गुजरात हाईकोर्ट ने 24 जून 2021 को आसाराम के बेटे नारायण साई को दो हफ्तों के लिए फर्लो दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त में इस पर रोक लगा दी थी, जिसे राज्य ने चुनौती दी थी. सूरत की दो बहनों द्वारा नारायण साई के ख़िलाफ़ दर्ज मामले में अदालत ने 2019 में साई को बलात्कार दोषी ठहराते हुए उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने स्वयंभू संत और प्रवचनकर्ता आसाराम के बेटे एवं बलात्कार के दोषी नारायण साई को 14 दिन की ‘फर्लो’ दिए जाने के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को बुधवार को खारिज कर दिया.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने साई को ‘फर्लो’ देने के अदालत के 24 जून के आदेश को चुनौती देने वाली गुजरात सरकार की याचिका स्वीकार कर ली.
शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘फर्लो’ कोई पूर्ण अधिकार नहीं हैं और इसे देना कई बातों पर निर्भर करता है. उसने कहा कि साई की कोठरी से एक मोबाइल फोन मिला था, इसलिए जेल अधीक्षक ने राय दी थी कि उसे ‘फर्लो’ नहीं दी जानी चाहिए.
न्यायालय ने साई को दो हफ्तों की फर्लो देने के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश पर 12 अगस्त को रोक लगा दी थी. उसने गुजरात सरकार की याचिका पर नारायण साई को नोटिस दिया था.
इस याचिका में उच्च न्यायालय की एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गई थी. न्यायालय ने अगले आदेश तक उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी.
उसने कहा था कि बंबई फर्लो एवं पैरोल नियम 1959 के नियम 3 (2) में यह प्रावधान है कि आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को सात वर्ष वास्तविक कैद की सजा पूरी करने के बाद हर वर्ष फर्लो पर रिहा किया जा सकता है.
उच्च न्यायालय की एकल पीठ के 24 जून, 2021 के आदेश में साई को दो हफ्तों के लिए फर्लो दी गई थी, लेकिन खंडपीठ ने 13 अगस्त तक इस पर रोक लगा दी थी और इसके बाद राज्य ने 24 जून के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था.
राज्य सरकार ने दलील दी थी कि नियमों और इस अदालत के आदेश के अनुसार भी ऐसा कहा गया है कि फर्लो कोई पूर्ण अधिकार नहीं है और इसे देना विभिन्न बातों पर निर्भर करता है.
उसने कहा था कि साई और उसके पिता को बलात्कार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है और वे धन एवं बल के साथ काफी प्रभाव भी रखते हैं.
इसने आगे उल्लेख किया कि साईं जेल में रहने के दौरान सूरत पुलिस ने उनके खिलाफ मामले को कमजोर करने के लिए पुलिस अधिकारियों, डॉक्टरों और यहां तक कि न्यायिक अधिकारियों को रिश्वत देने की विस्तृत योजनाओं का पता लगाने का दावा किया था.
गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि सुरेश पांडुरंग दरवाकर के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2006 के फैसले में भी फर्लो देना अधिकार का मामला नहीं है और कुछ शर्तों के अधीन है.
सूरत की एक अदालत ने साई को 26 अप्रैल, 2019 को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 376 (दुष्कर्म), 377 (अप्राकृतिक अपराध), 323 (हमला), 506-2 (आपराधिक धमकी) और 120-बी (षड्यंत्र) के तहत दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी.
साई और उसके पिता आसाराम के खिलाफ सूरत की रहने वाली दो बहनों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. इसके बाद राजस्थान में एक लड़की के बलात्कार के आरोप में आसाराम को 2013 में गिरफ्तार किया गया था.
सूरत की पीड़िताओं में से बड़ी बहन ने नारायण साई पर आरोप लगाया था कि जब वह उसके अहमदाबाद आश्रम में रही थीं, उस समय 1997 से 2006 के बीच आसाराम ने उसका यौन उत्पीड़न किया था.
छोटी बहन ने साई पर आरोप लगाया था कि जब वह 2002 से 2005 के बीच सूरत के जहांगीरपुरा इलाके में आसाराम के आश्रम में रही थी, तब उसने उनका यौन उत्पीड़न किया था. पुलिस ने पीड़ित बहनों के बयान और सबूतों के आधार पर केस दर्ज किया था.
केस दर्ज होने के बाद साई नारायण भूमिगत हो गया था और दो महीने बाद दिसंबर, 2013 को हरियाणा-दिल्ली सीमा से उसे सिख वेश में पुलिस ने गिरफ्तार किया था.
बता दें कि नारायण साई की पत्नी जानकी ने भी अपने पति और ससुर आसाराम पर प्रताड़ना के आरोप लगाए थे. साथ ही पति पर अवैध संबंधों का आरोप लगाया था. उन्होंने इंदौर के खजराना पुलिस थाने में 19 सितंबर, 2015 को शिकायत दर्ज कराई थी.
अपनी शिकायत में कहा था कि नारायण हरपलानी (नारायण साई का असली नाम) से उसकी शादी 22 मई, 1997 को हुई थी. शादी के बाद भी उसके पति के कई अवैध संबंध थे. इससे उसे मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी.
नारायण ने मामला दबाने के लिए थाना प्रमुख को 13 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी. घूसखोर पुलिस अधिकारी से 5 करोड़ रुपये नकद और प्रॉपर्टी के कागजात बरामद करने के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)