लखीमपुर खीरी हिंसा: सुप्रीम कोर्ट का निर्देश- गवाहों को संरक्षण दे यूपी सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने अभियोजन पक्ष द्वारा मामले में पेश किए गवाहों की संख्या पर भी सवाल उठाए और कहा कि मामला है कि हज़ारों किसान रैली निकाल रहे थे और केवल 23 ही चश्मदीद हैं? इस पर सरकार की ओर से बताया गया कि कुछ गवाहों के बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए जा चुके हैं, जिसके बाद कोर्ट ने मामले के अन्य गवाहों के बयान भी इसी धारा के तहत दर्ज करने का निर्देश दिया.

New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B)
(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने अभियोजन पक्ष द्वारा मामले में पेश किए गवाहों की संख्या पर भी सवाल उठाए और कहा कि मामला है कि हज़ारों किसान रैली निकाल रहे थे और केवल 23 ही चश्मदीद हैं? इस पर सरकार की ओर से बताया गया कि कुछ गवाहों के बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए जा चुके हैं, जिसके बाद कोर्ट ने मामले के अन्य गवाहों के बयान भी इसी धारा के तहत दर्ज करने का निर्देश दिया.

New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B)
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को लखीमपुर खीरी हिंसा मामले के गवाहों को संरक्षण प्रदान करने का मंगलवार को निर्देश दिया. इस हिंसा में चार किसानों सहित आठ लोगों की मौत हो गई थी.

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को मामले के अन्य गवाहों के बयान भी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत दर्ज करने का भी निर्देश दिया.

इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और गरिमा प्रसाद ने पीठ के समक्ष राज्य सरकार का पक्ष रखा.

पीठ ने कहा, ‘हम संबंधित जिला न्यायाधीश को सीआरपीसी की धारा 164 के तहत साक्ष्य दर्ज करने का कार्य निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंपने का निर्देश देते हैं.’

सीआरपीसी (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) की धारा 164 के तहत बयान न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किए जाते हैं और वे बयान मान्य होते हैं.

पीठ ने साल्वे से कहा कि वह ‘इलेक्ट्रॉनिक’ साक्ष्य की रिपोर्ट तैयार करने के संबंध में उसकी चिंताओं से ‘फॉरेंसिक’ प्रयोगशालाओं को अवगत कराएं. साथ ही, राज्य सरकार को पत्रकार की पीट-पीटकर हत्या करने के मामले से जुड़ी दो शिकायतों के संबंध में रिपोर्ट दाखिल करने को निर्देश दिया.

पीठ ने कहा, ‘राज्य को इन मामलों में अलग-अलग जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है.’ न्यायालय ने इस मामले में अब आठ नवंबर को आगे सुनवाई करेगा.

शीर्ष अदालत तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में किसानों के एक प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत के मामले में सुनवाई कर रही है.

पीठ ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष द्वारा मामले में पेश किए गवाहों की संख्या पर भी सवाल उठाए और कहा, ‘मामला यह है कि हजारों किसान रैली निकाल रहे थे और केवल 23 ही चश्मदीद हैं?’

साल्वे ने कहा कि 68 गवाहों में से 30 के बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए जा चुके हैं और अन्य कुछ के बयान भी दर्ज किए जाएंगे. उन्होंने कहा, ‘30 गवाहों में से 23 ने ही चश्मदीद होने का दावा किया है. अधिकतर गवाह बरामदगी से जुड़े औपचारिक गवाह हैं.’

उन्होंने कहा कि कई डिजिटल साक्ष्य भी बरामद किए गए हैं और विशेषज्ञ उनकी जांच कर रहे हैं.

इससे पहले 20 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने कहा था कि लखीमपुर खीरी हिंसा की जांच एक ‘अंतहीन कहानी’ नहीं होनी चाहिए. साथ ही, उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि कोर्ट को ऐसा लग रहा है कि राज्य पुलिस धीमी गति से काम कर रही है.

तब अदालत ने गवाहों को संरक्षण प्रदान करने का निर्देश भी दिया था. उस समय भी कोर्ट ने गवाहों की संख्या को लेकर सवाल उठाए थे.

इस मामले में अब तक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा समेत 10 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. हिंसा के बाद छठे दिन आशीष को नौ अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था.

विशेष जांच दल (एसआईटी) ने अब तक मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा, अंकित दास, आशीष पांडेय, लवकुश राणा, शेखर भारती और लतीफ उर्फ काले सहित 10 लोगों को गिरफ्तार किया है. बीते 18 अक्टूबर को सुमित जायसवाल, शिशुपाल, सत्यप्रकाश त्रिपाठी उर्फ सत्यम और नंदन सिंह बिष्ट को गिरफ्तार किया गया था.

उल्लेखनीय है कि दो वकीलों ने प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि इस मामले की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराई जाए, जिसमें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को भी शामिल किया जाए. इसके बाद शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई शुरू की.

लखीमपुर खीरी के सांसद और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ‘टेनी’ के विरोध में बीते तीन अक्टूबर को वहां के आंदोलित किसानों ने उनके (टेनी) पैतृक गांव बनबीरपुर में आयोजित एक समारोह में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के जाने का विरोध किया था. इसके बाद भड़की हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी.

केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में करीब दस महीने से आंदोलन कर रहे किसानों की नाराजगी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ‘टेनी’ के उस बयान के बाद और बढ़ गई थी, जिसमें उन्होंने किसानों को ‘दो मिनट में सुधार देने की चेतावनी’ और ‘लखीमपुर खीरी छोड़ने’ की चेतावनी दी थी.

गाड़ी से कुचल जाने से मृत किसानों की पहचान- गुरविंदर सिंह (22 वर्ष), दलजीत सिंह (35 वर्ष), नक्षत्र सिंह और लवप्रीत सिंह (दोनों की उम्र का उल्लेख नहींं) के रूप में की गई है.

बीते तीन अक्टूबर को भड़की हिंसा में भाजपा के दो कार्यकर्ता- शुभम मिश्रा और श्याम सुंदर निषाद, केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के ड्राइवर हरिओम मिश्रा और एक निजी टीवी चैनल के लिए काम करने वाले पत्रकार रमन कश्यप की भी मौत हो गई थी.

किसानों का आरोप है कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा ने किसानों को अपनी गाड़ी से कुचला. हालांकि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने इस बात से से इनकार किया है.

किसानों के अनेक संगठन ‘कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून, 2020’, ‘कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020’ और ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून’ को वापस लेने की मांग को लेकर पिछले साल नवंबर से आंदोलन कर रहे हैं.

पंजाब से शुरू हुआ यह आंदोलन धीरे-धीरे दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी फैल गया. शीर्ष अदालत ने जनवरी में कानूनों को अमल में लाने पर रोक लगा दी थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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