2020 में बच्चों के ख़िलाफ़ साइबर अपराध के मामलों में 400 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि: एनसीआरबी

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, साल 2019 में बच्चों के ख़िलाफ़ साइबर अपराधों के 164 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2018 में बच्चों के ख़िलाफ़ साइबर अपराधों के 117 मामले सामने आए थे. इससे पहले 2017 में ऐसे 79 मामले दर्ज किए गए थे.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, साल 2019 में बच्चों के ख़िलाफ़ साइबर अपराधों के 164 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2018 में बच्चों के ख़िलाफ़ साइबर अपराधों के 117 मामले सामने आए थे. इससे पहले 2017 में ऐसे 79 मामले दर्ज किए गए थे.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: वर्ष 2019 की तुलना में 2020 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध के मामलों में 400 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई, जिनमें से अधिकतर मामले यौन कृत्यों में बच्चों को चित्रित करने वाली सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण से संबंधित हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से जारी नवीनतम आंकड़ों में यह जानकारी सामने आई है.

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों से संबंधित शीर्ष पांच राज्यों में उत्तर प्रदेश (170), कर्नाटक (144), महाराष्ट्र (137), केरल (107) और ओडिशा (71) शामिल हैं.

ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में बच्चों के खिलाफ ऑनलाइन अपराधों के कुल 842 मामले सामने आए, जिनमें से 738 मामले बच्चों को यौन कृत्यों में चित्रित करने वाली सामग्री को प्रकाशित करने या प्रसारित करने से संबंधित थे.

एनसीआरबी के 2020 के आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 की तुलना में बच्चों के खिलाफ हुए साइबर अपराधों (सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत पंजीकृत) में 400 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है.

इसके मुताबिक, 2019 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों के 164 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2018 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों के 117 मामले सामने आए थे. इससे पहले 2017 में ऐसे 79 मामले दर्ज किए गए थे.

गैर सरकारी संगठन क्राई (चाइल्ड राइट्स एंड यू) की मुख्य कार्यकारी अधिकारी पूजा मारवाह का कहना है कि शिक्षा प्राप्त करने और अन्य संचार उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए इंटरनेट पर अधिक समय बिताने के दौरान बच्चे भी कई प्रकार के जोखिमों का सामना कर रहे हैं.

उनका कहना है कि पढ़ाई के लिए इंटरनेट पर अधिक समय बिताने के कारण बच्चे विशेष रूप से ऑनलाइन यौन शोषण, अश्लील संदेशों का आदान-प्रदान करना, पोर्नोग्राफी के संपर्क में आना, यौन शोषण सामग्री, साइबर-धमकी तथा ऑनलाइन उत्पीड़न जैसे कई अन्य गोपनीयता-संबंधी जोखिमों का सामना कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘हालांकि कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए किए गए उपायों का बच्चों के साथ ऑनलाइन दुर्व्यवहार और शोषण संबंधी कितना प्रभाव पड़ा है, यह पता लगाने के लिए बहुत कम सबूत हैं, स्कूलों को बंद करने और इंटरनेट पर बच्चों द्वारा अधिक समय बिताए जाने के कारण उनके ऊपर इसके गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं.’

मारवाह ने कहा कि लॉकडाउन और स्कूलों के बंद होने के कारण समाजीकरण के सीमित अवसर ने भी बच्चों के मनो-सामाजिक कल्याण को प्रभावित किया है.

उन्होंने कहा, ‘इससे अकेलापन बढ़ सकता है. वे अनिवार्य रूप से इंटरनेट का उपयोग करने, आपत्तिजनक सामग्री तक पहुंचने, धमकाने या दुर्व्यवहार करने के लिए अधिक संवेदनशील हो सकते हैं.’

मारवाह ने बच्चों के डिजिटल अधिकारों पर मौजूदा संभाषण पर इंटरनेट शासन नीति और बाल संरक्षण के लिए मंचों के बीच सामंजस्य की आवश्यकता का आह्वान किया.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक कोविड-19 महामारी के दौरान इसके प्रसार को रोकने के लिए किए गए उपायों के परिणामस्वरूप स्कूलों को बंद कर दिया गया है और ऑनलाइन शिक्षा की शुरुआत की गई. बच्चों ने मनोरंजन, सामाजिक और शैक्षिक उद्देश्यों के लिए भी अधिक समय ऑनलाइन बिताया, जबकि जरूरी नहीं कि वे किसी भी संबद्ध जोखिम से अवगत हों.

यूनिसेफ की रिपोर्ट (2020) के अनुसार, दक्षिण एशिया में 13 फीसदी बच्चों और 25 साल या उससे कम उम्र के लोगों ने घर पर ही इंटरनेट का इस्तेमाल किया. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि निम्न-मध्यम आय वाले देशों में केवल 14 प्रतिशत स्कूली बच्चों (3-17 वर्ष) के पास घर पर इंटरनेट है.

हालांकि, महामारी के दौरान भारत में शिक्षा और अन्य उद्देश्यों के लिए इंटरनेट तक पहुंचने वाले बच्चों की संख्या का पता लगाने के लिए सार्वजनिक डोमेन में कोई निर्णायक डेटा उपलब्ध नहीं है.

यूनिसेफ (2020) की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत के 16 राज्यों में लगभग तीन करोड़ 37 लाख बच्चों ने ऑनलाइन कक्षाओं और रेडियो कार्यक्रमों जैसे विभिन्न दूरस्थ शिक्षण पहलों के माध्यम से शिक्षा जारी रखी.

मारवाह ने कहा, ‘देखभाल करने वालों, शिक्षकों और माता-पिता को यह समझने में मदद करने की आवश्यकता है कि बच्चों को क्या जानना चाहिए, ताकि वे उचित और जिम्मेदारी से सक्षम हो सकें और उनका मार्गदर्शन कर सकें. मौजूदा जागरूकता निर्माण कार्यक्रमों में सामान्य सामग्री में फोकस की कमी और सीमित पहुंच है.’

उन्होंने बच्चों, देखभाल करने वालों, शिक्षकों और जनता को ऑनलाइन खतरों से बचाव और जिम्मेदार डिजिटल नागरिक होने के लिए कौशल से लैस करने के लिए एक समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर भी जोर दिया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)