गुजरात: रोड से नॉन-वेज स्टॉल हटाए जाने के बाद भाजपा अध्यक्ष बोले- मांसाहार बेचने पर कार्रवाई नहीं

गुजरात के चार नगर निकायों द्वारा सड़कों पर मांसाहार के स्टॉल/ठेलों आदि पर पाबंदी के बाद भाजपा प्रमुख सीआर पाटिल ने कहा कि देश में सभी को यह तय करने की आज़ादी है कि उन्हें क्या खाना है. अगर लोग ठेले से मांसाहार खरीद रहे हैं तो उसे हटाना उचित नहीं है. क़ानून में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. लोग कुछ भी बेचने के लिए स्वतंत्र है, बेशक वह वर्जित नहीं हो.

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गुजरात के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल. (फोटो: फेसबुक)

गुजरात के चार नगर निकायों द्वारा सड़कों पर मांसाहार के स्टॉल/ठेलों आदि पर पाबंदी के बाद भाजपा प्रमुख सीआर पाटिल ने कहा कि देश में सभी को यह तय करने की आज़ादी है कि उन्हें क्या खाना है. अगर लोग ठेले से मांसाहार खरीद रहे हैं तो उसे हटाना उचित नहीं है. क़ानून में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. लोग कुछ भी बेचने के लिए स्वतंत्र है, बेशक वह वर्जित नहीं हो.

गुजरात के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल. (फोटो: फेसबुक)

राजकोटः गुजरात भाजपा प्रमुख सीआर पाटिल ने शनिवार को कहा कि उन्होंने महापौरों को ‘धार्मिक भावनाएं आहत करने’ के नाम पर सड़क किनारे मांसाहारी भोजन बेचने वालों के खिलाफ किसी तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा प्रमुख का यह बयान राज्य में भाजपा शासित नगर निकायों द्वारा मुख्य सड़कों पर मांसाहारी भोजन बेचने वाले सभी स्टॉल और ठेले हटाने के निर्देश जारी करने के बाद आया है.

पाटिल ने शनिवार को राजकोट में कहा, ‘इस देश में हर किसी के पास यह तय करने की स्वतंत्रता है कि उन्हें क्या खाना है. अगर लोग किसी ठेले वाले से मांसाहार खरीद रहे हैं तो उसे हटाना उचित नहीं है. कानून में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. लोग कुछ भी बेचने के लिए स्वतंत्र है, बेशक वह वर्जित नहीं हो इसलिए सड़कों से ठेले हटाने का कोई सवाल ही नहीं उठता.’

हालांकि जब यह बताया गया कि राजकोट के मेयर और भावनगर नगर निगम के अधिकारियों ने धार्मिक भावनाओं के आहत होने का हवाला देकर सड़क किनारे से मांसाहार के ठेले हटाने के आदेश दिए हैं तो इस पर भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि उन सभी को निर्देश दिया गया है कि वे ऐसा नहीं करें.

राजकोट नगर निगम (आरएमसी) ने इस महीने की शुरुआत में यह कहते हुए मांसाहार भोजन के ठेले हटाने के लिए अभियान शुरू किया था कि इनके जरिए शहर की सड़कों का अतिकमण किया जा रहा है और इस तरह की खाद्य सामग्री को सार्वजनिक तौर पर दिखाने से शाकाहारी लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं. इसके बाद राज्य के अन्य नगर निकायों ने भी इसका पालन किया और इसी तरह की कार्रवाई की.

ज्ञात हो कि बीते हफ्ते अहमदाबाद नगर निगम ने शहर की मुख्य सड़कों से मांसाहारी भोजन बेचने वाले सभी स्टॉल हटाने का फैसला किया था. इस कदम के बाद वह ऐसा करने वाला राज्य का चौथा नगर निकाय बन गया है.

इससे पहले, राजकोट, वडोदरा और भावनगर नगर निकायों के राजनीतिक नेताओं ने मांसाहारी खाने के ठेलो आदि को हटाने के निर्देश जारी किए हैं. एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि ‘अतिक्रमण विरोधी अभियान’ के हिस्से के रूप में कुछ को स्थायी समिति की अनुमति के बिना हटा दिया गया था.

अहमदाबाद नगर निगम की टाउन प्लानिंग एंड एस्टेट मैनेजमेंट कमेटी के प्रमुख देवांग दानी ने बताया था कि अंडे सहित सभी मांसाहारी भोजन बेचने वाले स्टॉल को मंगलवार से शुरू हुई जांच के बाद हटा दिया जाएगा. इन ठेलों को मुख्य सड़कों के अलावा ‘धार्मिक स्थलों, उद्यानों, सार्वजनिक स्थानों, स्कूलों और कॉलेजों की 100 मीटर की सीमा के भीतर’ भी प्रतिबंधित किया गया है.

देवांग दानी ने सुबह सैर करने आने वालों, धार्मिक स्थलों पर जाने वाले निवासियों और माता-पिता की ‘इन ठेलों से आने वाली दुर्गंध की शिकायतों का हवाला देते हुए बताया, ‘इन ठेलों को मुख्य सड़कों के अलावा ‘धार्मिक स्थलों, उद्यानों, सार्वजनिक स्थानों, स्कूलों और कॉलेजों की 100 मीटर की सीमा के भीतर’ भी प्रतिबंधित कर दिया गया है. इससे छोटे बच्चों के दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव  पड़ रहा है.’

गौरतलब है कि राज्य के सभी आठ नगर निगमों पर भाजपा का शासन है. हालांकि पार्टी ने इन क़दमों से दूरी बरती है.

राज्य में भाजपा प्रमुख सीआर पाटिल ने पहले भी कहा था कि यह नेताओं की अपनी निजी राय थी और राज्य भाजपा का इससे कोई लेना-देना नहीं है और वे इसे पूरे राज्य में लागू नहीं करेंगे. इसके बाद गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने भी कहा कि उनकी सरकार को ‘किसी के शाकाहारी या मांसाहारी खाना खाने पर कोई एतराज नहीं है.’

इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि शहर से अतिक्रमण हटाना संबंधित नगर निकायों का फैसला है.

उल्लेखनीय है कि बीते कुछ समय से मांसाहारी भोजनालयों को स्थानीय हिंदुत्व समूहों या प्रशासनिक इकाइयों के बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है.

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