हम कश्मीर समेत मुसलमानों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाएंगे: तालिबान प्रवक्ता

दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा कि एक मुसलमान के रूप में हमारा अधिकार है कि अगर कश्मीर में, भारत में या किसी अन्य देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ अत्याचार किया जाता है तो हम कहेंगे कि उन्हें अधिकार देना चाहिए. हमने पहले भी कहा है और भविष्य में भी ऐसा ही कहेंगे, लेकिन हम कोई सैन्य अभियान नहीं चलाएंगे या किसी देश के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करेंगे. यह हमारी नीति नहीं है.

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दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रवक्ता सुहैल शाहीन. (फोटो: रॉयटर्स)

दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा कि एक मुसलमान के रूप में हमारा अधिकार है कि अगर कश्मीर में, भारत में या किसी अन्य देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ अत्याचार किया जाता है तो हम कहेंगे कि उन्हें अधिकार देना चाहिए. हमने पहले भी कहा है और भविष्य में भी ऐसा ही कहेंगे, लेकिन हम कोई सैन्य अभियान नहीं चलाएंगे या किसी देश के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करेंगे. यह हमारी नीति नहीं है.

दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रवक्ता सुहैल शाहीन. (फोटो: रॉयटर्स)

इस्लामाबाद/वॉशिंगटन: तालिबान के शासन तले अफगानिस्तान की भूमि का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए किए जाने की आशंका के बीच समूह ने कहा है कि वह कश्मीर सहित हर कहीं मुस्लिमों के अधिकार के लिए आवाज उठाएगा. हालांकि तालिबान ने कहा कि उसकी किसी भी देश के खिलाफ ‘सशस्त्र अभियानों’ को अंजाम देने की नीति नहीं है.

दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने बृहस्पतिवार (दो सितंबर) को वीडियो लिंक के जरिये बीबीसी को दिए विशेष साक्षात्कार में कहा, ‘हम आवाज उठाएंगे और कहेंगे कि मुस्लिम आपके अपने लोग हैं, आपके अपने नागरिक और उन्हें आपके कानून के तहत समान अधिकार मिलने चाहिए.’

शाहीन ने कहा कि मुस्लिम होने के नाते यह समूह का अधिकार है कि वह कश्मीर तथा किसी भी अन्य देश में रह रहे मुस्लिमों के लिए बिल्कुल उसी तरह से आवाज उठाए, जैसे भारत ने अफगान हिंदुओं और सिखों के मुद्दों को उठाया.

रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने एक उदाहरण का हवाला दिया कि कैसे भारत ने अफगानिस्तान के एक पूर्वी प्रांत में एक गुरुद्वारे में एक तालिबानी लड़ाके के जाने का मामला उठाया था.

शाहीन अगस्त की शुरुआत में भारतीय मीडिया रिपोर्टों का जिक्र कर रहे थे कि निशान साहब को अफगानिस्तान के पक्तिया प्रांत में गुरु थला साहिब से हटा दिया गया था.

जबकि विदेश मंत्रालय ने सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की, सरकारी सूत्रों ने इस कृत्य की निंदा की थी.

उन्होंने कहा कि करीब दस दिन पहले एक घटना घटी. किसी ने कहा कि तालिबान से एक व्यक्ति आया था और उन्हें गुरुद्वारे से धार्मिक ध्वज उतारने के लिए कहा था. हालांकि हम अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं हैं. हमने उन्हें अपने धार्मिक रीति-रिवाज पूरी करने की आजादी दी है.

उन्होंने कहा, ‘ठीक उसी तरह हमारे पास ढेर सारे संदेश आए. एक मुसलमान के रूप में हमारा अधिकार है कि अगर कश्मीर में, भारत में या किसी अन्य देश में, मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार किया जाता है तो हम कहेंगे कि देखिए ये मुसलमान आपके लोग हैं, आपके नागरिक हैं. आपके कानून कहते हैं कि सभी समान हैं. उस पर अमल करना चाहिए और उन्हें अधिकार देना चाहिए. हमने पहले भी कहा है और भविष्य में भी ऐसा ही कहेंगे. लेकिन हम कोई सैन्य अभियान नहीं चलाएंगे या किसी देश के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेंगे. यह हमारी नीति नहीं है.’

वहीं, अमेरिका के साथ दोहा समझौते की शर्तों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी ‘किसी भी देश के खिलाफ सशस्त्र अभियान करने की कोई नीति नहीं है.’

शाहीन ने कहा कि हम किसी भी समूह या संस्था को किसी अन्य देश के खिलाफ अफगान धरती का उपयोग करने की अनुमति नहीं देंगे.

इंटरव्यू के दौरान शाहीन से उन आरोपों के बारे में पूछा गया कि हक्कानी नेटवर्क 2008 के भारतीय दूतावास पर हमले के पीछे था और तालिबान शासन के दौरान 1999 में आईसी-814 एयर इंडिया विमान के अपहरण की सुविधा मुहैया कराई थी.

इन सभी मामलों में अपनी भूमिका से इनकार करते हुए शाहीन ने यह भी कहा कि हक्कानी नेटवर्क और तालिबान में कोई अंतर नहीं. उन्होंने कहा कि हक्कानी कोई समूह नहीं हैं. वो अफगानिस्तान इस्लामी अमीरात का हिस्सा है. वो अफगानिस्तान इस्लामी अमीरात हैं.

शाहीन ने कहा कि 1999 के अपहरण में तालिबान की कोई भूमिका नहीं थी और उसने भारत सरकार को बंधकों को मुक्त करने में मदद की. भारत को जैश-ए-मोहम्मद के मसूद अजहर समेत तीन आतंकियों को छोड़ना पड़ा था.

शाहीन ने कहा कि अपहरण के दौरान तालिबान की रचनात्मक भूमिका के लिए भारत को आभारी होना चाहिए था.

उन्होंने इस बात से भी इनकार किया कि तालिबान पाकिस्तान के लिए एक प्रॉक्सी के रूप में काम कर रहा है. उन्होंने कहा, हमारे बारे में भारत की नीति भ्रामक प्रचार पर आधारित है.

तालिबान ने भारत की चिंताएं को दूर करने के लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने के संकेत दिए

विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने शुक्रवार को कहा कि भारत और अमेरिका, अफगानिस्तान में पाकिस्तान के कदमों पर करीबी नजर रख रहे हैं.

श्रृंगला ने कहा कि भारत की तालिबान के साथ सीमित बातचीत रही है, अफगानिस्तान के नए शासकों ने संकेत दिया है कि वे भारत की चिंताओं को दूर करने के लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाएंगे.

विदेश सचिव ने वॉशिंगटन की अपनी तीन दिवसीय यात्रा समाप्त होने पर भारतीय पत्रकारों के एक समूह से कहा, ‘जाहिर तौर पर हमारी तरह वे भी करीब से नजर रख रहे हैं और हमें बारीकी से पाकिस्तान के कदमों पर नजर रखनी होगी.’

उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में किस प्रकार के हालात बनते हैं, इस संदर्भ में अमेरिका इंतजार करो और देखो की नीति अपनाएगा. भारत की भी यही नीति है.

उन्होंने कहा, ‘इसका यह मतलब नहीं है कि आप कुछ नहीं करो. इसका मतलब है कि आपको करना होगा. जमीन पर हालात बहुत नाजुक है और आपको देखना होगा कि यह कैसे बदलते हैं. आपको यह देखना होगा कि सार्वजनिक रूप से दिए गए आश्वासनों पर वाकई में अमल हुआ अथवा नहीं, और चीजें किस प्रकार से काम कर रही हैं.’

विदेश सचिव ने कहा, ‘उनके साथ (तालिबान) हमारी बातचीत बहुत सीमित रही है. ऐसा नहीं है कि हमारी कोई ठोस बातचीत हुई है. लेकिन अभी तक जो भी बातचीत हुई है, उसमें कम से कम तालिबान यह संकेत देते दिखाई दिया है कि वे इससे निपटने में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाएंगे.’

वह कतर में भारत के राजदूत की तालिबान के एक वरिष्ठ नेता के साथ हाल में हुई बैठक के बारे में एक सवाल का जवाब दे रहे थे.

उन्होंने कहा, ‘हमने उन्हें बताया कि हम चाहते हैं कि उनके क्षेत्र से हमारे या अन्य देशों के खिलाफ कोई आतंकवादी खतरा पैदा न हो, हम चाहते हैं कि वे महिलाओं, अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशील रहे. मुझे लगता है कि उन्होंने अपनी तरफ से आश्वस्त किया है.’

उन्होंने कहा, ‘15 अगस्त को देखिए कि ऐसी स्थिति थी, जिसमें अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी अचानक देश से चले गए. तालिबान आ गया. हालात इतनी तेजी से बदल रहे हैं कि इस समय किसी भी चीज पर टिप्पणी करना मुश्किल है.’

श्रृंगला ने कहा, ‘वे जाहिर तौर पर देखेंगे कि अफगानिस्तान के हालात में अलग-अलग तत्व क्या भूमिका निभाते हैं. पाकिस्तान, अफगानिस्तान का पड़ोसी है. उन्होंने तालिबान का समर्थन किया और उसे संरक्षण दिया. वहां कई ऐसे तत्व हैं, जिनका पाकिस्तान समर्थन करता है.’

साथ ही उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की भारत की अध्यक्षता के दौरान अफगानिस्तान पर पारित प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध सूची में शामिल जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा समेत प्रतिबंधित संगठनों का जिक्र किया गया. अफगानिस्तान में इन दो आतंकवादी समूहों के आसानी से घुसने, उनकी भूमिका के बारे में हमें चिंता है और हम सावधानीपूर्वक इस पर नजर रखेंगे. इस संदर्भ में पाकिस्तान की भूमिका देखनी होगी.’

एक सवाल के जवाब में विदेश सचिव ने कहा कि अमेरिकियों ने हमेशा कहा है कि तालिबान ने उनसे वादा किया है कि वे किसी भी तरीके से अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल किसी अन्य देश को नुकसान पहुंचाने में नहीं करने देंगे. अमेरिका ने तालिबान को स्पष्ट कर दिया है कि अगर अफगानिस्तान से कोई भी आतंकवादी गतिविधि होती है तो वे उसे जवाबदेह ठहराएंगे.

बता दें कि,\ तालिबान के साथ औपचारिक संपर्क न रखने के दशकों पुराने नियम को खत्म करते हुए कुछ दिन पहले विदेश मंत्रालय ने कहा था कि बीते 31 अगस्त को कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के अनुरोध पर दोहा में उसके राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की.

उन्होंने भारत की उन चिंताओं को उठाया था कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी तरह से भारत विरोधी गतिविधियों और आतंकवाद के लिए नहीं किया जाना चाहिए.

इसके बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बृहस्पतिवार (दो सितंबर) को साप्ताहिक ब्रीफिंग में कहा था, ‘हमारा ध्यान इस बात पर है कि अफगान धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों और किसी भी तरह के आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए और तालिबान को मान्यता देने की संभावनाओं के बारे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी.’

मित्तल की स्तानिकजई से मुलाकात के बारे में एक सवाल के जवाब में बागची ने कहा था, ‘हमने अपनी चिंताओं से अवगत करवाने के लिए इस अवसर का लाभ उठाया, चाहे यह लोगों को अफगानिस्तान से निकालने से संबंधित हों या भी आतंकवाद के बारे में हो. हमें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली.’

हालांकि, अभी तक तालिबान के किसी भी प्रवक्ता या समूह ने भारत के साथ संपर्क की औपचारिक पुष्टि नहीं की है, जबकि विदेशी राजनयिकों के साथ बैठक की घोषणा समूह तुरंत कर देता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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