जब भी कुतर्क जीतता है तो देश हार जाता है

आज-कल भारत में बेवकूफ़ी का घुटनों-घुटनों कीचड़ है. किसी भी आज़ाद ख़्याल का यहां चलना मुश्किल हो गया है.

//
New Delhi: A view of Parliament in New Delhi on Sunday, a day ahead of the monsoon session. PTI Photo by Kamal Singh (PTI7_16_2017_000260A)
(फोटो: पीटीआई)

आज-कल भारत में बेवकूफ़ी का घुटनों-घुटनों कीचड़ है. किसी भी आज़ाद ख़्याल का यहां चलना मुश्किल हो गया है.

New Delhi: A view of Parliament in New Delhi on Sunday, a day ahead of the monsoon session. PTI Photo by Kamal Singh  (PTI7_16_2017_000260A)
(फोटो: पीटीआई)

मनसुख पहली बार प्लेन से सफ़र कर रहा था. थोड़ा घबराया था पर खुश भी बहुत था. किस्मत से उसे सबसे आगे वाली सीट मिली, जो कि एयर होस्टेस के बिलकुल सामने थी. बहुत खुश था क्योंकि जब भी उसकी नज़रें एयर होस्टेस सी मिलती वो मुस्कुरा देती. मनसुख का बस चलता तो वो ये प्लेन का सफ़र कभी ख़त्म नहीं होने देता.

पर तभी मौसम कुछ ख़राब हुआ और प्लेन ऊपर-नीचे होने लगा. मनसुख की तो जान ही सूख गई. एक तो पहली बार प्लेन में सफ़र ऊपर से ये थरथराता-कांपता प्लेन.

उसने डरी हुई नज़रों से एयर होस्टेस की तरफ देखा, एयर होस्टेस ने पलकें झपका कर उसे कहा कि ‘सब ठीक है’. मनसुख ने आंखें बंद कर लीं और धीरे-धीरे प्लेन बुरे मौसम से निकल गया. टर्बुलेंस रुक गया और मनसुख की सांस में सांस आई.

पर तभी पायलट ने अनाउंस किया, ‘प्लेन को ‘टेक्निकल रीज़न’ की वजह से इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ रही है.’ मनसुख ने सामने बैठी एयर होस्टेस से पूछा. ‘ये टेक्निकल रीज़न क्या होता है.’ वो मुस्कुरा कर बोली, ‘फिकर न करें, टेक्निकल रीज़न है.’ मनसुख की जान में जान आई, एयर होस्टेस की मुस्कराहट ने जैसे उसके दिल में ठंडक भर दी.

उसने पलट कर देखा तो वहां बहुत सारे अपने-अपने क्षेत्र के एक्सपर्ट्स लोग बैठे थे. वो सब उसे ‘टेक्निकल रीज़न’ के समझने वाले लगे. उनको शांत देख कर, वो निश्चिंत हो गया.

पर तभी धमाके से सीधे हाथ की तरफ वाले विंग वाला इंजन फट गया और उसमें से काला धुआं और आग निकलने लगी. मनसुख ने घबरा कर एयर होस्टेस की तरफ देखा, एयर होस्टेस बोली, ‘फिकर न करें, ये भी टेक्निकल रीज़न है.’ अब मनसुख का मन नहीं मान रहा था. पर तभी लेफ्ट वाले इंजन में भी धमाका हुआ और आग लग गई. लोग चिल्ला रहे थे. एयर होस्टेस बोली, ‘ये भी बस टेक्निकल रीज़न है.’

प्लेन 25 हज़ार फीट की ऊंचाई से गिर रहा था पर अब भी सारे एक्सपर्ट्स चुप थे, आराम से अपनी सीट पर बैठे थे, प्लेन गोली की रफ़्तार से ज़मीन की तरफ बढ़ा. अब मनसुख के सब्र का बांध टूट गया. वो एयर होस्टेस को चिल्ला कर बोला, ‘अगले एक मिनट में ये प्लेन ज़मीन से टकराएगा और हम सब मर जाएंगे.’

एयर होस्टेस अब भी मुस्कुरा कर बोली, ‘अगर आप ध्यान से सोचें, तो मरना भी तो टेक्निकल रीज़न है.’

बात तो सही थी, ‘मरना क्या है? सारी मौतें टेक्निकल रीज़न से ही होती हैं. दिल का दौरा, गुर्दे फेल होना, कैंसर, ज़्यादा उम्र, आदि-आदि. सच में, सारी मौतों के पीछे हमेशा से टेक्निकल रीज़न’ हैं. हद तो ये कि मर्डर भी टेक्निकल रीज़न है, ‘गोली चली और दिल में घुस गई, मौत गोली से नहीं, दिल रुकने से हुई है.’

§§§§§

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अभी कुछ दिन पहले बताया कि जीडीपी ग्रोथ का गिर कर 5.7 प्रतिशत पर आ जाना, एक ‘टेक्निकल रीज़न’ है. बड़ा गुस्सा आया. लगा क्या ये आदमी हमें बेवकूफ समझता है?

फिर सोचा कि सही ही समझता है. आख़िर हमारे ही देशवासियों ने ही इन्हें वोट देकर वहां पर पहुंचाया है. मैंने बचपन में सीखा था, जब रो नहीं सकते तो हंस लो. ग़म कम हो न हो, बुरा कम लगता है.

तो आगे आने वाली बातों को बस ऐसे पढ़े कि मैं ग़म में हंस रहा हूं…

अंग्रेजी का एक वाक्यांश है ‘एजुकेटेड इल्लिट्रेट’, जिन्हें हम हिन्दुस्तानी में ‘पढ़ा-लिखा गंवार’ कहते हैं. ये पढ़े-लिखे गंवार वो हैं जिनके पास कई डिग्रियां हैं, पर कॉमन सेंस, ‘व्यावहारिक बुद्धि’ की भरपूर कमी है. ये लेफ्ट में भी हैं और लिबरल्स में भी. पर राइट विंग में इनकी मात्रा सर्वाधिक है.

चलिए एक और किस्सा सुनिए:

सुमित से बड़ा आशिक पूरे मोहल्ले में कोई नहीं था, उसका आकृति के लिए इश्क पूरे शहर में मशहूर था. उसने पूरी कोशिश कर ली पर आकृति उसकी तरफ देखती भी नहीं थी.

एक दिन अपने दोस्तों के साथ तीन बीयर पीने के बाद उसने फैसला किया कि कुछ बड़ा किया जाए. कुछ ऐसा कि आकृति उसे नज़रअदांज़ न कर पाए.

रात को घर पर उसने ब्लेड ली और काम पर लग गया. बाथरूम में उसने बड़ा खून बहाया, दर्द भी बहुत हुआ लेकिन सुबह तक उसने वो कर दिया जिसपे उसे नाज़ था.

कॉलेज के बाहर उसने आकृति को रोका. आकृति को आदत थी, उसे पता था फिर सुमित कोई बड़ा नाटक करके आया है. इसलिए वो चुपचाप रही. सुमित ने अपने उलटे हाथ की आस्तीन ऊपर की और सीना फुलाकर आकृति को दिखा दी.

आकृति ने उसकी कलाई को ध्यान से देखा और फिर मुंह बनाया. सुमित गुस्सा हो गया बोला, ‘रात भर हाथ को ब्लेड से काट कर तुम्हारा नाम लिखा है और तुम मुंह बना रही हो?’

आकृति सूखे मुंह से बोली, स्पेलिंग गलत है, तुमने ‘आक्रती’ लिखा है मेरा नाम ‘आकृति’ है, ‘क’ के पेट में, तिरछी छोटी रेखा के रूप में ‘र’ की मात्रा नहीं लगेगी, उसके नीचे आधे चंद्रकार वाली लगेगी. ‘त’ पर छोटी ‘इ’ की मात्रा है तुमने बड़ी ‘ई’ की लगाई है. सबने सुमित के ख़्वाबों को उस दिन बड़ी ‘ई’ और ‘र’ की मात्रा के नीचे कुचले जाते देखा.

सुमित बड़ा होकर भक्त बना और भक्तों से मुझे कोई परेशानी नहीं है. ये लोग आंखें बंद करके वो मान लेते हैं, ‘जो इनका दिल कहता है.’ और इनके दिल से जिरह-बहस करना; न मेरे बस की बात है न इनके ख़ुद के दिमाग की.

§§§§§

मुझे शिकायत है ‘राइट विंग के पढ़े-लिखे गंवारों’ से. हालांकि इनमें भी अधिकांश दो तरह के हैं. एक वो जो आईआईटी टाइप की जगह से पढ़ के आए हैं. और राइट की विचारधारा से प्यार करने के बजाय, ये लेफ्ट और कांग्रेस से इतनी ज़्यादा नफ़रत करते हैं कि बिना सोचे-समझे इन्होंने राइट विंग की हर बात का समर्थन करने का फैसला ले लिया है.

ये जानते-बूझते गलत का समर्थन करते हैं. पर इन लोगों से भी मुझे उतनी परेशानी नहीं है, क्योंकि हो सकता पिछले 70 साल की कड़वाहट ने इनके मुंह का मज़ा इतना ख़राब कर दिया है कि अब इन्हें दूसरे मज़ों का स्वाद ही नहीं आता हो. इनके लिए अब मीठा, खट्टा, नमकीन सब कुछ सिर्फ कड़वा बन चुका है.

मुझे शिकायत है एक दूसरी कैटेगरी के ‘पढ़े-लिखे गंवारों’ से. ये स्वार्थ के लिए गंवार बने हुए हैं. ये सच को जानते हुए भी अपने निजी फायदे के लिए, आंखों देखी खुद भी कंकर खा रहे हैं और बाकी सबको भी खिला रहे हैं.

ये मीडिया में भी हैं, ये बाबा भी हैं, ये उद्योगपति भी हैं, ये सीए भी हैं, अर्थशास्त्री भी हैं. ये सोशल वर्कर भी हैं, ये इंग्लिश मीडियम भी हैं और हिंदी, तमिल, बंगाली, तेलुगू आदि मीडियम भी. ये आज तक सच तक पहुंचने का पक्का रास्ता हुआ करते थे पर अब झूठ का दलदल हो गए हैं. ये किताबें भी लिखते हैं और लेख भी.

ये लोग जब भी माइक पकड़ कर बोलते हैं, तो मुझे लगता है जैसे इन्होंने भारत के नक्शे को गले से पकड़ रखा है. इनके हाथों में हिंदुस्तान की सांस घुट रही है और वो छटपटा रहा है.

इनमें कुछ नए हैं और कुछ पुराने, कुछ कांग्रेस के ज़माने से पेशेवर ‘पढ़े-लिखे गंवार’ हैं, कुछ पिछले तीन साल में हुए हैं. ये पनीर हैं, जिस सब्ज़ी के साथ डाल दो, वैसे ही बन जाते हैं, कभी ये बटर पनीर हैं, कभी ये आलू-पनीर हैं, कभी ये पालक-पनीर हैं. ये असल में पनीर नहीं हैं, ये ज़हर हैं, ये सोच का ज़हर हैं.

किसी भी बहस को जीतना बड़ा आसान है: पर्सनल अटैक कीजिए, जुमलों में बात कीजिए, ऐसी बात कीजिए जिस पे तालियां पड़े, टॉपिक से हट कर किसी और इमोशनल इश्यू को उठा दीजिए.

कई तरीके हैं बहस जीतने के, सबको पता हैं. लेकिन इन पढ़े-लिखे गंवारों को बस ये नही पता है कि जब भी कुतर्क जीतता है तो देश हार जाता है. देश का भविष्य हार जाता है.

चाहे वो राष्ट्र निर्माण हो या राष्ट्र मंथन, हमारे पास बस एक हथियार है… तर्क. और जब कुतर्कों के बादल घिरे हो तो बेवकूफ़ी की बरसेगी. आज-कल भारत में बेवकूफ़ी का घुटनों-घुटनों कीचड़ है. किसी भी आज़ाद ख़्याल का यहां चलना मुश्किल हो गया है.

आप ख़ुद सोचिए:

  • जिस देश में 25-30 प्रतिशत लोग भूखे सोते हों, वहां बुलेट ट्रेन की क्या ज़रूरत है? क्या ज़रूरत है हज़ारों करोड़ के स्मारक बनाने की?
  • जहां लाखों किसान आत्महत्या कर रहे हैं, वहां हज़ारों-लाख का कॉरपोरेट कर्ज़ा माफ हो रहा है?
  • ऐसी जीडीपी ग्रोथ का क्या फ़ायदा जिसमें करोड़ों युवाओं के लिए नौकरी न हो?
  • ऐसे राष्ट्रवाद का क्या फ़ायदा जिसमें तुम अपने ही देश के भाई को शक़ की नज़र से देखने लगो?
  • जब आपके-हमारे बच्चे न स्कूल में सुरक्षित हो न अस्पताल में?

सवालों की लिस्ट बहुत लंबी है पर सारे सच्चे सवाल सारे जान और माल से जुड़े हैं. हमारी आम ज़िंदगी से जुड़े हैं. हमें एक खेल में लगा दिया गया है, आओ आज इसपे उंगली उठाए, आज उसपे. बचपना चल रहा है. टीवी, अख़बारों, गली-मोहल्लों में जैसे सब छुपन-छुपाई खेल रहे. हर एक को किसी न किसी को थप्पी मारनी है.

मुझे तो ये भी लगने लगा है कि शायद अमित शाह ने सही कहा. कुछ तो हमारी सोच में ही टेक्निकल फॉल्ट हो गया है और पूरे देश में जैसे ‘टेक्निकल रीज़न’ का सीज़न चल रहा है. देश में टेक्निकल रीज़न की महामारी फैली है और जो तर्क अमित शाह ख़ुद नहीं दे पाए, वो मैं आपको दे देता हूं.

अगर आपको लगता है कि जीडीपी के गिरने के पीछे ‘टेक्निकल रीज़न’ है और आपके दिमाग में इस बात को सुनने के बाद कोई सवाल नहीं उठता है. तो प्लीज़ अपने दिमाग की टेक्निकल वायरिंग चेक करा लीजिए क्योंकि ‘टेक्निकल रीज़न’ आप ख़ुद हैं.

अगर आप ठीक हो गए तो देश के सारे टेक्निकल रीज़न ठीक हो जाएंगे और सारे तर्क भी. सच मानिए अगर आपके तर्क ठीक हुए तो भारत का भविष्य सच में ठीक हो जाएगा. ‘हिंद’ सच में ‘जय हिंद’ हो जाएगा…

(दाराब फ़ारूक़ी पटकथा लेखक हैं और फिल्म डेढ़ इश्किया की कहानी लिख चुके हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq