धर्मांतरण विरोधी क़ानून के बचाव में योगी सरकार ने कहा- व्यक्तिगत हित पर समुदाय के हित को तरजीह

इलाहाबाद हाईकोर्ट में अवैध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दायर एक हलफ़नामे में यूपी सरकार ने यह टिप्पणी की है. सरकार ने यह भी कहा कि धर्मांतरण विरोधी अधिनियम 'सार्वजनिक हित की रक्षा करता है' और 'सार्वजनिक व्यवस्था' बनाए रखता है.

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योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/@CMO UP)

इलाहाबाद हाईकोर्ट में अवैध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दायर एक हलफ़नामे में यूपी सरकार ने यह टिप्पणी की है. सरकार ने यह भी कहा कि धर्मांतरण विरोधी अधिनियम ‘सार्वजनिक हित की रक्षा करता है’ और ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ बनाए रखता है.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/@CMO UP)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अपने धर्मांतरण विरोधी कानून का बचाव करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में कहा कि ‘यह एक मानी हुई बात है कि समुदाय के हित को व्यक्तिगत हित के ऊपर रखा जाता है.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में विशेष सचिव (गृह) अटल कुमार राय द्वारा दायर एक हलफनामे में ये टिप्पणी की है. कोर्ट उत्तर प्रदेश में अवैध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है.

राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने पिछले साल नवंबर में यूपी कैबिनेट द्वारा पारित किए जाने के बाद इस अध्यादेश को मंजूरी दी थी, जिसके बाद इस साल मार्च में यह कानून बना था.

सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे में कहा गया है, ‘…जब कभी कोई व्यक्ति अपने व्यक्तिगत अधिकारों का इस्तेमाल कर दूसरे संप्रदाय में जाता है, तो उसे वहां उस धर्म के नियमों, मान्यताओं के कारण उसे जटिलताओं का सामना करना पड़ता है. इस स्थिति में व्यक्ति को समानता और सम्मान नहीं मिलता है और उसे इनसे समझौता करना पड़ता है.’

सरकार ने कहा कि भले ही अपने व्यक्तिगत अधिकारों का इस्तेमाल कर कोई व्यक्ति अन्य धर्म के लोगों के साथ हो जाए, लेकिन धर्म परिवर्तन नहीं होने तक उस धर्म का उसे लाभ नहीं मिलता है.

सरकार ने कहा कि इसलिए इस तरह का धर्मांतरण व्यक्ति की इच्छा के विपरीत होगा, क्योंकि वह अन्य धर्म के लोगों के समाज में तो रहना चाहता है लेकिन अपनी आस्था नहीं छोड़ना चाहता है.

हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि किसी धर्म का पालन करने, उसे मानने और उसका प्रचार करने के अधिकार में धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं है.

इसमें यह भी कहा गया है कि ‘जहां तक अंतर मौलिक अधिकारों का सवाल है, ये मौलिक अधिकार समुदाय के अधिकारों की बजाय एक व्यक्ति के अधिकार हैं.’

आगे कहा गया है कि जब किसी समुदाय में ‘भय मनोविकृति’ फैल जाती है और इसके दबाव में जबरन धर्मांतरण होता है, तो इसे बचाने की आवश्यकता होती है और ऐसे में ‘व्यक्तिगत हित के सूक्ष्म विश्लेषण पर ध्यान नहीं दिया जा सकता है.’

सरकार ने कहा कि धर्मांतरण विरोधी अधिनियम ‘सार्वजनिक हित की रक्षा करता है’ और ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ बनाए रखता है. उन्होंने कहा कि यह कानून समुदाय की सोच नहीं बल्कि सामुदायिक हित की रक्षा कर रहा है.

राज्य सरकार ने कहा है कि जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाओं की राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी जांच की जा रही है. उन्होंने कहा कि जहां जबरदस्ती, धोखाधड़ी और गलत बयानी का इस्तेमाल शादी के लिए किया गया होगा, वहीं यह कानून लागू होगा.

हलफनामे के मुताबिक राज्य में धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत जुलाई तक 79 मामले दर्ज किए गए थे. इसमें से 50 मामलों में चार्जशीट और सात में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई है. 22 मामलों में जांच चल रही है.

हलफनामे में कहा गया है कि सिर्फ यूपी ही नहीं, देश के आठ राज्यों ने गैरकानूनी धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून बनाया है. इसमें कहा गया है कि म्यांमार, भूटान, श्रीलंका और पाकिस्तान में भी धर्मांतरण विरोधी कानून हैं.

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