राजस्थान: सरकारी परीक्षाओं में नकल और पेपर लीक अभ्यर्थियों के लिए नौकरी से बड़ी चुनौती बन गए हैं

बीते कुछ सालों में राजस्थान सरकार द्वारा आयोजित लगभग हर बड़ी परीक्षा किसी न किसी विवाद में फंसी है, जिससे राज्य के युवाओं को सरकारी नौकरियां पाने के लिए अंतहीन इंतज़ार करना पड़ रहा है.

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विभिन्न सरकारी भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ियों के खिलाफ राजस्थान एकीकृत बेरोजगार महासंघ के बैनर तले प्रदर्शन करते छात्र. (फोटो साभार: फेसबुक/उपेन यादव)

बीते कुछ सालों में राजस्थान सरकार द्वारा आयोजित लगभग हर बड़ी परीक्षा किसी न किसी विवाद में फंसी है, जिससे राज्य के युवाओं को सरकारी नौकरियां पाने के लिए अंतहीन इंतज़ार करना पड़ रहा है.

विभिन्न सरकारी भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ियों के खिलाफ राजस्थान एकीकृत बेरोजगार महासंघ के बैनर तले प्रदर्शन करते छात्र. (फोटो साभार: फेसबुक/उपेन यादव)

जयपुर: ‘मेरे पिता मुझे सरकारी अधिकारी बनाना चाहते थे. इस दौरान मैंने अपनी पूरी कोशिश की. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग कक्षाएं लगाने में उनकी सारी बचत खत्म कर दी. लेकिन मैं नहीं जानता था कि सरकार और किस्मत मेरे खिलाफ होंगे.’

यह शब्द 26 वर्षीय गोपाल सारस्वत के हैं. वे राजस्थान सब-इंस्पेक्टर (एसआई) और राजस्थान जूनियर इंजीनियर (जेईएन) के पदों को भरने के लिए आयोजित परीक्षाओं में शामिल हुए थे. उन्हें हाल ही में परीक्षाओं के पेपर लीक होने की जानकारी मिली है.

पिछले कुछ सालों में वे तीन परीक्षाओं में शामिल हुए. जिसमें लाइब्रेरियन के पद पर नियुक्ति की परीक्षा भी शामिल थी, जो कि पेपर लीक होने के कारण रद्द कर दी गई थी. वहीं, बाकी दो परीक्षाओं को भी रद्द करने की मांग जोरों पर है.

विवाद तब खड़ा हो गया जब नवंबर 2020 में आयोजित जेईएन परीक्षा और सितंबर 2021 में आयोजित, सब-इंस्पेक्टर (एसआई) व राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा (रीट), परीक्षाओं में अनियमितताओं और पेपर लीक की रिपोर्ट सामने आईं.

एसआई परीक्षा फर्जीवाड़े में कथित संलिप्तता के चलते बीकानेर और जयपुर में एक निजी स्कूल के प्रिंसिपल समेत 17 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. हालांकि, सरकार द्वारा सुरक्षा के व्यापक इंतजाम करने के बाद भी रीट के आयोजन में हुई गड़बड़ी से सरकार के खिलाफ असल बड़ी प्रतिक्रिया देखी गई.

रीट परीक्षा विवाद

26 सितंबर को 4,000 से अधिक केंद्रों पर आयोजित रीट 2001 में सरकारी स्कूलों के 31,000 पदों के लिए 16.5 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने आवेदन किया था. सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनने के लिए यह परीक्षा अनिवार्य है. राज्य सरकार ने रीट उम्मीदवारों के लिए मुफ्त बसों और अन्य सार्वजनिक परिवहन समेत यात्रा सुविधा प्रदान की थी.

इस संबंध में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने स्वयं एक हाई-प्रोफाइल बैठक करके सरकारी कर्मचारियों को चेतावनी दी थी कि अगर वे किसी धोखाधड़ी और कदाचार में शामिल पाए जाते हैं तो उन्हें सेवा/नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाएगा. 26 सितंबर से प्रदेश भर से तरह-तरह की खबरें सामने आने के बाद फर्जीवाड़े पर नज़र रखने के लिए विशेष इंतजाम किए गए थे.

सेवानिवृत आईएएस अधिकारी और राजस्थान जन सेवा आयोग के पूर्व सचिव राजेंद्र भानावत द वायर  से कहते हैं, ‘सबसे पहली बात कि इतनी बड़ी परीक्षा एक बार में ही आयोजित कराने की क्या जरूरत थी? इसे टुकड़ों में या एक चरणबद्ध तरीके से कराया जा सकता था, जैसा कि दूसरी परीक्षाओं के साथ होता है. इससे चीजें आसान हो जातीं.’

पेपर लीक की खबर सामने आने के बाद से प्रदेश भर के उम्मीदवार अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं. जयपुर में शहीद स्मारक पर सैकड़ों उम्मीदवारों ने तीन दिन तक प्रदर्शन किए और सरकार से दोबारा परीक्षा कराने की मांग की.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत. (फोटो: ट्विटर/@ashokgehlot51)

30 सितंबर के विरोध प्रदर्शन का आह्वान सामाजिक कार्यकर्ता और राजस्थान एकीकृत बेरोजगार महासंघ के अध्यक्ष उपेन यादव ने किया था. हालांकि, उन्हें उसी सुबह उनके घर के बाहर से गिरफ्तार कर लिया गया था जब वे धरना स्थल के निकले थे. उन्हें शाम को करीब पांच बजे छोड़ा गया.

इस बीच, भाजपा सांसद किरोड़ी मीणा ने तेजी दिखाते हुए विरोध प्रदर्शन को अपने हाथ में ले लिया और अन्य दलों के नेताओं व विधायकों को इसमें शामिल होने के लिए कहा. 3 अक्टूबर को सरकार द्वारा परीक्षा स्थगित करने से पहले वह तीन दिनों तक उम्मीदवारों के साथ धरने पर बैठे रहे.

मीणा ने कहा, ‘हम सभी भाजपा विधायकों के साथ भविष्य में दोबारा आंदोलन करेंगे.’ यह बयान 2 अक्टूबर को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया, मीणा और अन्य नेताओं की मौजूदगी में भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में हुई बैठक के बाद आया.

उपेन यादव ने द वायर को बताया, ‘मेरे जेल जाने के बाद भाजपा ने मेरे आंदोलन को हाईजैक कर लिया. मैंने कभी किसी नेता को नहीं बुलाया था क्योंकि यह एक छात्र प्रदर्शन था.’

नकल रोकने के लिए पुलिस द्वारा परीक्षा से पहले कई महत्वपूर्ण गिरफ्तारियां भी की गई थीं.

वहीं, रीट परीक्षा में नकल रोकने के लिए सरकार ने 6.8 करोड़ आबादी वाले, क्षेत्रफल के लिहाज से भारत के सबसे बड़े इस राज्य में इंटरनेट को बंद कर दिया था. इससे छात्रों को ऑनलाइन क्लासेज लेने में दिक्कतें पेश आईं और घर से काम करने वाले (वर्क फ्रॉम होम) लोग भी प्रभावित हुए. रीट उम्मीदवारों को भी अपने परीक्षा केंद्रों तक पहुंचने में परेशानी का सामना करना पड़ा और लोगों को डिजिटल भुगतान करने में भी दिक्कतें आईं.

डिजिटल एडवोकेसी फर्म इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित फरवरी 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2012 के बाद से भारत में जम्मू-कश्मीर के बाद राजस्थान इंटरनेट शटडाउन के मामले में दूसरे नंबर पर आता है. इस दौरान यहां 72 बार इंटरनेट बंद किया गया है. रिपोर्ट में राज्य सरकार पर इंटरनेट शटडाउन क़ानूनों का उल्लंघन करने के आरोप लगाए गए हैं.

बेकार गईं सरकार की कोशिशें 

राजस्थान में अनियमितताओं के चलते परीक्षाएं रद्द किए जाने के कारण उम्मीदवार लंबे समय से परेशानी झेल रहे हैं. पिछले कुछ सालों में करीब तीन बड़ी परीक्षाएं रद्द की जा चुकी हैं, जो जूनियर इंजीनियर, जेल वॉर्डर और लाइब्रेरियन के पदों के लिए थीं. जेल वॉर्डर की परीक्षा में कम से कम 925 पदों के लिए छह लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया था, दूसरी परीक्षाओं में 700 पदों के लिए 87,459 आवेदन आए थे.

जरूरी इंतजामात के बावजूद रीट परीक्षा में नकल की अलग-अलग घटनाओं की रिपोर्ट सामने आईं. ऐसे ही एक मामले में, पुलिस ने ‘चप्पल’ में ब्लूटूथ और मोबाइल फोन लगाकर नकल करने का प्रयास करने वाले एक रैकेट का भंडाफोड़ किया था. ‘नकल वाली चप्पलें’ 30,000 रुपये में खरीदी गईं और उम्मीदवारों को 5 लाख रुपये से अधिक में बेची गईं. पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है, लेकिन मुख्य आरोपी तुलजाराम जाट फरार है. ऐसे मामले बीकानेर, प्रतापगढ़, अजमेर और सीकर में सामने आए थे.

हालांकि, सरकार के लिए बड़ी शर्मिंदगी की बात यह रही कि इंटरनेट सेवाएं बंद किए जाने से पहले ही पेपर लीक हो गया.

दैनिक भास्कर की कई रिपोर्ट के अनुसार, परीक्षा शुरू होने से लगभग डेढ़ घंटे पहले सुबह 10 बजे, सवाई माधोपुर जिले में गंगापुर शहर के देवेंद्र नामक एक कांस्टेबल को उसके फोन पर प्रश्न-पत्र मिला था. पेपर पाने वाले बत्तीलाल मीणा उर्फ विकास मीणा ने हल किए हुए प्रश्न-पत्र को आशीष नामक शख्स को वॉट्सऐप पर भेजा था.

आशीष की दोनों बहनों को परीक्षा में शामिल होना था. हालांकि, इंटरनेट बंद हो जाने के कारण आशीष उन्हें यह फॉरवर्ड नहीं कर सके. फिर उसने पुलिस कांस्टेबल देवेंद्र को मिलने बुलाया, जिनकी पत्नी को भी परीक्षा देनी थी. देवेंद्र ने आशीष के फोन से पेपर का फोटो ले लिया और हेड कांस्टेबल युद्धवीर को सूचित किया. युद्धवीर की पत्नी भी परीक्षार्थी थीं. बाद में दोनों कांस्टेबल को निलंबित कर दिया गया.

राज्य सरकार ने एक राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस) के अधिकारी, दो राजस्थान पुलिस सेवा (आरपीएस) के अधिकारियों, एक जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ), 12 शिक्षकों और तीन पुलिस कर्मियों समेत 20 सरकारी कर्मचारियों को निलंबित किया है.

वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व मंत्री अरुण चतुर्वेदी ने द वायर  को बताया, ‘रीट परीक्षा पूरी तरह से एक फर्जीवाड़ा है. इसके लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है क्योंकि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव ही हर चीज की निगरानी कर रहे थे. माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, जो परीक्षा आयोजित कर रहा था, उसके नियंत्रण में कुछ भी नहीं था.’

अधिकारियों के अनुसार, परीक्षा के दौरान पुलिस ने कई डमी उम्मीदवारों और ऐसे गिरोहों को भी गिरफ्तार किया जिन्होंने विभिन्न जिलों में नकल की सुविधा उपलब्ध कराई थी. वहीं, ज्यादातर निलंबित सरकारी कर्मचारी सवाई माधोपुर जिले से हैं. बहरहाल, एक दर्जन गिरफ्तारियों के बावजूद भी पुलिस यह नहीं बता सकी है कि पेपर कैसे लीक हुआ?

जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा कहते हैं, ‘यह सरकार द्वारा अपनाए गए उपायों की पोल खोलता है. कुछ कमियां थीं, जिन्हें सरकार सालों से दूर नहीं कर पाई है. पूरी व्यवस्था विफल हो रही है और इसे सुधारने की जरूरत है. बरसों से राजस्थान में सभी बड़ी परीक्षाओं में अपनी जिम्मेदारी निभाने में सरकार विफल रही है.’

नकल सरगना की राजनीति से जुड़ी कड़ियां

कई रिपोर्ट बताती हैं कि रीट नकल घोटाले के पीछे बत्तीलाल मीणा उर्फ विकास मीणा मास्टरमाइंड है. शिक्षा मंत्री और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा समेत भाजपा और कांग्रेस दोनों नेताओं के साथ मीणा की तस्वीरें सोशल मीडिया पर घूम रही हैं.

दो अक्टूबर को पत्रकारों से बात करते हुए डोटासरा ने कहा, ‘चाहे बत्तीलाल हो या कोई और, हम हर चीज की पारदर्शी तरीके से जांच करने के लिए तैयार हैं, लेकिन पहले उन्हें (भाजपा) हमें पेपर लीक या अनियमितताओं या नकल का कुछ सबूत देना चाहिए. वे सिर्फ उन छात्रों को बहका रहे हैं जिन्होंने न तो अच्छी पढ़ाई की और न ही अच्छी तरह से परीक्षा दी.’

जबकि 3 सितंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप के अतिरिक्त महानिदेशक अशोक राठौड़ ने कहा था, ‘हम पूरे पेपर लीक रैकेट का पर्दाफाश करेंगे, जिसमें कुल 10 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. बत्तीलाल का भाई राजेश मध्य प्रदेश से गिरफ्तार किया गया है और बत्तीलाल को भी पकड़ने के लिए छापेमारी की जा रही है.’

बता दें कि बत्तीलाल को भी 10 अक्टूबर को उत्तराखंड के केदारनाथ में एसओजी द्वारा पकड़ा जा चुका है.

बत्तीलाल मीणा के फेसबुक पेज के मुताबिक, वह सवाई माधोपुर जिले का रहने वाला है और खुद को कांग्रेसी नेता बताता है. उसने स्थानीय चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए प्रचार भी किया था और अक्सर भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) के कार्यक्रमों में भाग लेते देखा गया.

विभिन्न  हस्तियों के साथ उसकी तस्वीरों में भाजपा के ओम बिरला और किरोड़ी मीणा से लेकर कांग्रेस नेता सचिन पायलट और श्रीनिवास बीवी को देखा जा सकता है. राजस्थान एनएसयूआई प्रमुख अभिषेक पूनिया और राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) के अध्यक्ष भूपेंद्र यादव के साथ भी उसके फोटो हैं.

बत्तीलाल के साथ फोटो खिंचवाने वाले सांसद किरोड़ी ने द वायर  को बताया, ‘मैं उसे नहीं जानता. मैं तो उल्टा उसकी गिरफ्तारी की मांग कर रहा था. हो सकता है कि उसने भीड़ में मेरे साथ फोटो खींच ली हो.’

सूत्रों के अनुसार, बत्तीलाल प्रदेश कांग्रेस सचिव देश राज मीणा के साथ डोटासरा के कार्यालय जाता था. देश राज के भाई कुलराज मीणा शिक्षा मंत्री के गृहनगर लक्ष्मणगढ़ में उप-संभागीय न्यायाधिकारी के रूप में तैनात हैं.

जयपुर में कांग्रेस मुख्यालय में शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के साथ बत्तीलाल मीणा. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

भाजपा ने मास्टरमाइंड बत्तीलाल मीणा की गिरफ्तारी, सीबीआई जांच और डोटासरा के इस्तीफे की मांग की है और कहा है कि अगर डोटासरा इस्तीफा नहीं देते हैं तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए. भाजपा नेताओं वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह सिंह शेखावत, सतीश पूनिया समेत अन्य नेताओं ने इस मुद्दे पर सरकार की आलोचना की है और उस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है.

ट्विटर पर विभिन्न हैशटैग जैसे कि #GehlotWeak_PaperLeak, #भ्रष्ट_शिक्षा बाजार_डोटासरा, #REET_JEN_SI_परीक्षा_रद्द_करो ट्रेंड आदि ट्रेंड कर चुके हैं.

एक रीट उम्मीदवार द्वारा राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष भी एक याचिका दायर की गई थी जिसमें केंद्र सरकार से मामले की जांच कराने और परीक्षा को रद्द करने का अनुरोध किया गया था. इसमें राजस्थान सरकार पर भी कथित संलिप्तता का आरोप लगाया गया था.

याचिकाकर्ता भागचंद शर्मा जयपुर के रहने वाले हैं और बेरोजगार हैं. हालांकि, उनके पास एमएससी व बीएड की डिग्री हैं, साथ-साथ और भी कोर्स कर रखे हैं.

4 अक्टूबर को समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा, ‘राज्य सरकार ने रीट की पूरी प्रक्रिया का बहुत अच्छी तरह से प्रबंधन किया था. पेपर लीक होने की खबर फैल रही है. सत्ता में चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, रीट मामले में कार्रवाई की जाएगी.’

आरएएस परीक्षा विवाद

राज्य की कांग्रेस सरकार आरएएस परीक्षा के विवाद में भी उलझी हुई थी, जब शिक्षा मंत्री डोटासरा पर 2016 और 2018 की परीक्षाओं के दौरान पक्षपात का आरोप लगाया गया था.

डोटासरा की बहू के भाई गौरव और बहन प्रभा ने आरएएस 2018 के इंटरव्यू राउंड में 100 में से 80 अंक हासिल किए थे. हालांकि, लिखित परीक्षा में गौरव और प्रभा को क्रमशः सिर्फ 49.75% और 47.44% अंक ही मिले थे. इसने संदेह पैदा किया क्योंकि शीर्ष 16 में से केवल छह आवेदकों को 80 या उससे अधिक अंक मिले थे. यहां तक कि टॉपर मुक्ता राव को भी 77 अंक ही मिले थे.

डोटासरा की बहू प्रतिभा खुद लिखित परीक्षा में 50.25% और साक्षात्कार में 80 अंक पाकर रीट 2016 में पास हुईं थी. उनके बेटे अविनाश ने भी उसी वर्ष साक्षात्कार में 86 अंक पाकर परीक्षा पास की थी.

अरुण चतुर्वेदी कहते हैं, ‘पक्के तौर पर यह कोई संयोग नहीं है कि शिक्षा मंत्री के सभी तीनों रिश्तेदारों को साक्षात्कार में 80 अंक मिले. रीट भी उनके अधीन आता है.’

ये आरोप एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) द्वारा आरएएस रिश्वत घोटाले का पर्दाफाश करने की पृष्ठभूमि में सामने आए थे. इसके अलावा एक सरकारी संस्थान के प्रिंसिपल समेत तीन लोगों को भी अनियमितताओं के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

राजस्थान पीएससी के खिलाफ आरोप

आरएएस परीक्षा से संबंधित गिरफ्तारियों और आरोपों ने आरपीएससी को कटघरे में खड़ा कर दिया है, जो राज्य में अधिकांश सरकारी परीक्षाओं का आयोजन करता है. आरपीएससी के बोर्ड के सदस्य ही आरएएस परीक्षा के दौरान उम्मीदवारों का साक्षात्कार करते हैं.

आरपीएससी में राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की नियुक्ति सामान्य बात हो गई है. पूर्व नौकरशाह, उनके रिश्तेदार और राजनेता बोर्ड में बैठे हैं. बता दें कि अध्यक्ष के अलावा बोर्ड में सात सदस्य होते हैं.

वर्तमान में आरपीएससी बोर्ड के अध्यक्ष भूपेंद्र यादव हैं, जो पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के रूप में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के तुरंत बाद ही नियुक्त कर दिए गए थे. पैनल के अन्य सदस्यों में संगीता आर्य, मंजू शर्मा, जसवंत सिंह राठी, शिव सिंह राठौर, राजकुमारी गुर्जर, बाबूलाल कटारा और रामू राम रायका शामिल हैं.

संगीता आर्य मुख्य सचिव निरंजन आर्य की पत्नी हैं और उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर सोजत सीट से 2013 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा था, जिसमें उनकी हार हुई थी. मंजू शर्मा एक लेक्चरर हैं, जो कवि व आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता कुमार विश्वास की पत्नी हैं.

राजकुमारी गुर्जर भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश उपाध्यक्ष रह चुकी हैं और पूर्व विधायक उमराव सिंह गुर्जर की बेटी हैं. राजकुमारी गुर्जर और उनके पति पूर्व आईपीएस भैरो सिंह गुर्जर का नाम इस साल जुलाई में आरपीएससी रिश्वत मामले में भी सामने आया था. जबकि जसवंत सिंह राठी वरिष्ठ पत्रकार हैं, शिव सिंह राठौर, बाबूलाल कटारा और रामू राम रायका शिक्षाविद हैं.

राजेंद्र भानावत बताते हैं, ‘हम यह पहले भी देख चुके हैं कि अधिकांश सदस्यों को आरपीएससी में उनकी योग्यता या क्षमता के कारण नियुक्त नहीं किया जाता है, बल्कि उन्हें उनकी राजनीतिक संबद्धता के कारण नियुक्ति मिलती है. यदि आप आरपीएससी में क्षमतावान और योग्यतापूर्ण लोगों की नियुक्ति करते हैं तो चयन और साक्षात्कार की समग्र गुणवत्ता निसंदेह बढ़ जाएगी.

बहरहाल, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, भ्रष्टाचार से जुड़े अपराधों के मामले में राजस्थान भारत में दूसरे पायदान पर है. इस साल यहां भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत 363 मामले दर्ज किए गए थे. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (इंडिया) द्वारा किए गए इंडिया करप्शन सर्वे में भी राजस्थान को सबसे भ्रष्ट राज्य बताया गया था.

इस संबंध में द वायर  ने जितने भी कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, राजनेताओं और विशेषज्ञों से बात की, उन्होंने दोहराया कि व्यवस्था के भीतर से किसी की संलिप्तता के बिना यह सब नहीं हो सकता. साथ ही उन्होंने कहा कि परीक्षा चरणबद्ध तरीके से आयोजित की जा सकती थी और नकल के खिलाफ सख्त क़ानून लाया जाना चाहिए.

सरकारी भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ियों के खिलाफ प्रदर्शन करते अभ्यर्थी. (फोटो साभार: फेसबुक)

राज्य में बढ़ती बेरोजगारी

2019 में इंडियास्पेंड द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, एक उम्मीदवार प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में औसतन तीन साल और तीन महीने खर्च करता है. हालांकि, उनके निष्कर्षों के अनुसार यह संख्या सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी करने वालों द्वारा आमतौर पर लगाए गए समय को बहुत कम दर्शाती है.

वहीं, जयपुर में एक प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले व्यक्ति का औसत वार्षिक व्यय 1,95,130 रुपये है. तैयारी करने वाले 57% लोग निम्न आय वर्ग (मासिक पारिवारिक आय 20,000 रुपये से कम) से ताल्लुक रखते हैं.

सरकारी नौकरियों की हमेशा से ही बेहद मांग रही है, लेकिन व्यवस्था में खामियों के चलते लाखों उम्मीदवारों का भविष्य दांव पर लगा है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के मासिक आंकड़ों के अनुसार, मई 2020 से अक्टूबर 2020 की लॉकडाउन अवधि के दौरान राजस्थान में बेरोजगारी दर बढ़कर 53.5 फीसदी हो गई थी. उनकी ताजा रिपोर्ट बताती है कि 26.7 फीसदी बेरोजगारी दर के साथ राजस्थान, भारत में अधिक बेरोजगारी वाले राज्यों के मामले में दूसरे पायदान पर है.

भानावत कहते हैं, ‘यह देश के युवाओं के खिलाफ अपराध है कि आप बिना किसी खामी या गड़बड़ी के एक भी परीक्षा नहीं करा सकते. सैकड़ों उम्मीदवारों के लिए बार-बार रद्द हो रहीं परीक्षाओं से अधिक पीड़ादायक और क्या हो सकता है?’

बहरहाल, सरकारी विभागों में निम्न-श्रेणी की नौकरियों के लिए आवेदन करने वाले युवाओं की बड़ी संख्या एक ओर तो सरकारी नौकरियों के प्रति भारतीयों के जुनून को दर्शाती है तो दूसरी ओर अपने शिक्षित युवाओं के लिए पर्याप्त अवसर पैदा करने में भारत की अक्षमता दिखाती है.

भारतीय रेलवे में निम्न-श्रेणी की नौकरियों के लिए आवेदन करने वाले ढाई करोड़ लोगों का उल्लेख करते हुए आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने 2019 में एनडीटीवी को दिए एक साक्षात्कार में कहा था, ‘यह दिखाता है कि हमारे यहां वास्तव में नौकरियों की बहुत अधिक समस्या है. सात फीसदी की वृद्धि के बावजूद भी नौकरियां पैदा नहीं हो रही हैं.’

हालांकि, राजस्थान में ऐसे छात्रों की बड़ी संख्या है जो भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बनने का लक्ष्य रखते हैं और सरकारी शिक्षक या लाइब्रेरियन की नौकरी को बैकअप के तौर पर देखते हैं जो उन्हें वित्तीय स्थिरता देती है. और साथ ही शिक्षक की नौकरी में उन्हें खुद की पढ़ाई के लिए भी समय मिल जाता है, जो किसी दूसरी नौकरी में नहीं मिलता है.

इक्कीस वर्षीय रीट आवेदक करण सिंह बताते हैं, ‘मेरा अंतिम लक्ष्य आईएएस अधिकारी बनना है. पढ़ाना मेरा जीवन नहीं है. एक सरकारी शिक्षक होने के नाते मैं कुछ पैसे कमाते हुए भी ढंग से तैयारी कर सकता हूं.’

गोपाल सारस्वत की भी कहानी समान है, जिन्होंने अपने पिता की मौत के बाद सरकारी अधिकारी बनने का फैसला किया था. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने जो योजना बनाई, उसमें यह था कि पहले वे किसी भी सरकारी ग्रेड की नौकरी हासिल करेंगे, फिर असल लक्ष्य के पीछे जुटेंगे.

लेकिन इन जैसे लाखों अन्य उम्मीदवारों का भविष्य अधर में है क्योंकि बिना किसी विवाद के कम से कम एक परीक्षा भी सुचारू ढंग से आयोजित कराने में सरकार के पसीने छूट रहे हैं.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)