गौरी लंकेश हत्या: हाईकोर्ट के आदेश का एक हिस्सा रद्द करना चाहता है सुप्रीम कोर्ट

वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश हत्या के मामले में उनकी बहन कविता लंकेश ने हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें आरोपी मोहन नायक के ख़िलाफ़ जांच के लिए कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम के प्रावधान का इस्तेमाल करने के पुलिस प्राधिकार के 14 अगस्त, 2018 के आदेश को रद्द कर दिया गया था.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश हत्या के मामले में उनकी बहन कविता लंकेश ने हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें आरोपी मोहन नायक के ख़िलाफ़ जांच के लिए कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम के प्रावधान का इस्तेमाल करने के पुलिस प्राधिकार के 14 अगस्त, 2018 के आदेश को रद्द कर दिया गया था.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को संकेत दिया कि वह पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या में कथित तौर पर संलिप्त एक आरोपी के खिलाफ कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण कानून (केसीओसीए) के प्रावधानों के तहत कथित अपराधों के लिए आरोपपत्र को खारिज करने के उच्च न्यायालय के आदेश के एक हिस्से को रद्द करने का इच्छुक है.

जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने आरोपी की ओर से पेश वकील से कहा कि उसे जो दिया गया है वह ‘बोनस’ है क्योंकि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भी केसीओसीए के तहत कथित अपराधों के लिए उसके खिलाफ आरोपपत्र को खारिज कर दिया है.

शीर्ष अदालत ने पत्रकार गौरी लंकेश की बहन कविता लंकेश की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.

याचिका में इस साल 22 अप्रैल को उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें आरोपी मोहन नायक के खिलाफ जांच के लिए केसीओसीए के प्रावधान का इस्तेमाल करने के पुलिस प्राधिकार के 14 अगस्त, 2018 के आदेश को रद्द कर दिया गया था.

गौरी लंकेश की पांच, सितंबर 2017 की रात बेंगलुरु के राजराजेश्वरी नगर में उनके घर के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

पीठ ने कहा, ‘हम फिलहाल के लिए आपको इतना संकेत दे रहे हैं कि हम आदेश के अंतिम भाग को रद्द करने के इच्छुक हैं. पूर्व अनुमति पर भले ही हम उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निष्कर्ष को बरकरार रखें, आप उस गिरोह के सदस्य हैं या नहीं और सामग्री का मिलान करने के बाद आरोपपत्र पेश करने के लिए संबंध में कोई भी तथ्य, जांच एजेंसी को जांच करने से नहीं रोकता है.’

कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा आरोपपत्र रद्द करने को लेकर जस्टिस खानविलकर ने कहा कि इस पर एक बहुत ही गंभीर आदेश पारित किया जाना चाहिए था, आरोपपत्र का विश्लेषण किए बिना उसे रद्द किया गया.

न्यायाधीश ने टिप्पणी की, ‘उनकी भूमिका आरोपपत्र में गिरोह सदस्य के रूप में उल्लिखित है या नहीं, हाईकोर्ट ने इसका विश्लेषण नहीं किया है!’

उच्च न्यायालय ने कहा था कि नायक को एक संगठित अपराध गिरोह का हिस्सा नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसके खिलाफ अतीत में कोई आपराधिक मामला या आरोपपत्र दायर नहीं किया गया था.

कविता लंकेश के वकील हुज़ेफ़ा अहमदी ने तर्क दिया कि नायक को संगठित अपराध करने वाले गिरोह का हिस्सा माना जाना चाहिए.

अहमदी ने कहा, ‘तथ्य यह है कि उस गिरोह के सभी व्यक्ति पहले के अपराध में शामिल हो सकते हैं या नहीं, पूरी तरह से महत्वहीन है.’

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने में गलती की है कि नायक के खिलाफ केसीओसीए लागू नहीं होता.

उन्होंने आरोपी की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि जैसा कि हाईकोर्ट के आदेश में उल्लेख किया गया है और कहा है कि यह आरोप है कि उसने एक्यूप्रेशर क्लीनिक चलाने की आड़ में किराए पर एक घर लिया था और यह गिरोह के सदस्यों को शरण देने के लिए था.

शीर्ष अदालत ने राज्य की ओर से पेश वकील से यह भी पूछा कि आरोपी के खिलाफ कोई पूर्व अपराध दर्ज किए बिना प्राधिकार द्वारा केसीओसीए को लागू करने की मंजूरी कैसे दी गई और उसे संगठित अपराध गिरोह के सदस्य के रूप में कैसे बताया जा सकता है.

राज्य के वकील ने कहा कि प्रारंभिक आरोपपत्र भारतीय दंड संहिता और शस्त्र कानून के प्रावधानों के तहत दाखिल किया गया था तथा उसके बाद जांच के दौरान जांच अधिकारी के संज्ञान में आरोपी की भूमिका आई जिसके बाद मंजूरी मांगी गई.

पीठ ने कहा, ‘संगठित अपराध गिरोह का सदस्य बनने के लिए पहले व्यक्ति को गिरोह की गैरकानूनी गतिविधियों का हिस्सा होना होता है.’

आरोपी की ओर से पेश वकील ने कहा कि अगर अभियोजन पक्ष की दलीलें मान ली जाए तो किसी को भी गिरोह का सदस्य कहा जा सकता है.

जब वकील ने कानून को कठोर करार दिया, तो पीठ ने कहा, ‘एक बार अधिनियम की वैधता को बरकरार रखने के बाद आप ‘कठोर’ कैसे कह सकते हैं?’ पीठ ने कहा, ‘इन कानूनों का अपना उद्देश्य है.’

पीठ ने कहा कि पूर्व मंजूरी के पहलू पर आरोपी के वकील सही हो सकते हैं लेकिन यह कहना सही नहीं है कि अतीत में कोई अपराध दर्ज नहीं किया गया है, इसलिए उस पर बिल्कुल भी कार्यवाही नहीं की जा सकती है.

पीठ ने जिरह सुनने के बाद पक्षकारों से कहा कि वे एक सप्ताह के भीतर अपनी लिखित दलीलें दाखिल करें.

कविता की याचिका में कहा गया था कि हाईकोर्ट ने धारा 24 केसीओसीए की जांच नहीं करके गलती की. इसमें कहा गया है कि अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के पद से नीचे के किसी भी अधिकारी को पूर्व मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए.

याचिका में यह भी कहा गया कि हाईकोर्ट इस तथ्य को समझने में असफल रहा कि धारा 24 (2) केसीओसीए के तहत मंजूरी आदेश को चुनौती नहीं दी गई और केवल धारा 24 (1) (ए) के तहत आदेश को चुनौती दी गई है.

कविता के बाद कर्नाटक पुलिस ने भी केसीओसीए के आरोप हटाए जान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

गौरी लंकेश हत्याकांड की जांच कर रही एसआईटी ने अब तक इस मामले में 17 लोगों को गिरफ्तार किया है और ये सभी लोग अति दक्षिणपंथी हिंदू समूहों से जुड़े हुए हैं.

गौरतलब है कि पांच सितंबर, 2017 को  बेंगलुरु स्थित घर के पास ही लंकेश को रात करीब 8:00 बजे तब गोली मार दी गई थी. उन्हें हिंदुत्व के खिलाफ आलोचनात्मक रुख रखने के लिए जाना जाता था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)