किसान आंदोलन: 27 सितंबर को ‘भारत बंद’ का आह्वान, संगठन ने कहा- शांतिपूर्ण रहेगा विरोध प्रदर्शन

चालीस से अधिक किसान संघों के निकाय संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि दिल्ली की सीमाओं पर लाखों किसान अपनी मर्ज़ी से विरोध प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्हें अलग-अलग राज्यों की पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वहां रहने के लिए मजबूर किया है.

New Delhi: Farmers during their Kisan Sansad at Jantar Mantar in New Delhi, Friday, July 23, 2021. (PTI Photo/Kamal Singh)(PTI07 23 2021 000100B)

चालीस से अधिक किसान संघों के निकाय संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि दिल्ली की सीमाओं पर लाखों किसान अपनी मर्ज़ी से विरोध प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्हें अलग-अलग राज्यों की पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वहां रहने के लिए मजबूर किया है.

दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 27 सितंबर के ‘भारत बंद’ के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. संगठन ने कहा कि भारत बंद शांतिपूर्ण होगा और किसान यह सुनिश्चित करेंगे कि जनता को कम से कम असुविधा का सामना करना पड़े.

मोर्चा बीते शुक्रवार को जारी बयान में कहा कि बंद सुबह छह बजे से शुरू होगा और शाम चार बजे तक जारी रहेगा. इस दौरान केंद्र और राज्य सरकार के कार्यालयों, बाजारों, दुकानों, कारखानों, स्कूलों, कॉलेजों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों को काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

बयान में कहा गया है कि सार्वजनिक और निजी परिवहन की अनुमति नहीं दी जाएगी. किसी भी सार्वजनिक समारोह की अनुमति नहीं दी जाएगी.

बंद के दौरान एंबुलेंस और दमकल सेवाओं सहित केवल आपातकालीन सेवाओं को ही काम करने की अनुमति होगी.

बयान के अनुसार, ‘किसान मोर्चा ने समाज के सभी वर्गों से किसानों के साथ आने और बंद का प्रचार करने की अपील करने को कहा है, ताकि जनता की असुविधा को कम किया जा सके.’

मोर्चा ने कहा, ‘बंद शांतिपूर्ण और स्वैच्छिक होगा और आपातकालीन सेवाओं को इससे छूट मिलेगी.’

40 से अधिक किसान संघों के निकाय संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि बंद के संबंध में आगे की योजना के लिए 20 सितंबर को मुंबई में एक ‘राज्यस्तरीय तैयारी बैठक’ आयोजित की जाएगी. उसी दिन उत्तर प्रदेश के सीतापुर में ‘किसान मजदूर महापंचायत’ का आयोजन किया जाएगा, इसके बाद 22 सितंबर को उत्तराखंड के रुड़की में ‘किसान महापंचायत’ आयोजित की जाएगी.

इसके अतिरिक्त प्रदर्शनकारी किसान 22 सितंबर से दिल्ली के टिकरी और सिंघू बॉर्डर प्रदर्शन स्थलों पर पांच दिवसीय कबड्डी लीग की मेजबानी भी करेंगे.

बयान में कहा गया है, ‘लीग में विभिन्न राज्यों की टीमों के भाग लेने की उम्मीद है, जिसमें नकद पुरस्कार दिया जाएगा.’

मोर्चा ने कहा कि किसानों ने नौ महीने से अधिक समय से अपना विरोध जारी रखा है क्योंकि सरकार विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त नहीं करने पर अडिग रही है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, इसमें कहा गया है कि दिल्ली की सीमाओं पर लाखों किसान अपनी मर्जी से विरोध प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्हें अलग-अलग राज्यों की पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वहां रहने के लिए मजबूर किया है.

इसमें कहा गया है कि भारी बारिश, कठोर गर्मी और सर्दियों के महीनों के बीच किसानों को राजमार्गों पर रहने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा है.

मोर्चा ने कहा कि किसानों का विरोध उनकी आजीविका, बुनियादी उत्पादक संसाधनों और अगली पीढ़ी के भविष्य की रक्षा करने का मामला है.

विभिन्न राज्यों के किसान तीन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर पिछले साल 25 नवंबर से दिल्ली-हरियाणा के सिंघू बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर, दिल्ली-उत्तर प्रदेश के गाजीपुर बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक- किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में नौ महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.

किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.

दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.

सरकार और यूनियनों के बीच आखिरी दौर की बातचीत 22 जनवरी को हुई थी. 26 जनवरी को किसानों के विरोध प्रदर्शन के तहत  ट्रैक्टर परेड के दौरान व्यापक हिंसा के बाद बातचीत फिर से शुरू नहीं हुई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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