असम में बेदख़ली अभियान के दौरान घायल हुए लोगों को नहीं मिला उचित इलाज: रिपोर्ट

एक फैक्ट फाइंडिंग टीम की जांच में पता चला है कि असम के दरांग जिले में 21 सितंबर को प्रशासन द्वारा बेदख़ली अभियान के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प में जिन तीन लोगों को गोली लगी थी, उनके शरीर से 27 सितंबर तक गोलियां नहीं निकाली गई थीं.

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दरांग हिसा मामले में फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य (फोटोः स्पेशल अरेंजमेंट)

एक फैक्ट फाइंडिंग टीम की जांच में पता चला है कि असम के दरांग जिले में 21 सितंबर को प्रशासन द्वारा बेदख़ली अभियान के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प में जिन तीन लोगों को गोली लगी थी, उनके शरीर से 27 सितंबर तक गोलियां नहीं निकाली गई थीं.

दरांग हिसा मामले में फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य. (फोटोः स्पेशल अरेंजमेंट)

नई दिल्लीः एक फैक्ट फाइंडिंग टीम की जांच में पता चला है कि असम के दरांग जिले में 21 सितंबर को प्रशासन द्वारा बेदखली अभियान के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच में हुई झड़प में जिन तीन लोगों को गोली लगी थी. उनके शरीर से 27 सितंबर तक गोली नहीं निकाली गई थी.

इस टीम ने उस अस्पताल का दौरा किया था, जहां घायलों को ले जाया गया था.

एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) के नेतृत्व में टीम का कहना है कि उन्होंने 27 सितंबर को गौहाटी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (जीएमएचएस) का दौरा किया और पाया कि घायलों के शरीर से तब तक गोलियां नहीं निकाली गई थीं.

यूनाइटेड अगेंस्ट हेट एंड के सह संस्थापक और एपीसीआर के सचिव नदीम खान ने नई दिल्ली में संवाददाताओं को बताया, ‘हमने 27 सितंबर को सरकारी अस्पताल का दौरा किया, जहां हम एक महिला, बच्चे और एक पुरुष से मिले, जिनके शरीर में गोली लगी थी और हमारे अस्पताल के दौरे तक उनके शरीर से गोलियां नहीं निकाली गई थीं. हमने इसकी शिकायत की और अगले ही दिन घायलों का इलाज किया गया.’

खान और पांच अन्य ने पिछले हफ्ते दरांग जिले के सिपाझार के धौलपुर का दौरा किया था. उन्होंने कहा, ‘बेदखली अभियान के दौरान पुलिस की गोलीबारी में 12 लोग घायल हुए हैं, जिनमें से नौ को इलाज के लिए जीएमएचसी में भर्ती कराया गया है.’

उन्होंने आरोप लगाया कि नौ में से तीन को पुलिस ने जबरन अस्पताल से डिस्चार्ज करवाकर हिरासत में ले लिया. इन तीन में एक 17 साल का किशोर भी है, जिसके गर्दन और कंधे में गोली लगी है.

खान ने कहा, ‘जब हम पुलिस गोलीबारी में मारे गए दो लोगों में से एक मोइनुल हक के घर गए तो हमें उनके परिवार से पता चला कि उनके छोटे बेटे अशरफुल हक को हर शाम सात बजे सिपाझार पुलिस थाने जाकर रिपोर्ट करना पड़ता है. जहां उनसे पूछा जाता है कि आज उन्होंने पूरे दिन किस मीडियाकर्मी और कार्यकर्ता से मुलाकात की.’

खान ने कहा, ‘मैं पूछना चाहता हूं कि हिंसक घटना में अपने पिता को खोने वाले युवक के साथ यह कैसा व्यवहार है.’

एपीसीआर ने संवाददाता सम्मेलन में उन क्षेत्रों में अपने दौरे के आधार पर एक रिपोर्ट भी जारी की, जहां सरकार की ओर से बेदखली अभियान चलाया गया था.

यह बेदखली अभियान 21 सितंबर को दरांग जिला प्रशासन ने धौलपुर गांवों 1, 2 और तीन में किया. इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें असम पुलिसकर्मी लाठी लिए एक शख्स को घेरे दिखाई दे रहे हैं और बाद में उसे गोली मार देते हैं.

इस बेदखली अभियान का दस्तावेजीकरण के लिए जिला प्रशासन ने बिजय कुमार बनिया नाम के एक कैमरापर्सन की सेवाएं ली गई थीं, जिसे पुलिस की गोली लगने से जमीन पर गिरे शख्स के शरीर पर कूदते देखा जा सकता था.

‘गैर इरादतन हत्या’

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए धौलपुर में स्थानीय लोगों को बेदखल करने के लिए बलप्रयोग करने की राज्य पुलिस की क्रूरता पर ध्यान केंद्रित किया.

हेगड़े ने कहा, ‘कानून व्यक्ति को अपने जीवन और संपत्ति की रक्षा करने का अधिकार देता है. हो सकता है कि वह (हक) गलत थे लेकिन फिर भी पुलिस द्वारा उसके खिलाफ बंदूक का इस्तेमाल करना उसके बचाव के अधिकार से अधिक था. हमें इसे गैर इरादतन हत्या का मामला कहना होगा.’

उन्होंने कहा, ‘असम में जो हुआ और कल उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी और हाल ही में हरियाणा के करनाल में जो हुआ, उससे पता चलता है कि हमारा समाज और प्रशासन हिंसक है. कानून के शासन की जगह डंडे और बंदूक के नियम ने ले ली है.’

हेगड़े ने कहा, ‘हमें अब ऐसे सवाल पूछने होंगे कि क्या असम में बेदखली अभियान के दौरान मारे गए दोनों लोगों का पोस्टमार्टम किया गया और क्या पोस्टमार्टम प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की गई या क्या किसी तरह की जांच शुरू की गई.’

‘मुस्लिमों को अतिक्रमणकारी कहा गया’

इस दौरान संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए लेखक फराह नकवी ने बेदखली अभियान के दौरान असम पुलिस की गोलीबारी को सरकार समर्थित आतंक करार दिया. नकवी ने कहा, ‘हमने इस घटना के साथ हर हद को पार कर लिया है. मैंने यह गुजरात, मुजफ्फरनगर में बहुत देखा है. 2013 में मुजफ्फरनगर में मैंने हत्याओं से ज्यादा लोगों का विस्थापन देखा था.’

नकवी ने कहा, ‘मुस्लिमों को यूपीएससी जिहाद, भूमि जिहाद, लव जिहाद, दीमक और पता नहीं किन-किन नामों से पुकारा जाता है और असम में अतिक्रमणकारियों के नाम से जाना जाता है. एनआरसी की गई और जब इन लोगों ने वो इम्तिहान पास कर लिया तो इन्हें अतिक्रमणकारी कहा गया. एनआरसी का मकसद वहां नागरिक रजिस्टर तैयार करना नहीं था बल्कि एक समुदाय के खिलाफ जाना था. अगर आज चुप हो गए क्योंकि यह मुस्लिमों पर हुआ है तो यही चीज राज्य सरकार द्वारा अन्यों पर भी की जाएगी.’

इस फैक्ट फाइंडिंग टीम का हिस्सा रहे स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया (एसआईओआई) के अध्यक्ष सलमान अहमद ने कहा कि उन्होंने राज्य के दौरे के दौरान न सिर्फ दरांग के जिला आयुक्त और पुलिस अधीक्षक सुशांत बिस्वा शर्मा से मुलाकात की बल्कि उनके भाई और राज्य के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा से भी मुलाकात की.

उन्होंने कहा, ‘हमारी बैठकों से दो चीजों बहुत स्पष्टता से पता चली. पहली मुख्यमंत्री ने कहा था कि जिन लोगों को बेदखल किया गया है, वे बांग्लादेशी नहीं बल्कि भारतीय नागरिक थे. वे अवैध प्रवासी नहीं थी. उन्हें कहीं और बसाया जाएगा. दूसरी, इस बेदखली अभियान के दौरान फोटोग्राफर बिजय बनिया ने जो किया वह गलत था और उसका हिंदू या हिंदुत्व से कोई लेना-देना नहीं है.’

उन्होंने कहा कि एसआईओआई मोइनुल हक के बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी उठाएगी.

दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई

एपीसीआर रिपोर्ट ने अपनी सिफारिशों ने निहत्थे नागरिकों पर गोलीबारी में शामिल दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की. इनमें दरांग के एसपी सुशांत बिस्वा शर्मा भी शामिल हैं.

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने मोइनुल हक के परिवार से मुलाकात करने के अलावा एक अन्य मृतक 12 साल के शेख फरीद के परिवार से भी मुलाकात की.

फरीद स्थानीय सरकारी स्कूल में कक्षा सातवीं का छात्र था और घटना के समय अपना आधार कार्ड लेने स्थानीय पोस्ट ऑफिस जा रहा था.

फरीद के बड़े भाई आमिर हुसैन ने बताया, ‘घर आने का सिर्फ एक रास्ता था. उसके पास उसी रास्ते से घर आने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. उसे घर लौटते समय गोली लगी.’

‘जानबूझकर निशाना बनाया’

फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि असम में विभिन्न समुदायों के लोगों द्वारा अतिक्रमण कोई नई घटना नहीं है. शर्मा सरकार ने इन अभियानों के जरिये मुस्लिमों को निशाना बनाकर उन्हें सांप्रदायिक बनाने की कोशिश की है.

रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसे कई उदाहरण जहां शर्मा ने राज्य में 2021 मं हुए विधानसभा चुनावों के दौरान मुस्लिमों को निशाना बनाने के लिए सार्वजनिक तौर पर मुस्लिमों को निशाना बनाया है. चुनाव के बाद शर्मा को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सोनावाल को हटाकर राज्य का मुख्यमंत्री बनाया.

रिपोर्ट में कहा गया है कि मुख्यमंत्री पद पर उनकी पदोन्नति को उनकी हिंदुत्ववादी राजनीति के लिए पुरस्कार के तौर पर देखा गया.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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