (फोटोः रॉयटर्स)

जनवरी 2020 में सीएए के ख़िलाफ़ जामिया मिलिया इस्लामिया के पास प्रदर्शन कर रहे समूह पर गोली चलाने वाले नाबालिग युवक को अब हरियाणा के पटौदी में हुई एक महापंचायत में सांप्रदायिक भाषण देने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है. स्थानीय अदालत ने युवक को ज़मानत देने से मना करते हुए कहा कि नफ़रती भाषण देना फैशन बन गया है.

30 जनवरी 2020 को जामिया मिलिया इस्लामिया के बाहर बंदूक लहराता आरोपी (फोटोः रॉयटर्स)

नई दिल्लीः गुड़गांव की एक अदालत ने हरियाणा के पटौदी में महापंचायत के दौरान भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार हुए जामिया के शूटर की जमानत याचिका खारिज कर दी है.

न्यायिक मजिस्ट्रेट मोहम्मद सगीर ने कड़े शब्दों में अपने आदेश में कहा कि भड़काऊ भाषण देने आजकल फैशन बन गया है और सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने वाले देश को कोविड-19 महामारी से ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं.

बता दें कि पिछले साल जनवरी 2020 में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) का विरोध कर रहे जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों की भीड़ पर गोली चलाने वाले आरोपी को इस साल हरियाणा के पटौदी में महापंचायत के दौरान भड़काऊ भाषण देने के आरोप में 12 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था.

आदेश में, न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कहा कि नफरती भाषण व्यथित करने से कहीं ज्यादा परेशान करते हैं.

आदेश में कहा गया, ‘इसका सामाजिक प्रभाव हो सकता है. भड़काऊ भाषण बाद समाज के  कमजोर वर्गों के लिए खतरनाक हो सकते हैं. यह समाज के वंचित वर्ग पर हमले, भेदभाव, बहिष्कार, अलागव, निर्वासन, हिंसा और कई मामलों में नरसंहार तक का कारण बन सकते हैं.’

याचिकाकर्ता के वकील के तर्क को खारिज करते हुए कि आरोपी युवा और निर्दोष है. मजिस्ट्रेट सगीर ने कहा, ‘अदालत के समक्ष आरोपी निर्दोष युवा लड़का नहीं है, जो कुछ नहीं जानता बल्कि वह यह दिखा रहा है कि जो उसने पूर्व में किया है, अब वह बिना किसी डर के अपनी उस नफरत को अंजाम देने में सक्षम हो गया है. वह अपनी इस नफरत में बड़ी तादाद में लोगों को शामिल कर सकता है.’

अदालत ने इस तथ्य का उल्लेख किया कि जांचकर्ता अधिकारी द्वारा दी गई जानकारी और याचिकाकर्ता के वकीलों द्वारा स्वीकार करने के अनुरूप यह वही शख्स है, जिसने अवैध हथियार हवा में लहराकर जामिया के छात्रों पर गोली बरसाई थी.

जामिया घटना के समय आरोपी नाबालिग था और उस समय यह मामला दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस थाने में दर्ज था.

मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘अदालत द्वारा आरोपी को उसके नाबालिग होने के कारण दी गई रियायत को उसने सही अर्थ में नहीं लिया बल्कि ऐसा लगता है कि उसने इस रियायत को इस गलत परिप्रेक्ष्य में लिया कि वह कुछ भी कर सकता है, यहां तक कि वह अपने भड़काऊ भाषण से संविधान की मूलभूत विशेषता, जिसे हम धर्मनिरपेक्षता कहते हैं, को भी नष्ट कर सकता है.’

आदेश में कहा गया, ‘आरोपी ने अपने कृत्य से वास्तिवक खतरा पैदा किया है कि जो भी वह चाहे, वह करेगा. कानून-व्यवस्था और शांति बनाए रखने के लिए जिम्मेदार ताकतें क्या करेंगी? उन्होंने राज्य और अदालतों से भी सवाल किया कि क्या उसके पास कानून के शासन को बनाए रखने की शक्ति है?’

मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘हर नागरिक के पास अपने विचारों को व्यक्त करने का अधिकार है लेकिन वैमनस्य को बढ़ावा देते हुए किसी विशेष समुदाय को निशाना बनाने का नहीं.’

आदेश में कहा गया, ‘अपने भाषण के दौरान आरोपी को भीड़ को उकसाते देखा जा सकता है. वह गलत काम के लिए भीड़ को उकसा रह था, विशेष समुदाय की लड़कियों का अपहरण करने और उनका जबरन धर्मांतरण करने के लिए उकसा रहा था.’

मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि आरोपी को अपने पूर्वजों पर बहुत गर्व है. यहां तक ​​कि उन्होंने एक विशेष समुदाय के लोगों को मारने और इस संबंध में नारे बदलने के लिए भी उकसाया. आरोपी के द्वारा इस्तेमाल किए गए नारे और भाषा स्पष्ट रूप से आपत्तिजनक हैं और इसका उद्देश्य एक विशेष समूह की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना और विभिन्न समूहों/धार्मिक समुदाय के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देना है.’

आदेश में कहा गया, ‘किसी भी सभ्य समाज में इस तरह की गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. धर्म या जाति के आधार पर भड़काऊ भाषण आजकल फैशन बन गया है. इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए पुलिस भी असहाय नजर आ रही है. इस तरह की गतिविधियां वास्तव में हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट कर रही और संविधान की भावना को मार रही है.’

आदेश में कहा गया कि जो भी समाज की शांति के लिए विशेष रूप से धार्मिक सद्भाव बिगाड़ने के लिए खतरा है, उसे स्वतंत्र रूप से घूमने की मंजूरी नहीं दी जा सकती.

आदेश में कहा गया, ‘इस तरह के लोग वास्तव में हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को नष्ट कर रहे हैं और राष्ट्रनिर्माण में सबसे बड़ी बाधा हैं. धर्म, जाति आदि के नाम पर हिंसा का लगातार खतरा है.’

इस घटना को सिर्फ एक युवा शख्स की धार्मिक असहिष्णुता के तौर पर नहीं देखा जा सकता क्योंकि इसके कहीं अधिक गंभीर और खतरनाक छिपे हुए परिणाम हो सकते हैं. अगर आरोपी को जमानत मिल जाती है तो सांप्रदायिक सद्भावना का अस्तित्व बाधित हो सकता है और समाज में इससे गलत संदेश जाएगा कि भड़काऊ भाषण समाज में स्वीकार्य हैं.

मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘आम आदमी का विश्वास बहाल करना होगा कि देश का धर्मनिरपेक्ष चरित्र का है और वह ऐसे व्यक्तियों के समर्थन में नहीं है जो धर्म, जाति आदि के नाम पर नफरत और दुश्मनी को बढ़ावा दे रहे हैं. अब समय आ गया है कि धर्म आदि के आधार पर समाज में नफरत फैलाने वाले ऐसे असामाजिक तत्वों को कड़ा संदेश दें कि कानून का राज अब भी कायम है.’

Jamia shooter bail denied by The Wire

आदेश में कहा गया, ‘आरोपी को सलाखों के पीछे रोकने से एक मजबूत संदेश जाएगा कि भारत एक समावेशी समाज है, जहां सभी धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं और उनमें परस्पर सम्मान की भावना है. अदालत यह भी सुनिश्चित करेगी कि कानून का राज सर्वोपरि हो.’

आदेश में कहा गया, ‘हमारा संविधान देश के गैर नागरिक को भी सुरक्षा देता है तो यह राज्य के साथ-साथ न्यायपालिका का भी कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कोई भी धर्म या जाति के लोग असुरक्षित महसूस नहीं करें और नफरत फैलाने वाले ऐसे लोग बिना डर के खुलेआम नहीं घूम सकते.’

मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘आरोपी जैसे लोग कोरोना महामारी से अधिक खतरनाक है. कोरोना बिना धर्म या जाति के किसी भी शख्स की जान ले लेता है. जिस तरह का भड़काऊ भाषण आरोपी ने दिया, अगर उसके बाद सांप्रदायिक हिंसा होती है तो धर्म के आधार पर कई निर्दोष लोगों की जान जाएगी.’

मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘अदालत इस तथ्य से भी वाकिफ है कि अगर आरोपी को जमानत पर रिहा किया गया तो बेशक आरोपी एक बार फिर असंवैधानिक और अवैध गतिविधियों में लिप्त नहीं भी हो सकता है, लेकिन वह शिकायतकर्ता और अन्य गवाहों को धमकी देकर जांच को बाधित कर सकता है.’

याचिकाकर्ता के वकीलों ने तर्क दिया कि इसी महापंचायत में कई अन्य लोगों ने भी भड़काऊ भाषण दिए थे लेकिन सिर्फ याचिकाकर्ता को आरोपी बनाया गया और गिरफ्तार किया गया क्योंकि वह बाहरी है और उसका कोई राजनीतिक कनेक्शन नहीं है.

वकील ने यह भी कहा कि अन्य वक्ताओं (जो शक्तिशाली शख्स हैं) ने भड़काऊ भाषण दिए लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई. इससे उनके मुवक्किल के प्रति हरियाणा पुलिस के पक्षपाती रवैये का पता चलता है.

हालांकि, वकील ने किसी भी शख्स का नाम नहीं लिया. वह शायद भाजपा के प्रवक्ता सूरज पाल अमू का उल्लेख कर रहे थे, जिन्होंने पटौदी महापंचायत में मुस्लिमों के खिलाफ वहां के स्थानीय लोगों को उकसाया था.

मजिस्ट्रेट सगीर ने कहा कि अदालत को बताया गया कि पुलिस को मौजूदा आरोपी के खिलाफ ही शिकायत मिली और अगर बाद में जांच के दौरान अन्य लोगों के खिलाफ किसी तरह के सबूत मिलते हैं तो उन्हें भी कानून के अनुरूप गिरफ्तार किया जाएगा.

आरोपी और उसकी ऑनलाइन लोकप्रियता का विस्तार में अध्ययन करने के बाद पत्रकार कौशिक राज और आलीशान जाफरी ने द वायर  पर प्रकाशित एक लेख में बताया था कि किस तरह से उनके भाषणों की वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल की जाती है.

चार जुलाई को हुई इस महापंचायत में आरोपी ने ‘हिंदुओं से मुस्लिम महिलाओं को अगवा कर लव जिहाद का बदला लेने को कहा था. इतना ही नहीं दर्शकों को मुस्लिम विरोधी नारे लगाते भी सुना गया. आरोपी को ‘जब मु** काटे जाएंगे, तब राम-राम चिलाएंगे’ कहते भी सुना गया.

राज और जाफरी की रिपोर्ट में पूरा ब्योरा है कि कितनी बार आरोपी ने सोशल मीडिया पर उस कंटेंट को रिलीज किया, जिसमें वह खुलेआम मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा का आह्वान कर रहा है.

वीडियो की एक श्रृंखला में की गई हिंसा का संकेत भी मिलता है और इसका शीर्षक ‘गौ रक्षा’ या गाय संरक्षण है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

(नोट: इस ख़बर को अपडेट किया गया है.)

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