एल्गार परिषद मामले में सबसे पहले गिरफ़्तार हुए रोना विल्सन के पिता का बीते अगस्त में निधन हो गया था. उनके निधन के तीस दिन पूरे होने पर चर्च में आयोजित मास में शामिल होने के लिए एनआईए अदालत ने विल्सन को 13 से 27 सितंबर तक अस्थायी ज़मानत दी है.
मुंबई: एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किए जाने वाले 16 आरोपियों में से पहले रोना विल्सन को उनके पिता की मृत्यु के 30 दिन बाद आयोजित होने वाले कार्यक्रम में शामिल होने के लिए एनआईए अदालत ने दो सप्ताह की अस्थायी जमानत दी है.
विल्सन, जो एक कैदियों के अधिकार कार्यकर्ता हैं, को जून 2018 में पुणे पुलिस ने एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किया था. उन समेत मामले के अन्य आरोपियों पर कठोर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप हैं, जिससे जमानत मिलना लगभग असंभव हो जाता है.
मंगलवार को एनआईए की विशेष अदालत ने विल्सन को पिता के अंतिम रिवाजों में हिस्सा लेने के लिए अस्थायी जमानत की मंजूरी दे दी. उनके पिता का पिछले महीने केरल में उनके घर पर निधन हो गया था.
बार एंड बेंच के मुताबिक, विल्सन के वकील नीरज यादव ने एनआईए अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल के पिता का 18 अगस्त, 2021 को निधन हो गया था और उन्हें अगले दिन दफना दिया गया था. हालांकि, रवायतों के अनुसार, उनके गुजरने के 30 दिन बाद 16 सितंबर 2021 को चर्च में एक समारोह (मास) का आयोजन किया गया है.
विल्सन ने मानवीय आधार पर जमानत मांगी, ताकि वे अपने परिजनों से मिल सकें और अपने परिवार द्वारा आयोजित कार्यक्रम का हिस्सा बन सकें.
लाइव लॉ के अनुसार, विल्सन ने 13 सितंबर, 2021 से दो सप्ताह की अंतरिम जमानत मांगते हुए कहा था कि अगर उन्हें अपने परिवार से मिलने दिया जाता है, तो इससे उन्हें ‘शांति’ मिलेगी.
एनआईए ने उनकी जमानत अर्जी का विरोध किया था. हालांकि विशेष न्यायाधीश डीई कोठालीकर ने कुछ शर्तों के साथ उन्हें 13 सितंबर से 27 सितंबर तक अंतरिम जमानत दे दी.
उन्होंने कहा कि विल्सन को केरल में उनकी यात्राओं और ठहरने संबंधी जानकारी एनआईए अधीक्षक को देनी होगी, साथ ही 14 और 24 सितंबर को स्थानीय थाने में उपस्थित होना होगा.
अदालत ने उन्हें उनका पासपोर्ट सौंपने और केरल से बाहर न जाने को भी कहा है. अदालत ने कहा कि विल्सन को केरल के कोल्लम में स्थित अपने गृह स्थान नींदाकारा से बाहर नहीं जाना चाहिए और कहा कि जमानत विस्तार का आग्रह मंजूर नहीं किया जाएगा.
विल्सन एल्गार परिषद मामले में जमानत पाने वाले 16 आरोपियों में से तीसरे हैं. पहले अस्सी साल के कवि वरवरा राव को फरवरी में मेडिकल आधार पर जमानत दी गई थी.
इसके बाद अगस्त में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुरेंद्र गाडलिंग को उनकी मां की बरसी के लिए मानवीय आधार पर नौ दिनों की अस्थायी जमानत दी थी.
मामले के एक अन्य आरोपी स्टेन स्वामी इस साल 5 जुलाई को गुजर गए थे. वे कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद के बाद मेडिकल जमानत का इंतजार कर रहे थे.
इस साल फरवरी में द वायर ने एक अमेरिकी डिजिटल फॉरेंसिक फर्म आर्सेनल कंसल्टिंग के कुछ निष्कर्षों का खुलासा किया था. फर्म ने कहा था कि विल्सन को नई दिल्ली से गिरफ्तार किए जाने से कम से कम 22 महीने पहले उनके लैपटॉप से छेड़छाड़ की गई थी और एक साइबर हमलावर ने कथित तौर पर ‘कम से कम 10 आपत्तिजनक पत्र’ उनके लैपटॉप में डाले थे.
इनके आधार पर विल्सन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में उनके अभियोजन को चुनौती दी है.
विल्सन को पुणे पुलिस ने मामले की जांच के दौरान जून 2018 में गिरफ्तार किया था. वर्तमान में वे न्यायिक हिरासत में हैं और नवी मुंबई के तलोजा जेल में बंद हैं.
पुलिस ने आरोप लगाया था कि एल्गार परिषद की सभा का आयोजन करने के एक दिन बाद एक जनवरी 2018 को पुणे के बाहरी इलाके कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़क उठी थी, जिसके बाद पुणे पुलिस ने विल्सन एवं अन्य कार्यकर्ताओं पर मामला दर्ज किया था.
आरोप है कि 31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद की बैठक में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिए गए थे, जिससे अगले दिन कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़क गई. पुलिस का कहना था कि कार्यक्रम को माओवादियों का भी समर्थन हासिल था.
महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के कुछ समय बाद जांच पुणे पुलिस से लेकर एनआईए को सौंप दी गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)