अफ़ग़ानिस्तान: अमेरिका की वापसी के बाद भारत व तालिबान के बीच हुई पहली औपचारिक वार्ता

पहले औपचारिक और सार्वजनिक रूप से स्वीकृत संपर्क में क़तर में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने मंगलवार को तालिबान के वरिष्ठ नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की. दोनों पक्षों के बीच बैठक उस दिन हुई है जब अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी करते हुए देश में 20 साल के सैन्य अभियान को समाप्त कर दिया है.

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अमेरिकी सैनिक. (फोटो: पीटीआई)

पहले औपचारिक और सार्वजनिक रूप से स्वीकृत संपर्क में क़तर में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने मंगलवार को तालिबान के वरिष्ठ नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की. दोनों पक्षों के बीच बैठक उस दिन हुई है जब अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी करते हुए देश में 20 साल के सैन्य अभियान को समाप्त कर दिया है.

अमेरिकी सैनिक. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली/संयुक्त राष्ट्र: पहले औपचारिक और सार्वजनिक रूप से स्वीकृत संपर्क में कतर में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने मंगलवार को तालिबान के वरिष्ठ नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की.

उन्होंने भारत की उन चिंताओं को उठाया कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी तरह से भारत विरोधी गतिविधियों और आतंकवाद के लिए नहीं किया जाना चाहिए.

विदेश मंत्रालय (एमईए) ने कहा कि चर्चा अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और जल्द वापसी तथा अफगान नागरिकों, विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों की भारत यात्रा पर केंद्रित रही.

भारतीय राजदूत और तालिबान नेता के बीच बैठक दोहा स्थित भारतीय दूतावास में तालिबान के अनुरोध पर हुई.

मंत्रालय ने कहा कि तालिबान के प्रतिनिधि ने राजदूत को आश्वासन दिया कि ‘इन मुद्दों’ पर सकारात्मक रूप से गौर किया जायेगा.

विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘आज कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की. बैठक दोहा स्थित भारतीय दूतावास में तालिबान के अनुरोध पर हुई.’

इसमें कहा गया है कि अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और उनकी जल्द वापसी और भारत आने की इच्छा रखने वाले अफगान नागरिकों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों की यात्रा पर भी चर्चा हुई.

इसमें कहा गया है, ‘राजदूत मित्तल ने भारत की इस चिंता को उठाया कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी तरह से भारत विरोधी गतिविधियों और आतंकवाद के लिए नहीं किया जाना चाहिए.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2020 में जेपी सिंह को कार्यभार सौंपने से पहले मित्तल विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान) थे.

वहीं, अफगानिस्तान में भारत के एंबेसडर रुद्रेंद्र टंडन भी मित्तल से पहले संयुक्त सचिव (पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान) थे.

अफगानिस्तान में मौजूदा हालात को देखते हुए भारत की तरफ से प्रतिक्रिया देने में सिंह, टंडन और मित्तल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

बीते 15 अगस्त को काबुल के तालिबान के कब्जे में जाने के बाद मित्तल, सिंह के साथ दोहा में कई बैठकों में शामिल हुए जहां उन्होंने अफगान नेता अब्दुल्ला अब्दुल्ला से मुलाकात की थी.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची, पिछले कुछ महीनों में अपने साप्ताहिक संवाददाता सम्मेलन के दौरान भारत द्वारा तालिबान से संपर्क बनाए जाने की संभावना संबंधित सवालों के जवाब में कहते रहे हैं कि नई दिल्ली सभी हितधारकों के संपर्क में है.

इस तरह की जानकारी है कि भारत ने तालिबान के साथ संवाद का एक जरिया बनाया था लेकिन इसे आधिकारिक तौर पर कभी स्वीकार नहीं किया गया था.

मित्तल और स्तानिकजई के बीच बैठक उस दिन हुई है जब अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी के अभियान को पूरा कर लिया है और देश में 20 साल के सैन्य अभियान को समाप्त कर दिया है.

स्तानिकजई ने शनिवार को एक स्पष्ट संदेश में, भारत को इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण देश के रूप में वर्णित किया था और कहा था कि तालिबान उसके साथ अफगानिस्तान के व्यापार, आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को बनाए रखना चाहता है.

उन्होंने कहा था, ‘हम भारत के साथ अपने व्यापार, आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को बहुत महत्व देते हैं और उस संबंध को बनाए रखना चाहते हैं.’

तालिबान नेता के हवाले से पाकिस्तानी मीडिया प्रतिष्ठान ‘इंडिपेंडेंट उर्दू’ ने अपनी खबर में कहा था, ‘हमें हवाई व्यापार को भी खुला रखने की जरूरत है.’

वह भारत और अफगानिस्तान के बीच हवाई गलियारे का जिक्र कर रहे थे, जिसे पाकिस्तान द्वारा पहुंच की अनुमति देने से इनकार के मद्देनजर दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 20 अगस्त को अपने कतर के समकक्ष शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल-थानी के साथ अमेरिका की चार दिवसीय यात्रा से स्वदेश लौटने के दौरान दोहा में एक ठहराव के दौरान अफगान संकट पर बातचीत की थी.

इस बीच, जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल और कई अन्य वरिष्ठ अधिकारियों का एक उच्च-स्तरीय समूह अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में भारत की तत्काल प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.

आधिकारिक सूत्रों ने मंगलवार को बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर पिछले कुछ दिनों से समूह की नियमित बैठक हो रही है.

एक सूत्र ने कहा, ‘अफगानिस्तान में उभरती स्थिति के मद्देनजर, प्रधानमंत्री मोदी ने हाल में निर्देश दिया था कि विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और वरिष्ठ अधिकारियों के एक उच्च स्तरीय समूह को भारत की तत्काल प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.’

भारत की अध्यक्षता में यूएनएससी ने अफगानिस्तान पर मजबूत प्रस्ताव पारित किया

भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने एक सुदृढ़ प्रस्ताव पारित किया जिसमें मांग की गई कि अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकी देने या आतंकवादियों को पनाह देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.

प्रस्ताव में उम्मीद की गई है कि तालिबान अफगानों और सभी विदेशी नागरिकों के देश से सुरक्षित और व्यवस्थित ढंग से जाने देने के संबंध में उसके द्वारा जताई गई प्रतिबद्धताओं का पालन करेगा.

सुरक्षा परिषद ने सोमवार को फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव को स्वीकार किया, जिसमें 13 सदस्यों ने पक्ष में मतदान किया और इसके खिलाफ कोई मत नहीं पड़ा और स्थायी, वीटो-धारक सदस्य रूस और चीन अनुपस्थित रहे.

तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जे के बाद अफगानिस्तान की स्थिति पर शक्तिशाली 15-देशों वाली परिषद द्वारा अपनाया गया यह पहला प्रस्ताव है और इसे अगस्त के महीने के लिए सुरक्षा परिषद की भारत की अध्यक्षता के अंतिम दिन लाया गया.

प्रस्ताव में संप्रभुता, स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता और अफगानिस्तान की राष्ट्रीय एकता के लिए उसकी मजबूत प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई और 26 अगस्त को काबुल में हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास हमलों की निंदा की गई है.

यूएनएससी के प्रस्ताव में तालिबान द्वारा हमले की निंदा पर ध्यान दिया गया.

प्रस्ताव में कहा गया है, ‘27 अगस्त, 2021 का तालिबान का बयान जिसमें तालिबान ने प्रतिबद्धता जताई थी कि अफगान विदेश यात्रा करने में सक्षम होंगे, अफगानिस्तान को कभी भी छोड़ सकते हैं, परिषद उम्मीद करती है कि तालिबान इन और अन्य सभी प्रतिबद्धताओं का पालन करेगा.’

परिषद ने प्रस्ताव के माध्यम से काबुल में हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के आसपास ‘खतरनाक सुरक्षा स्थिति’ पर भी ध्यान दिया और ‘चिंता व्यक्त की कि ऐसे खुफिया संकेत है कि क्षेत्र में और आतंकवादी हमले हो सकते हैं. प्रस्ताव में कहा गया है कि आगे संभावित हमलों को रोकने के लिए कदम उठाने और काबुल हवाई अड्डे के आसपास कड़ी सुरक्षा करने का अनुरोध किया जाता है.

संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने वोट के अपने स्पष्टीकरण में प्रस्ताव के माध्यम से कहा, ‘हमने एक बार फिर अफगानिस्तान में आतंकवाद के गंभीर खतरे से निपटने की तत्काल आवश्यकता पर बात की है. पिछले हफ्ते काबुल में हुए भीषण हमले ने आईएसआईएस-के जैसे आतंकवादी समूहों के वास्तविक खतरे को प्रदर्शित किया.’

उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति जो बाइडन ने स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका हमारी सुरक्षा और हमारे लोगों की रक्षा के लिए जो आवश्यक होगा, वह करेगा. और पूरा अंतरराष्ट्रीय समुदाय यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि अफगानिस्तान फिर कभी आतंकवाद के लिए सुरक्षित पनाहगाह न बने.’

उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद को उम्मीद है कि तालिबान उन अफगानों और विदेशी नागरिकों को सुरक्षित मार्ग की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर खरा उतरेगा, जो अफगानिस्तान छोड़ना चाहते हैं.

रूस और चीन द्वारा अनुपस्थित रहने पर उन्होंने कहा, ‘हम रूस और चीन के अनुपस्थित होने से निराश हैं.’

रूस के स्थायी प्रतिनिधि वसीली नेबेंजिया ने कहा कि मॉस्को को ‘अफगानिस्तान पर प्रस्ताव पर वोट के दौरान’ अनुपस्थित रहने के लिए मजबूर किया गया था ‘क्योंकि मसौदा बनाने वालों ने हमारी सैद्धांतिक चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया था.’

चीनी राजदूत गेंग शुआंग ने कहा कि संबंधित देशों ने पिछले शुक्रवार शाम को मसौदा प्रस्ताव प्रसारित किया था. उन्होंने कहा, ‘चीन को इस प्रस्ताव को अपनाने की आवश्यकता और इसकी सामग्री के बारे में बहुत संदेह है. इसके बावजूद, चीन ने अभी भी चर्चा में रचनात्मक रूप से भाग लिया है और रूस के साथ महत्वपूर्ण और उचित संशोधनों को सामने रखा है. दुर्भाग्य से, हमारे संशोधन पूरी तरह से स्वीकार नहीं किए गए हैं.’

संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन की राजदूत बारबरा वुडवर्ड ने कहा कि यह प्रस्ताव अफगानिस्तान की स्थिति पर एकीकृत अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

चीन, पाकिस्तान और तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान का संभावित गठजोड़ चिंता का विषय: पी. चिदंबरम

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने बुधवार को कहा कि अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक प्रस्ताव पारित करने पर हमारा खुद को बधाई देना जल्दबाजी है और आगाह किया कि चीन, पाकिस्तान और तालिबान के नियंत्रण वाले अफगानिस्तान का संभावित गठजोड़ चिंता का विषय है.

भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने एक सुदृढ़ प्रस्ताव पारित किया जिसमें मांग की गई कि अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकी देने या आतंकवादियों को पनाह देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.

प्रस्ताव में उम्मीद की गई है कि तालिबान अफगानों और सभी विदेशी नागरिकों के देश से सुरक्षित और व्यवस्थित ढंग से जाने देने के संबंध में उसके द्वारा जताई गई प्रतिबद्धताओं का पालन करेगा.

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए चिदंबरम ने कहा कि सरकार अफगानिस्तान पर यूएनएससी द्वारा पारित किए गए प्रस्ताव पर अपने आप को बधाई दे रही है.

उन्होंने ट्वीट किया, ‘प्रस्ताव’ के दो अर्थ हैं. पहला यह है कि मुद्दा ‘हल’ कर लिया गया है या भारत की संतुष्टि के लिए निपटा दिया गया है. यूएनएससी में यह नहीं हुआ. दूसरा अर्थ यह है कि हमने अपनी इच्छाओं को कागज पर लिख दिया है और उस कागज पर कुछ अन्य के हस्ताक्षर करा लिए हैं. यूएनएससी में कल यही हुआ.’

चिदंबरम ने कहा कि अपने आप को बधाई देना बहुत जल्दबाजी है. उन्होंने आगाह किया कि चीन, पाकिस्तान और तालिबान के नियंत्रण वाले अफगानिस्तान का संभावित गठजोड़ चिंता का विषय है.

सुरक्षा परिषद ने सोमवार को फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका प्रायोजित प्रस्ताव को मंजूरी दी थी जिसके पक्ष में परिषद के 15 में से 13 सदस्यों ने वोट दिया जबकि विपक्ष में किसी ने भी नहीं. रूस और चीन जैसे सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों ने हालांकि मतदान प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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