सुप्रीम कोर्ट ने वकील को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट का जज बनाने के लिए तीसरी बार सिफ़ारिश भेजी

वकील सादिक़ वसीम नागराल का नाम सबसे पहले 24 अगस्त, 2017 को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित किया गया था. इसके बाद छह अप्रैल 2018 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनके नाम की सिफ़ारिश की. हाईकोर्ट में जज नियुक्त करने के लिए इस साल मार्च महीने में दूसरी बार अपनी सिफ़ारिश को दोहराया था. हालांकि इतने महीने बीत जाने के बाद भी केंद्र सरकार ने नागराल की नियुक्ति पर कोई फैसला नहीं किया है.

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

वकील सादिक़ वसीम नागराल का नाम सबसे पहले 24 अगस्त, 2017 को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित किया गया था. इसके बाद छह अप्रैल 2018 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनके नाम की सिफ़ारिश की. हाईकोर्ट में जज नियुक्त करने के लिए इस साल मार्च महीने में दूसरी बार अपनी सिफ़ारिश को दोहराया था. हालांकि इतने महीने बीत जाने के बाद भी केंद्र सरकार ने नागराल की नियुक्ति पर कोई फैसला नहीं किया है.

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में एक वकील को जज के पद पर नियुक्त करने की अपनी सिफारिश को दूसरी बार दोहराया है. शीर्ष अदालत इस संबंध में कुल तीन बार अपनी सिफारिश भेज चुका है, लेकिन अभी तक केंद्र सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है.

नियम के मुताबिक, यदि कॉलेजियम अपनी किसी सिफारिश को दोहराती है, तो केंद्र सरकार को हर हाल में उसे स्वीकार करना होता है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने वकील सादिक वसीम नागराल को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में जज नियुक्त करने के लिए इस साल मार्च महीने में दूसरी बार अपनी सिफारिश को दोहराया था.

हालांकि इतने महीने बीत जाने के बाद भी केंद्र सरकार ने नागराल की नियुक्ति पर कोई फैसला नहीं किया है.

जम्मू स्थित वकील नागराल ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर के वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में कार्य किया है और कई बार गृह मंत्रालय की ओर से पेश हुए थे. केंद्र सरकार के वकील के रूप में उन्होंने उच्च न्यायालय के समक्ष सेना, बीएसएफ और सीआरपीएफ सहित सुरक्षा बलों का प्रतिनिधित्व किया है.

नागराल का नाम सबसे पहले 24 अगस्त, 2017 को हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित किया गया था. इसके बाद छह अप्रैल 2018 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनके नाम की सिफारिश की.

हालांकि केंद्र ने इस पर आपत्ति जताई और उनकी फाइल लौटा दी. इसके बाद जनवरी 2019 में और फिर इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मोदी सरकार की आपत्तियों को खारिज करते हुए नागराल को नियुक्त करने की सिफारिश को दो बार दोहाराया था.

नागराल के अलावा सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने दो और नामों को दोहाराया था, जो कि नियुक्ति के लिए केंद्र के पास अभी लंबित है.

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने पिछले महीने एक सितंबर को देश के विभिन्न हाईकोर्ट में नियुक्ति के लिए पूर्व में सिफारिश किए गए 12 नामों को दोहराया था, जिसमें मोक्ष खजुरिआ-काजमी और राहुल भारती के नाम शामिल हैं. इन दोनों को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में नियुक्त किया जाना है.

खजुरिआ-काजमी वरिष्ठ अधिवक्ता हैं, जो साल 2016 में राज्यपाल शासन के दौरान एडिशनल एडवोकेट जनरल के तौर पर नियुक्त किए गए थे और बाद में जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की अगुवाई में पीडीपी-भाजपा सरकार के दौरान भी कार्यरत थे.

मार्च 2019 में जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की तत्कालीन चीफ जस्टिस गीता मित्तल की अध्यक्षता में जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट कॉलेजियम ने चार अधिवक्ताओं खजुरिआ-काजमी, रजनीश ओसवाल, जावेद इकबाल वानी और राहुल भारती की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया शुरू की थी.

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सबसे पहले 15 अक्टूबर 2019 को खजुरिआ-काजमी और ओसवाल, 22 जनवरी 2019 को वानी फिर दो मार्च 2021 को राहुल भारती की नियुक्ति की सिफारिश की थी.

इसमें से ओसवाल और वानी को तो केंद्र सरकार ने जज नियुक्त कर दिया, लेकिन खजुरिआ-काडमी और भारती की फाइल लंबित ही पड़ी रही. इसके चलते सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम को अपनी सिफारिश दोहरानी पड़ी थी.

मालूम हो कि हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा शुरू किया जाता है और चीफ जस्टिस के प्रस्ताव की कॉपी राज्यपाल को भेजी जाती है और इसे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री के पास भी भेजा जाता है.

राज्यपाल की सिफारिशों सहित पूरी सामग्री कानून मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के समक्ष रखी जाती है, जो नामों की सिफारिशों के लिए अंतिम विचार करता है और इन जजों की नियुक्ति के लिए नाम राष्ट्रपति को भेजता है.

अगर सरकार फाइल लौटा देती है तो कॉलेजियम या तो अपने फैसले पर अडिग रहता है या उसे वापस ले लेता है, लेकिन अगर कॉलेजियम अपने फैसले पर बना रहता है तो इसे मानना सरकार के लिए बाध्यकारी हो जाता है.