नेपाल के नए प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत हासिल किया

बीते 13 जुलाई को पांचवीं बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले नेपाली कांग्रेस के 75 वर्षीय प्रमुख शेर बहादुर देउबा ने 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 165 मत हासिल किए. देउबा ने नेपाल-भारत संबंधों को मज़बूत करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताई है.

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नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा. (फोटो: रॉयटर्स)

बीते 13 जुलाई को पांचवीं बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले नेपाली कांग्रेस के 75 वर्षीय प्रमुख शेर बहादुर देउबा ने 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 165 मत हासिल किए. देउबा ने नेपाल-भारत संबंधों को मज़बूत करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताई है.

नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा. (फोटो: रॉयटर्स)

काठमांडू: नेपाल के नए प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने रविवार को बहाल हुए संसद के निचले सदन में विश्वास मत हासिल कर लिया.

‘हिमालयन टाइम्स’ की खबर के अनुसार, नेपाली कांग्रेस के 75 वर्षीय प्रमुख देउबा ने 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 165 मत हासिल किए.

खबर में कहा गया है कि 249 सांसदों ने मतदान प्रक्रिया में हिस्सा लिया और उनमें से 83 ने देउबा के खिलाफ मतदान किया, जबकि एक सांसद तटस्थ रहा. देउबा को संसद का विश्वास हासिल करने के लिए कुल 136 मतों की आवश्यकता थी.

नेपाल की प्रतिनिधि सभा में कुल 275 सदस्य होते हैं. इनमें से देउबा को कम से कम 136 सदस्यों का समर्थन हासिल करना था. अगर वह विश्वास मत हासिल करने में असफल रहते तो संसद भंग हो जाती और अगले छह महीने में चुनाव कराए जाते.

देउबा ने बहाल की गई प्रतिनिधि सभा में आसानी से विश्वास मत जीत लिया. इसी के साथ कोविड-19 वैश्विक महामारी के बीच हिमालयी देश में आम चुनाव टल गए.

देउबा ने 13 जुलाई को पांचवीं बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. इससे एक दिन पहले ही नेपाल के उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा को बहाल करने का आदेश दिया था.

ओली की अनुशंसा पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने 22 मई को पांच महीनों में दूसरी बार निचले सदन को भंग कर दिया था और 12 नवंबर और 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी. इस कदम के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में 30 याचिकाएं दायर की गई थीं. अदालत ने फैसले को असंवैधानिक करार दिया था.

12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ के सर्वसम्मत फैसले के बाद ओली को प्रधानमंत्री के रूप में बाहर का रास्ता दिखा दिया था. खंडपीठ ने फैसला सुनाया था कि भंग सदन को बहाल किया जाए और देउबा को समर्थन पत्र, जिसे उन्होंने राष्ट्रपति को सौंप दिया था, के आधार पर प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाए.

उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिनिधि सभा (सदन) को बहाल किए जाने के बाद नेपाल के निर्वाचन आयोग ने 13 जुलाई को देश में 12 और 19 नवंबर को होने वाले संसदीय चुनाव टाल दिए थे.

इसके बाद देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त होने के एक महीने के भीतर सदन में विश्वास मत हासिल करना था.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, घंटों की बहस के बाद मतदान हुआ, जिसमें आरोपों-प्रत्यारोप की एक श्रृंखला देखी गई. सीपीएन-यूएमएल ने निवर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के सदन के सदन भंग करने और नए चुनाव कराने के फैसले को सही ठहराया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की.

वहीं, कई दलों के वरिष्ठ नेताओं सहित देउबा के समर्थकों ने ओली पर दो बार सदन भंग करने में तानाशाही का आरोप लगाया. ओली की इस बात के लिए भी आलोचना की गई कि उन्होंने अध्यादेशों का अत्यधिक उपयोग किया था.

कम्युनिस्ट पार्टी नेपाल-माओवादी केंद्र के नेता पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने कहा कि ओली निरंकुश थे और शांति प्रक्रिया और संविधान की भावना के अनुसार कार्य करने में विफल रहे.

उन्होंने राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी और ओली पर व्यवस्थित रूप से संविधान के खिलाफ जाने का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, ‘भंडारी ने 22 मई को सदन के 149 सदस्यों का समर्थन प्रस्तुत करने के बाद देउबा को जब सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के अधिकार से वंचित कर दिया तो उन्होंने संविधान की भावना के अनुसार निष्पक्ष रूप से कार्य नहीं किया.’

प्रचंड ने कहा, ‘मैंने उनसे कहा था कि हम भौतिक सत्यापन के लिए तैयार हैं और उम्मीद कर रहे थे कि वह उन्हें औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री के रूप में चुनने के लिए सदन को संदर्भित करेंगी.’

उन्होंने कहा कि भंडारी ने ओली की सिफारिश पर सदन को खारिज करने का विकल्प चुना और उसी व्यक्ति को नियुक्त किया जिसने फिर से प्रधानमंत्री के रूप में अपना जनादेश खो दिया था. प्रचंड इस तथ्य की ओर इशारा कर रहे थे कि सदन भंग होने से कुछ दिन पहले ओली सदन में विश्वास मत हार गए थे.

नेपाल-भारत संबंधों को मजबूत करने के लिए मोदी के साथ काम करने का इच्छुक हूं: देउबा

नेपाल के नए प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने कहा है कि वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ निकटता से मिलकर काम करने के इच्छुक हैं, ताकि दोनों पड़ोसी देशों के संबंध मजबूत किए जा सकें और लोगों के बीच आपसी संपर्क बढ़ाया जा सके.

प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल की संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत हासिल करने पर देउबा को रविवार रात को बधाई दी थी.

मोदी ने ट्वीट किया, ‘प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा को बधाई और सफल कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं. मैं उनके साथ काम करने को लेकर उत्सुक हूं.’

देउबा ने इस बधाई संदेश के लिए अपने भारतीय समकक्ष का धन्यवाद किया और दोनों पड़ोसी देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध मजबूत करने के लिए उनके साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताई.

उन्होंने रविवार देर रात ट्वीट किया, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बधाई संदेश देने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. मैं अपने दोनों देशों और लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए आपके साथ मिलकर काम करने की आशा करता हूं.’

बता दें कि नेपाल पिछले साल 20 दिसंबर को तब सियासी संकट में घिर गया था, जब सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में वर्चस्व को लेकर मची खींचतान के बीच प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर राष्ट्रपति भंडारी ने संसद के निचले संसद भंग  को कर दिया था और 30 अप्रैल तथा 10 मई को नए चुनाव कराने की घोषणा की थी.

लेकिन बाद में फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने 23 फरवरी को प्रधानमंत्री ओली को झटका देते हुए भंग की गई प्रतिनिधि सभा को बहाल करने के आदेश दिए थे.

सदन में विश्वास मत हारने के बाद ओली अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने प्रतिनिधि सभा को भंग करने के अपने कदम का बार-बार बचाव करते हुए कहा था कि उनकी पार्टी के कुछ नेता समानांतर सरकार बनाने का प्रयास कर रहे थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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