जम्मू कश्मीर में सामान्य स्थिति बनाए रखने के लिए लाठी के प्रयोग में कुछ ग़लत नहींः उपराज्यपाल

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 21 अगस्त को दिल्ली में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि इस साल पांच अगस्त को सूबे का विशेष दर्जा समाप्त होने के दो साल पूरे होने के मौक़े पर सामान्य स्थिति दिखाने के लिए किसी भी प्रकार के बल का प्रयोग नहीं किया गया.

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा. (फोटो: पीटीआई)

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 21 अगस्त को दिल्ली में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि इस साल पांच अगस्त को सूबे का विशेष दर्जा समाप्त होने के दो साल पूरे होने के मौक़े पर सामान्य स्थिति दिखाने के लिए किसी भी प्रकार के बल का प्रयोग नहीं किया गया.

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा. (फोटो: पीटीआई)

श्रीनगरः जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का कहना है कि अगर पाकिस्तान राज्य को बंद कराने के लिए बंदूक के आंतक का इस्तेमाल करता है तो इसके मुकाबले लाठी चलाने में कुछ गलत नहीं है.

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 21 अगस्त को दिल्ली में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि इस साल पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के दो साल पूरे होने के मौके पर सामान्य स्थिति दिखाने के लिए किसी भी प्रकार के बल का उपयोग नहीं किया गया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा कि जब तक यहां रहेंगे, यहां ऐसा ही रहेगा और कोई समझौता नही होगा.

उन्होंने कहा, ‘लोगों ने मुझसे कहा कि पांच अगस्त को बंद होगा. मुझे नहीं लगा कि पांच अगस्त कोई महत्वपूर्ण तारीख है लेकिन भगवान की कृपा से कोई बंद नहीं था. एक पत्रकार ने मुझसे कहा कि बंद न हो यह सुनिश्चित करने के लिए मैंने लाठियों का इस्तेमाल किया. मैंने तर्क दिया कि सारा ट्रैफिक चल रहा था और लोग बड़ी संख्या में खरीददारी कर रहे थे. ये सब डंडे के जोर से नहीं हो सकता है लेकिन अगर आप मानते हैं तो मैं इसे स्वीकार करता हूं. बंद भी तो पाकिस्तान और आतंकवाद की बंदूक से होता था. अगर मैंने लाठी का प्रयोग किया तो कुछ बुरा नहीं.’

सिन्हा पत्रकार बशीर असद की किताब ‘कश्मीरः द वार ऑफ नैरेटिव्स’ के विमोचन के मौके पर यहां आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह सीमा रेखा है और किसी को भी इसे पार करने की अनुमति नहीं है और जब तक मैं यहा हूं, यहां ऐसा ही रहेगा. कोई समझौता नहीं होगा.’

सिन्हा ने कहा, ‘खुद को कश्मीर का विशेषज्ञ बताने वाले कुछ लोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कहानियां गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. भ्रांतियों से दूर होना महत्वपूर्ण है. यह देखना जरूरी है कि लोग क्या चाहते हैं और कैसे उनके जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है.’

सिन्हा ने अन्य राज्यों से जम्मू कश्मीर की तुलना करते हुए कहा कि यहां बजट की कमी कोई मुद्दा नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘जब भी जम्मू कश्मीर के बारे में बात की जाती है, तो कहा जाता है कि यह पिछड़ा और अविकसित है. जम्मू कश्मीर को सही संदर्भ में समझना महत्वपूर्ण है. जम्मू कश्मीर की आबादी 1.25-1.30 करोड़ है. पिछले साल जम्मू कश्मीर का बजट 1.10 लाख करोड़ रुपये था. अब पिछड़े समझे जाने वाले बिहार और यूपी को भी लें. करीब 12 करोड़ की आबादी के मुकाबले बिहार में 2.18 लाख करोड़ रुपये का बजट है. यूपी की आबादी 23 करोड़ है और बजट 5.5 लाख करोड़ रुपये है. जम्मू और कश्मीर में प्रति व्यक्ति आवंटन इन राज्यों का नौ से दस गुना है और आजादी के बाद से यहां ऐसा ही रहा है.’

जम्मू कश्मीर के मौजूदा शासन के दौरान पत्रकारों पर पुलिस के हमले और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) लगाए जाने के मामले बढ़े है.

द वायर  ने पहले भी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पुलिस ने 2019 से 2,364 लोगों पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया है और इनमें से लगभग आधे अभी भी जेल में बंद हैं. पत्रकारों सहित इनमें से कई पर यूएपीए लगाया गया है.

जम्मू कश्मीर में पत्रकारों पर पुलिस द्वारा बल का प्रयोग करना भी लगभग नियमित सा हो गया है. हाल ही में श्रीनगर में मुहर्रम का जुलूस कवर कर रहे पत्रकारों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया था.

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