व्यक्तिगत स्वतंत्रता संवैधानिक जनादेश का महत्वपूर्ण पहलू: सुप्रीम कोर्ट

शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. हाईकोर्ट ने एक मामले में अग्रिम ज़मानत का अनुरोध करने वाली याचिका ख़ारिज कर दी थी. इस मामले में सात साल पहले प्राथमिकी दर्ज की गई थी. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर नियमित तौर पर गिरफ़्तारी की जाती है तो यह किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा एवं आत्मसम्मान को ‘बेहिसाब नुकसान’ पहुंचा सकती है.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)

शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. हाईकोर्ट ने एक मामले में अग्रिम ज़मानत का अनुरोध करने वाली याचिका ख़ारिज कर दी थी. इस मामले में सात साल पहले प्राथमिकी दर्ज की गई थी. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर नियमित तौर पर गिरफ़्तारी की जाती है तो यह किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा एवं आत्मसम्मान को ‘बेहिसाब नुकसान’ पहुंचा सकती है.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महज इसलिए किसी को गिरफ्तार करना कि यह कानूनी रूप से वैध है, इसका यह मतलब नहीं है कि गिरफ्तारी की ही जाए. साथ ही उसने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता संवैधानिक जनादेश का एक महत्वपूर्ण पहलू है.

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘महज इसलिए किसी को गिरफ्तार करना कि यह कानूनी रूप से वैध है, इसका यह मतलब नहीं है कि गिरफ्तारी की ही जाए. अगर नियमित तौर पर गिरफ्तारी की जाती है तो यह किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा एवं आत्मसम्मान को बेहिसाब नुकसान पहुंचा सकती है.’

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि अगर किसी मामले के जांच अधिकारी को यह नहीं लगता कि आरोपी फरार हो जाएगा या समन की अवज्ञा करेगा तो उसे हिरासत में अदालत के समक्ष पेश करने की आवश्यकता नहीं है.

पीठ ने इस हफ्ते की शुरुआत में एक आदेश में कहा, ‘हमारा मानना है कि निजी आजादी हमारे संवैधानिक जनादेश का एक महत्वपूर्ण पहलू है. जांच के दौरान किसी आरोपी को गिरफ्तार करने की नौबत तब आती है, जब हिरासत में पूछताछ आवश्यक हो जाए या यह कोई जघन्य अपराध हो या ऐसी आशंका हो कि गवाहों को प्रभावित किया जा सकता है या आरोपी फरार हो सकता है.’

शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. हाईकोर्ट ने एक मामले में अग्रिम जमानत का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज कर दी थी. इस मामले में सात साल पहले प्राथमिकी दर्ज की गई थी.

हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता अदालत का दरवाजा खटखटाने से पहले जांच में शामिल हुआ था और मामले में आरोप-पत्र भी तैयार था.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि आपराधिक अदालतें सिर्फ इस आधार पर चार्जशीट को स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकती हैं, क्योंकि आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया है और उसके सामने पेश नहीं किया गया है.

उसने कहा, ‘हम उच्च न्यायालयों के पूर्वकथित दृष्टिकोण से सहमत हैं और उक्त न्यायिक दृष्टिकोण के लिए अपनी अनुमति देना चाहते हैं. वास्तव में, हमारे सामने ऐसे मामले आए हैं जहां आरोपी ने पूरी जांच में सहयोग किया है और फिर भी चार्जशीट दायर किए जाने पर उसे पेश करने के लिए गैर-जमानती वारंट जारी किया गया है, इस आधार पर कि आरोपी को गिरफ्तार करने की बाध्यता है और उसे अदालत के सामने पेश करें.’

अदालत ने दर्ज किया कि गिरफ्तारी की शक्ति और इसे प्रयोग करने के औचित्य के बीच एक अंतर किया जाना चाहिए.

अपने समक्ष मामले का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि जब याचिकाकर्ता जांच में शामिल हो गया है, जो पूरी हो चुकी है और उसे प्राथमिकी दर्ज करने के सात साल बाद शामिल किया गया है, तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि चार्जशीट को रिकॉर्ड में लेने से पहले इस स्तर पर उसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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