2020 में कोविड वैक्सीन के ट्रायल में शामिल कई लोगों को अब तक नहीं मिले टीकाकरण सर्टिफिकेट

टीकाकरण सर्टिफिकेट न मिलने के कारण ट्रायल में शामिल हुए लोगों को आवागमन समेत विभिन्न दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ट्रायल के दौरान उन्हें जो सर्टिफिकेट मिला था, उसे अक्सर 'फ़र्ज़ी' बता दिया जा रहा है.

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पढ़ाई और नौकरी के लिए विदेश जा रहे छात्र और नागरिकों के लिए गुड़गांव के क्लीनिक में कोविड 19 टीकाकरण अभियान चलाया गया. (फोटो: पीटीआई)

टीकाकरण सर्टिफिकेट न मिलने के कारण ट्रायल में शामिल हुए लोगों को आवागमन समेत विभिन्न दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ट्रायल के दौरान उन्हें जो सर्टिफिकेट मिला था, उसे अक्सर ‘फ़र्ज़ी’ बता दिया जा रहा है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कोरोना टीकों के ट्रायल में शामिल होने वाले कई व्यक्तियों को अभी तक सर्टिफिकेट नहीं मिला है, जिसके चलते आए दिन उन्हें विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. ट्रायल के दौरान उन्हें जो सर्टिफिकेट मिला था, उसे अक्सर ‘फेक’ यानी फ़र्ज़ी बता दिया जाता है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 65 वर्षीय एके खन्ना, जो एक फार्मास्युटिकल फर्म के पूर्व शीर्ष अधिकारी और वर्तमान में एक हेल्थकेयर कंपनी के अध्यक्ष हैं, अपनी पत्नी और बेटी के साथ सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के कोविशील्ड वैक्सीन ट्रायल में शामिल हुए थे.

पिछले साल अगस्त में ही उन्हें ट्रायल के दौरान टीके की डोज दी गई थी. चूंकि उस समय सभी के लिए इस टीके के इस्तेमाल की मंजूरी नहीं मिली थी और कोविन ऐप का भी निर्माण नहीं हुआ था, इसलिए खन्ना जैसे तमाम लोगों को ट्रायल सेंटर पर ही एक सर्टिफिकेट दिया गया था.

लेकिन टीके के प्रमाण के रूप में इस सर्टिफिकेट को स्वीकार नहीं किया जा रहा है. नतीजन खन्ना जब भी फ्लाइट पकड़ते हैं, उन्हें एक आरटी-पीसीआर टेस्ट जरूर कराना पड़ता है. उनके पास अभी भी सरकारी सॉफ्टवेयर-जनरेटेड प्रमाणपत्र नहीं है.

खन्ना ने कहा, ‘सरकार कब ये प्रमाणित करेगी कि मेरे परिवार और मुझे दोनों खुराक मिल गई है? हाल ही में जम्मू हवाईअड्डे पर अधिकारियों ने ट्रायल साइट द्वारा जारी प्रमाण पत्र को खारिज कर दिया. यह बहुत गलत हो रहा है. जब बहुत से लोग टीका लगवाने के लिए तैयार नहीं थे, हमने स्वेच्छा से टीका लगवाया और कई अन्य लोगों को भी टीका लगवाने के लिए मनाया था. पिछले तीन महीनों से मैं लगातार अधिकारियों से पूछ रहा हूं लेकिन मुझे बताया गया कि मामले की जांच की जा रही है.’

खन्ना जैसे 1,600 वॉलेंटियर कोविशील्ड के ट्रायल में शामिल हुए थे. इसी तरह भारत बायोटेक के कोवैक्सीन ट्रायल में 25,800 लोग शामिल हुए थे, जिसमें से 50 फीसदी लोगों को वैक्सीन और बाकी व्यक्तियों को प्लेसिबो दिया गया था. अधिकारी ने बताया कि जिन लोगों को प्लेसिबो दिया गया था, उनसे संपर्क कर उन्हें वैक्सीन लगा दी गई है.

पुणे के 64 वर्षीय उद्योगपति हेमंत कटक्कर भी इसी तरह की समस्या से गुजर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘चूंकि हम ट्रायल में शामिल थे, इसलिए हमें कोविन सॉफ्टवेयर में शामिल नहीं किया गया, जो प्रोविजनल और फाइनल सर्टिफिकेट जारी करता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने इस बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को भी लिखा था, जिन्होंने जवाब दिया कि मामले का समाधान किया जा चुका है. हम अब भी अपने सर्टिफिकेट का इंतजार कर रहे हैं.’

कटक्कर ने कहा कि उनके एक दोस्त को दुबई के लिए बिजनेस वीजा इसलिए नहीं मिल पाया क्योंकि ट्रायल साइट द्वारा जारी सर्टिफिकेट स्वीकार नहीं किया गया था.

कोरोना वैक्सीन के ट्रायल में भाग लेने वालीं पुणे की एक फ्रीलांसर लेखिका ने कहा कि उन्हें हाल ही में एक शॉपिंग मॉल में रोक दिया गया था क्योंकि वह कोविन ऐप वाला प्रमाणपत्र नहीं दिखा सकी थीं.

उन्होंने कहा, ‘मैंने जहांगीर अस्पताल में परीक्षण में भाग लिया था. हमें आश्वासन दिया गया है कि हमारे लिए आधिकारिक प्रमाणपत्र तैयार किया जा रहा है. हालांकि हमें इसके लिए कोई समयसीमा नहीं बताई गई है.’

ट्रायल साइट में से एक भारती अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ संजय लालवानी ने कहा कि प्रतिभागियों को आधिकारिक प्रमाण पत्र प्रदान करने के मुद्दे पर हाल ही में आईसीएमआर के साथ चर्चा की गई थी. हमें सूचित किया गया है कि केंद्र इस मुद्दे को देख रहा है और जल्द ही प्रमाण पत्र जारी करेगा.

वहीं आईसीएमआर के महामारी विज्ञान और संचारी रोग विभाग के प्रमुख समीरन पांडा ने कहा कि मामले पर कार्रवाई की जा रही है.

डॉ पांडा ने कहा, ‘हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि कोविन सॉफ्टवेयर किस तरह ऐसा प्रमाणपत्र जारी कर सकता है और पूरी प्रक्रिया को तेज कर दिया गया है.’

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा कि कोविन ऐप में बदलाव किए जा रहे हैं ताकि सर्टिफिकेट जारी किया जा सके.

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