अलगाववादी मुहिम के अगुवा रहे 92 वर्षीय सैयद अली शाह गिलानी लंबे समय से बीमार थे. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के संस्थापक सदस्य रहे गिलानी ने साल 2000 की शुरुआत में तहरीक-ए-हुर्रियत का गठन किया था, जिसे उन्होंने जून 2020 में छोड़ दिया था.
श्रीनगर: जम्मू कश्मीर में तीन दशकों से अधिक समय तक अलगाववादी मुहिम का नेतृत्व करने वाले एवं पाकिस्तान समर्थक सैयद अली शाह गिलानी का बुधवार रात उनके आवास पर निधन हो गया. अधिकारियों ने यह जानकारी दी.
अलगाववादी नेता गिलानी पिछले दो दशक से अधिक समय से गुर्दे संबंधी बीमारी से पीड़ित थे. इसके अलावा वह बढ़ती आयु संबंधी कई अन्य बीमारियों से जूझ रहे थे. गिलानी के परिवार के एक सदस्य ने बताया कि गिलानी का निधन बुधवार रात साढ़े 10 बजे हुआ.
पूर्ववर्ती राज्य में सोपोर से तीन बार विधायक रहे गिलानी 2008 के अमरनाथ भूमि विवाद और 2010 में श्रीनगर में एक युवक की मौत के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों का चेहरा बन गए थे.
वह हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के संस्थापक सदस्य थे, लेकिन वह उससे अलग हो गए और उन्होंने 2000 की शुरुआत में तहरीक-ए-हुर्रियत का गठन किया था. आखिरकार उन्होंने जून 2020 में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से भी विदाई ले ली.
कश्मीर में व्यापक पैमाने पर मोबाइल संपर्क सेवा बंद किए जाने के साथ ही कड़ी सुरक्षा और पाबंदियों के बीच उनका अंतिम संस्कार किया गया. उनके करीबी सहयोगियों ने बताया कि गिलानी को उनकी इच्छा के अनुसार उनके आवास के पास स्थित एक मस्जिद में दफनाया गया. हालांकि, उनके बेटे नईम ने बताया कि वे उन्हें श्रीनगर में ईदगाह में दफनाना चाहते थे.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने गिलानी के निधन पर शोक व्यक्त किया है. खान ने बताया कि उनके देश में एक दिन का आधिकारिक शोक रखते हुए देश का झंडा आधा फहराया जाएगा.
We in Pakistan salute his courageous struggle & remember his words: "Hum Pakistani hain aur Pakistan Humara hai". The Pakistan flag will fly at half mast and we will observe a day of official mourning.
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) September 1, 2021
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया कि वे गिलानी के निधन की खबर से दुखी हैं.
उन्होंने कहा, ‘हम भले ही ज्यादातर चीजों पर सहमत नहीं थे, लेकिन मैं उनकी दृढ़ता और उनके भरोसे पर अडिग रहने के लिए उनका सम्मान करती हूं.’
Saddened by the news of Geelani sahab’s passing away. We may not have agreed on most things but I respect him for his steadfastness & standing by his beliefs. May Allah Ta’aala grant him jannat & condolences to his family & well wishers.
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) September 1, 2021
जम्मू-कश्मीर में तीन दशकों से अधिक समय तक अलगाववादी मुहिम का नेतृत्व करने वाले गिलानी का जन्म 29 सितंबर 1929 को बांदीपोरा जिले के एक गांव में हुआ था. उन्होंने लाहौर के ‘ओरिएंटल कॉलेज’ से अपनी पढ़ाई पूरी की.
‘जमात-ए-इस्लामी’ का हिस्सा बनने से पहले उन्होंने कुछ वर्ष तक एक शिक्षक के तौर पर नौकरी की. कश्मीर में अलगाववादी नेतृत्व का एक मजूबत स्तंभ माने जाने वाले गिलानी भूतपूर्व राज्य में सोपोर निर्वाचन क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे.
उन्होंने 1972, 1977 और 1987 में विधानसभा चुनाव जीता हालांकि 1990 में कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने के बाद वह चुनाव-विरोधी अभियान के अगुवा हो गए.
वे हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जो 26 पार्टियों का अलगाववादी गठबंधन था. लेकिन बाद में उन नरमपंथियों ने इस गठबंधन से नाता तोड़ लिया था, जिन्होंने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए केंद्र के साथ बातचीत की वकालत की थी.
इसके बाद 2003 में उन्होंने तहरीक-ए-हुर्रियत का गठन किया. हालांकि, 2020 में उन्होंने हुर्रियत राजनीति को पूरी तरह अलविदा कहने का फैसला किया और कहा कि 2019 में अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने के केंद्र के फैसले के बाद दूसरे स्तर के नेतृत्व का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा.
गिलानी को 2002 से ही गुर्दे संबंधी बीमारी थी और इसके चलते उनका एक गुर्दा निकाला भी गया था. पिछले 18 महीने से उनकी हालत लगातार बिगड़ रही थी. वह 92 वर्ष के थे. उनके परिवार में उनके दो बेटे और छह बेटियां हैं. उन्होंने 1968 में अपनी पहली पत्नी के निधन के बाद दोबारा विवाह किया था.
मुख्यधारा के नेताओं के विरोधी होने के बावजूद गिलानी को एक सभ्य नेता के रूप में देखा जाता था. सज्जाद लोन ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है, जिन्होंने कभी गिलानी पर ऐसे उकसाने वाले बयान देने का आरोप लगाया था, जिसके कारण उनके पिता अब्दुल गनी लोन की हत्या की गई.
सज्जाद लोन ने कहा, ‘गिलानी साहब के परिवार के साथ मेरी संवेदनाएं हैं. वह मेरे दिवंगत पिता के सम्मानित सहकर्मी थे. अल्लाह उन्हें जन्नत बख्शे.’
साल 1981 में गिलानी का पासपोर्ट 1981 में जब्त कर लिया गया था और फिर उसे केवल एक बार 2006 में हज यात्रा के लिए उन्हें लौटाया गया. उनके खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), पुलिस और आयकर विभाग में कई मामले लंबित थे.
मार्च 2019 में ईडी ने गिलानी पर विदेशी मुद्रा कानून के उल्लंघन कर कथित तौर पर 10,000 डॉलर रखने के 17 साल पुराने एक मामले में 14.40 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था.
बुधवार को कश्मीर घाटी में मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर उनके निधन की सूचना दी गई और गिलानी समर्थक नारे लगाए गए.
पुलिस ने बताया कि एहतियात के तौर पर कश्मीर में कर्फ्यू जैसे प्रतिबंध लगाए गए हैं. गिलानी के आवास के आसपास भारी पुलिस बंदोबस्त देखा गया और वहां जाने वाले रास्तों को सील कर दिया गया. किसी को भी वहां जाने की अनुमति नहीं दी गई है. इंटरनेट सेवाएं भी बंद होने की संभावना है.
वे जिस इलाके, सोपोर से ताल्लुक रखते थे, वहां भी सख्त पाबंदियां लगाई गई हैं. कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए संवेदनशील स्थानों पर बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है.
एनडीटीवी के अनुसार, गिलानी की मौत के बाद कुछ हुर्रियत नेताओं को हिरासत में लिया गया था, जिसमें अनंतनाग के मुख्तार अहमद वाजा भी शामिल थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)