देश की विविध स्थितियों को देखते हुए घर-घर जाकर कोविड-19 टीके लगाना संभव नहीं: सुप्रीम कोर्ट

एक याचिका में भारत सरकार और सभी राज्यों को समाज के कमज़ार तबकों, शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए घर-घर जाकर कोविड-19 रोधी टीके लगाए जाने की व्यवस्था करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. याचिका के अनुसार, इन लोगों को कोविन पोर्टल पर ख़ुद को पंजीकृत करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.

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(फोटो: पीटीआई)

एक याचिका में भारत सरकार और सभी राज्यों को समाज के कमज़ार तबकों, शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए घर-घर जाकर कोविड-19 रोधी टीके लगाए जाने की व्यवस्था करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. याचिका के अनुसार, इन लोगों को कोविन पोर्टल पर ख़ुद को पंजीकृत करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि देश की विविध स्थितियों को देखते हुए घर-घर जाकर कोविड-19 रोधी टीके लगाना संभव नहीं है और वह मौजूदा नीति को खत्म करने के लिए कोई सामान्य निर्देश पारित नहीं कर सकता.

शीर्ष अदालत ने शारीरिक रूप से अक्षम और समाज के कमजोर तबके के लिए ‘डोर-टू-डोर’ (घर-घर जाकर) कोविड-19 टीकाकरण व्यवस्था की मांग करने वाले वकीलों की एक एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया.

न्यायालय ने कहा कि टीकाकरण अभियान पहले से ही चल रहा है और देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी को टीके की पहली खुराक दी जा चुकी है.

जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस हिमा कोहली की तीन सदस्यीय पीठ ने याचिकाकर्ता ‘यूथ बार एसोसिएशन’ को स्वास्थ्य मंत्रालय में सक्षम प्राधिकारी से संपर्क करने का निर्देश दिया.

पीठ ने कहा, ‘लद्दाख में स्थिति केरल से अलग है. उत्तर प्रदेश में स्थिति किसी अन्य राज्य से अलग है. शहरी इलाकों की स्थिति भी ग्रामीण इलाकों से अलग है. इस विशाल देश में हर राज्य में तरह-तरह की समस्याएं हैं. आपको पूरे देश के लिए एक आदेश चाहिए. टीकाकरण अभियान पहले से ही चल रहा है और देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी को टीकों की पहली खुराक दी जा चुकी है. कठिनाई को समझना चाहिए. यह प्रशासनिक मामला है, हम मौजूदा नीति खत्म नहीं कर सकते.’

शीर्ष अदालत ने एसोसिएशन की ओर से पेश हुए वकील बेबी सिंह से कहा कि इतने संवेदनहीन तरीके से याचिका दायर नहीं की जा सकती.

याचिका में भारत सरकार और सभी राज्यों को समाज के कमजोर तबकों, शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए घर-घर जाकर कोविड-19 रोधी टीके लगाए जाने की व्यवस्था करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था, क्योंकि इन लोगों को कोविन पोर्टल पर खुद को पंजीकृत करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.

पीठ ने कहा, ‘टीकाकरण कार्यक्रम पहले से ही चल रहा है और यह न्यायालय स्वत: संज्ञान लेकर स्थिति की निगरानी कर रही है.’

पीठ ने कहा कि देश की विविधता को देखते हुए सामान्य दिशा-निर्देश पारित करना संभव और व्यावहारिक नहीं है. पीठ ने कहा, ‘किसी भी निर्देश को पारित करने से सरकार की मौजूदा टीकाकरण नीति प्रभावित नहीं होनी चाहिए.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, जब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय को समयबद्ध तरीके से प्रतिनिधित्व पर विचार करने के लिए कहा जाना चाहिए तो पीठ ने कहा, ‘हम जानते हैं कि स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी इस समय कितने दबाव में हैं, उन्हें ऑक्सीजन की आपूर्ति की तलाश करनी है. इसके अलावा अन्य पहलुओं पर गौर कर रहा है.’

बता दें कि बीते जून महीने में बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से केरल और जम्मू कश्मीर द्वारा सफलातपूर्वक चलाए जा रहे घर-घर जाकर टीकाकरण अभियान पर गौर करने और अपनी मौजूदा नीति पर उचित फैसला लेने के लिए कहा था. केंद्र की मौजूदा नीति में कहा गया है कि घर-घर जाकर टीका लगाना संभव नहीं है.

इससे पहले बीते मई महीने में बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाते हुए कहा था कि घर-घर कोविड टीकाकरण की नीति पर पुनर्विचार करें.

अदालत ने कहा था, ‘हम केंद्र सरकार से बहुत ही दुखी हैं. केंद्र सरकार के अधिकारियों ने हमें निराश किया है. आपके अधिकारी असंवेदनशील हैं. बुजुर्गों को (टीकाकरण) केंद्रों की ओर जाने के बजाय आपको (सरकार को) उन तक पहुंचना चाहिए.’

इससे पहले हाईकोर्ट ने कहा था कि यदि बीएमसी घर-घर जाकर टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने को इच्छुक है तो हाईकोर्ट उन्हें इसकी अनुमति देगा, भले ही केंद्र सरकार ने ऐसे अभियान के लिए सहमति न दी हो.

पीठ ने कहा था कि ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार घर-घर जाकर टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने की इच्छुक नहीं है. अगर बीएमसी कहती है कि वह घर-घर जाकर टीकाकरण शुरू कर सकती है तो हम अनुमति देंगे. केंद्र सरकार की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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