गुजरात सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने कहा था कि यह क़ानून अंतरधार्मिक विवाह पर प्रतिबंध नहीं लगाता है. इस पर न्यायालय ने कहा कि संशोधित क़ानून की भाषा स्पष्ट नहीं है, नतीजतन अंतरधार्मिक विवाह करने वालों पर हमेशा तलवार लटकती रहेगी. जमीयत उलेमा-ए-हिंद की गुजरात शाखा ने पिछले महीने एक याचिका में कहा था कि क़ानून की कुछ संशोधित धाराएं असंवैधानिक हैं.
नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य के धर्मांतरण विरोधी नए कानून की अंतरधार्मिक विवाह संबंधी कुछ धाराओं के क्रियान्वयन पर गुरुवार को रोक लगा दी.
मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और जस्टिस बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने कहा कि लोगों को अनावश्यक परेशानी से बचाने के लिए अंतरिम आदेश पारित किया गया है.
राज्य की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश पर अभी कोई विशेष टिप्पणी नहीं की है. वहीं कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अंतरिम रोक का स्वागत करते हुए कहा कि ‘संपूर्ण कानून संविधान की भावना के खिलाफ है’ और नागरिकों को अपना धर्म चुनने की स्वतंत्रता है.
विवाह के माध्यम से जबरन या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन के लिए दंडित करने वाले गुजरात धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 को राज्य सरकार ने 15 जून को अधिसूचित किया गया था. इसी तरह के कानून मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में भी भाजपा सरकारों द्वारा बनाए गए हैं.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की गुजरात शाखा ने पिछले महीने दाखिल एक याचिका में कहा था कि कानून की कुछ संशोधित धाराएं असंवैधानिक हैं.
The Gujarat High Court has stayed certain provisions of the Gujarat Freedom of Religion (Amendment) Act, 2021 which bans forceful conversion through interfaith marriages in the state
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) August 19, 2021
मुख्य न्यायाधीश नाथ ने कहा, ‘हमारी यह राय है कि आगे की सुनवाई लंबित रहने तक धारा तीन, चार, चार (ए) से लेकर धारा चार (सी), पांच, छह एवं छह (ए) को लागू नहीं किया जाएगा. यदि एक धर्म का व्यक्ति किसी दूसरे धर्म व्यक्ति के साथ बल प्रयोग किए बिना, कोई प्रलोभन दिए बिना या कपटपूर्ण साधनों का इस्तेमाल किए बिना विवाह करता है, तो ऐसे विवाहों को गैरकानूनी धर्मांतरण के उद्देश्य से किया गया विवाह करार नहीं दिया जा सकता.’
उन्होंने कहा, ‘अंतरधार्मिक विवाह करने वाले पक्षों को अनावश्यक परेशानी से बचाने के लिए यह अंतरिम आदेश जारी किया गया है.’
इन धाराओं पर रोक का प्रभावी अर्थ यह है कि इस कानून के तहत अंतरधार्मिक विवाह के आधार पर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है.
राज्य के महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने स्पष्टीकरण मांगा और कहा कि क्या होगा यदि विवाह के परिणामस्वरूप जबरन धर्म परिवर्तन होता है, तो मुख्य न्यायाधीश नाथ ने कहा, ‘बल या प्रलोभन या धोखाधड़ी का एक मूल तत्व होना चाहिए. इसके बिना आप (आगे) नहीं बढ़ेंगे, हमने आदेश में बस इतना ही कहा है.’
त्रिवेदी ने बीते 17 अगस्त को न्यायालय से कहा था कि यह कानून ‘अंतरधार्मिक विवाह’ पर प्रतिबंध नहीं लगाता है, लेकिन खंडपीठ ने कहा कि संशोधित कानून की भाषा स्पष्ट नहीं है, नतीजतन अंतरधार्मिक विवाह करने वालों पर हमेशा तलवार लटकती रहेगी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, गुजरात के उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने कहा कि कोर्ट का पूरा आदेश आने के बाद सरकार अपना अगला कदम उठाएगी.
उन्होंने कहा, ‘माननीय उच्च न्यायालय द्वारा लव जिहाद कानून पर टिप्पणियों के बारे में मुझे जानकारी नहीं है. जो भी टिप्पणी होगी, यह स्वाभाविक है कि हमारे महाधिवक्ता और अन्य सरकारी वकील मुख्यमंत्री, गृह मंत्री और कानूनी विभाग को अवगत कराएंगे. एक बार हमारे पास टिप्पणियों की पूरी जानकारी होने के बाद सरकार क्या कदम उठाएगी, इस पर फैसला होगा.’
राज्य के नए कानून की धारा तीन परिभाषित करती है कि ‘जबरन धर्मांतरण’ क्या है.
इसमें कहा गया है, ‘कोई भी व्यक्ति बल प्रयोग द्वारा या प्रलोभन से या किसी कपटपूर्ण तरीके से या विवाह करके या किसी व्यक्ति की शादी करवाकर या किसी व्यक्ति की शादी करने में सहायता करके किसी व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा और न ही कोई व्यक्ति इस तरह के धर्मांतरण को बढ़ावा देगा.’
इस बीच, शहर के कानूनी विशेषज्ञ शमशाद पठान ने उच्च न्यायालय के आदेश का स्वागत किया. उन्होंने कहा, ‘मेरी राय में उच्च न्यायालय को 2003 में मूल कानून लागू होने के तुरंत बाद (अपने बलबूते) इस मुद्दे को उठाना चाहिए था. सिर्फ नई धाराएं ही नहीं, यह पूरा अधिनियम संविधान की भावना और नागरिकों की स्वतंत्रता के खिलाफ है. कानून यह तय नहीं कर सकता कि लोगों को किस धर्म का पालन करना चाहिए.’
इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता देव देसाई ने दावा किया कि पूरा कानून शुरू से ही ‘असंवैधानिक’ था.
उन्होंने कहा, ‘एक बार जब एक लड़का और एक लड़की वयस्क हो जाते हैं, तो वे अपनी शादी या धर्म के बारे में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होते हैं, जिसका वे पालन करना चाहते हैं. इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं हो सकती है. समाज से जातिवाद को खत्म करने और समुदायों के बीच सद्भाव पैदा करने के लिए अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह वास्तव में आवश्यक हैं.’
देसाई ने कहा, ‘मेरा मानना है कि उच्च न्यायालय को पूरे कानून को खत्म कर देना चाहिए.’
भाजपा सरकार ने इस साल की शुरुआत में बजट सत्र के दौरान विधानसभा में गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक पारित किया था और राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने 22 मई को इसे अपनी सहमति दी थी.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की गुजरात शाखा समेत ने पिछले महीने कानून के खिलाफ याचिका दाखिल की थी.
गुजरात सरकार ने इस नए विधेयक के माध्यम से 2003 के कानून में संशोधन किया था, जिसमें जबरदस्ती या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने पर सजा का प्रावधान है.
संशोधन के अनुसार, शादी करके या किसी की शादी कराके या शादी में मदद करके जबरन धर्मांतरण कराने पर तीन से पांच साल तक की कैद की सजा सुनाई जा सकती है और दो लाख रुपये तक का जुर्माना लग सकता है.
यदि पीड़ित नाबालिग, महिला, दलित या आदिवासी है तो दोषी को चार से सात साल तक की सजा सुनाई जा सकती है और कम से कम तीन लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा.
यदि कोई संगठन कानून का उल्लंघन करता है तो प्रभारी व्यक्ति को न्यूनतम तीन वर्ष और अधिकतम दस वर्ष तक की कैद की सजा दी जा सकती है.
मालूम हो कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने धर्मांतरण को रोकने के लिए अपने राज्यों में ऐसा कानून लागू किया है. पार्टी के नेता इसे लव जिहाद या शादी के माध्यम से हिंदू महिलाओं का धर्म परिवर्तन करने का षड्यंत्र बताते हैं.
नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020’ को मंजूरी दी थी. इस अध्यादेश के तहत शादी के लिए छल-कपट, प्रलोभन या बलपूर्वक धर्म परिवर्तन कराए जाने पर अधिकतम 10 साल के कारावास और जुर्माने की सजा का प्रावधान है.
इस साल जनवरी में मध्य प्रदेश सरकार ने धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 प्रदेश में लागू किया है. इसमें धमकी, लालच, जबरदस्ती अथवा धोखा देकर शादी के लिए धर्मांतरण कराने पर कठोर दंड का प्रावधान किया गया है.
इस कानून के जरिये शादी तथा किसी अन्य कपटपूर्ण तरीके से किए गए धर्मांतरण के मामले में अधिकतम 10 साल की कैद एवं 50 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है.
इसके अलावा दिसंबर 2020 में भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश में जबरन या बहला-फुसलाकर धर्मांतरण या शादी के लिए धर्मांतरण के खिलाफ कानून को लागू किया था. इसका उल्लंघन करने के लिए सात साल तक की सजा का प्रावधान है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)