कृषि क़ानून पर सुप्रीम कोर्ट की समिति के सदस्य ने सीजेआई को लिखा- हमारी रिपोर्ट सार्वजनिक करें

तीन कृषि क़ानूनों पर विचार कर समाधान सुझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के सदस्य और शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घानवत ने अपने पत्र में कहा है कि उनकी रिपोर्ट में किसानों की सभी चिंताओं का हल निकाला गया है. यदि इन्हें लागू किया जाता है तो वे अपना आंदोलन ख़त्म कर देंगे.

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मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत. (फाइल फोटो: पीटीआई)

तीन कृषि क़ानूनों पर विचार कर समाधान सुझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के सदस्य और शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घानवत ने अपने पत्र में कहा है कि उनकी रिपोर्ट में किसानों की सभी चिंताओं का हल निकाला गया है. यदि इन्हें लागू किया जाता है तो वे अपना आंदोलन ख़त्म कर देंगे.

मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत के दौरान जुटी भीड़. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों पर विचार कर समाधान सुझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के एक सदस्य ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना को पत्र लिखकर मांग की है कि उनकी रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए.

शेतकारी संगठन के अध्यक्ष और समिति के सदस्य अनिल जे. घानवत ने बीते एक सितंबर को जस्टिस रमना को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा है कि समिति ने किसानों की सभी चिंताओं का समाधान निकाला है और यदि उनके सुझावों को लागू किया जाता है तो किसान अपने आंदोलन को खत्म कर देंगे.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक उन्होंने कहा, ‘समिति के सदस्य के रूप में, विशेष रूप से किसान समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के चलते मुझे इस बात का दुख है कि किसानों द्वारा उठाया गया मुद्दा अभी तक हल नहीं हुआ है और आंदोलन जारी है. मुझे लगता है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिपोर्ट पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं माननीय सर्वोच्च न्यायालय से विनम्रतापूर्वक निवेदन कर रहा हूं कि किसानों की संतुष्टि और गतिरोध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए कृपया रिपोर्ट को जल्द से जल्द जारी कर सिफारिशें लागू की जाएं.’

मालूम हो कि इसी साल के जनवरी महीने की 12 तारीख को तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अगले आदेश तक तीनों कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी थी.

साथ ही न्यायालय ने इन कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले किसानों और सरकार के बीच व्याप्त गतिरोध दूर करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी, जिसके सदस्य भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घानवत, अर्थशास्त्री प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी थे.

हालांकि किसान संगठनों के विरोध के चलते भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान ने खुद को समिति से अलग कर लिया था.

कमेटी बनने के बाद किसानों ने कहा था कि वे इस समिति के सामने पेश नहीं होंगे. उनका कहना था कि कोर्ट की समिति के सदस्य सरकार के समर्थक है, जो इन कानूनों के पक्षधर हैं. इसी को लेकर मान पीछे हट गए थे.

घानवत ने कहा कि समिति ने बड़ी संख्या में किसानों और कई हितधारकों से बातचीत करने के बाद 19 मार्च 2021 को निर्धारित समय से पहले अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी थी.

रिपोर्ट सार्वजनिक करने के अपनी मांग को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा, ‘जो कुछ भी देश के लिए सही होगा, सुप्रीम कोर्ट को लगेगा, वो आदेश हो जाएगा या सरकार जो कदम लेना चाहे ले, लेकिन ठंडे बस्ते में डालकर क्या निकलने वाला है… दर्द होता है ऐसे किसानों को बारिश में भीगते देखते हुए. इसलिए हमने आग्रह किया है. ऐसे ही रहा तो कई साल गुजर सकते हैं.’

समिति के एक अन्य सदस्य अशोक गुलाटी का कहना है कि ये सुप्रीम कोर्ट का विशेषाधिकार है कि वे रिपोर्ट सार्वजनिक करना चाहते हैं या नहीं.

उन्होंने कहा, ‘समिति का गठन माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया गया था. हमने किसानों के हित को सर्वोपरि रखते हुए समयसीमा के भीतर अपनी क्षमता के अनुसार रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. अब यह सुप्रीम कोर्ट की माननीय पीठ पर निर्भर है कि वे इसका उपयोग कैसे करना चाहते हैं, कैसे और कब इसे किसानों और सरकार के साथ साझा करना चाहते हैं. इसे सार्वजनिक करना उनका विशेषाधिकार है. मैं इस मुद्दे को उनके निर्णय पर छोड़ता हूं.’

मालूम हो कि केंद्र ने विवादास्पद कानून को निरस्त करने से इनकार कर दिया है, जबकि किसान नेताओं ने कहा था कि वे अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं और उनकी ‘घर वापसी’ सिर्फ कानून वापसी के बाद होगी.

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