शक्ति मिल्स गैंगरेप मामला: तीन दोषियों को सुनाई गई मौत की सज़ा उम्रक़ैद में तब्दील

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि दोषी उनके द्वारा किए गए अपराधों का पश्चाताप करने के लिए आजीवन कारावास की सज़ा भुगतने के पात्र हैं. इससे पहले अदालत ने तीन दोषियों को मौत की सज़ा सुनाई थी, क्योंकि उन्हें फोटो पत्रकार के साथ बलात्कार से कुछ महीनों पहले शक्ति मिल्स परिसर में ही एक टेलीफोन ऑपरेटर के गैंगरेप मामले में भी दोषी ठहराया गया था.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि दोषी उनके द्वारा किए गए अपराधों का पश्चाताप करने के लिए आजीवन कारावास की सज़ा भुगतने के पात्र हैं. इससे पहले अदालत ने तीन दोषियों को मौत की सज़ा सुनाई थी, क्योंकि उन्हें फोटो पत्रकार के साथ बलात्कार से कुछ महीनों पहले शक्ति मिल्स परिसर में ही एक टेलीफोन ऑपरेटर के गैंगरेप मामले में भी दोषी ठहराया गया था.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2013 में मध्य मुंबई स्थित शक्ति मिल्स परिसर में 22 वर्षीय एक फोटो पत्रकार के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले के तीन दोषियों को सुनाई गई मौत की सजा को बृहस्पतिवार को आजीवन कारावास में बदल दिया.

अदालत ने कहा कि वे ‘उनके द्वारा किए गए अपराधों का पश्चाताप करने के लिए आजीवन कारावास की सजा भुगतने के पात्र हैं.’

जस्टिस साधना जाधव और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने विजय जाधव (18 वर्ष), मोहम्मद कासिम शेख उर्फ कासिम बंगाली (20 वर्ष) और मोहम्मद अंसारी (27 वर्ष) को सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि करने से इनकार कर दिया और उनकी सजा को उनके शेष जीवन के लिए आजीवन कारावास में बदल दिया.

पीठ ने कहा कि वह इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि इस अपराध ने समाज की सामूहिक अंतरात्मा को झकझोर दिया और बलात्कार मानवाधिकारों का उल्लंघन है.

अदालत ने कहा, ‘बलात्कार का हर मामला एक जघन्य अपराध है. यह न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है. यह पीड़ित के सर्वोच्च सम्मान को प्रभावित करता है. संवैधानिक न्यायालय जनमत के आधार पर सजा नहीं दे सकता. आजीवन कारावास नियम है और मृत्युदंड अपवाद है. मौत की सजा अपरिवर्तनीय है.’

उसने कहा कि मामलों पर निष्पक्षता से विचार करना अदालतों का कर्तव्य है और वे कानून के तहत तय की गई प्रक्रिया को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं. संवैधानिक अदालतें न्यायिक जनादेश से बंधी होती हैं.

पीठ ने कहा, ‘मृत्यु पश्चाताप की अवधारणा को समाप्त कर देती है. यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपियों को केवल मौत की सजा ही दी जानी चाहिए. वे उनके द्वारा किए गए अपराध का पश्चाताप करने के लिए आजीवन कारावास के पात्र हैं.’

उसने कहा कि दोषी पैरोल या फरलो के हकदार नहीं होंगे, क्योंकि उन्हें समाज में आत्मसात होने की अनुमति नहीं दी जा सकती और सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है.

पिछले महीने बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस साधना एस. जाधव और जस्टिस पृथ्वीराज के चव्हाण की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा मौत की पुष्टि संबंधी याचिका और मामले में निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दोषियों की अपील पर सुनवाई शुरू की थी.

निचली अदालत ने 22 अगस्त, 2013 को बंद पड़े शक्ति मिल्स परिसर में फोटो पत्रकार के साथ सामूहिक बलात्कार किए जाने के मामले में मार्च, 2014 में चार लोगों को दोषी ठहराया था.

अदालत ने जाधव, बंगाली और अंसारी को मौत की सजा सुनाई थी, क्योंकि इन तीनों को फोटो पत्रकार के साथ बलात्कार से कुछ महीनों पहले इसी स्थान पर 19 वर्षीय एक टेलीफोन ऑपरेटर के सामूहिक बलात्कार के मामले में भी दोषी ठहराया गया था. इन तीनों को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (ई) के तहत मौत की सजा सुनाई गई.

मामले के चौथे दोषी सिराज खान को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और एक नाबालिग आरोपी को सुधार केंद्र भेज दिया गया था.

मार्च 2014 में शहर की एक सत्र अदालत ने तीन आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी और पहली बार 2013 में बनाए गए नए कानूनों [धारा 376 (ई)] के तहत बार-बार बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा दी गई थी.

जाधव, बंगाली और अंसारी ने अप्रैल 2014 में उच्च न्यायालय में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (ई) की वैधता को चुनौती दी थी और दावा किया था कि सत्र अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुनाकर अपने अधिकार क्षेत्र से परे जाकर कदम उठाया.

2012 के निर्भया कांड के बाद संविधान संशोधन के द्वारा आईपीसी की धारा 376 (ई) के तहत बार-बार बलात्कार के दोषियों को उम्रकैद या मौत की सजा का प्रावधान किया गया था. इस प्रावधान के तहत 2014 में मौत की सजा पाने वाले शक्ति मिल्स सामूहिक बलात्कार कांड के तीन दोषियों ने इस धारा की संवैधानिकता को चुनौती दी थी.

हालांकि जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह फैसला बरकरार रखा था.

बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने विजय जाधव, मोहम्मद कासिम शेख और मोहम्मद सलीम अंसारी को जुलाई, 2013 में कॉल सेंटर में काम करने वाली एक 19 साल की लड़की और अगस्त 2013 में 22 साल की फोटो पत्रकार के साथ गैंगरेप के मामले में मौत की सजा सुनाई थी.

लाइव लॉ के अनुसार, धारा 376 (ई) कहता है कि पहले धारा 376 या धारा 376A या धारा 376AB या धारा 376D या धारा 376DA या धारा 376DB के तहत दंडनीय अपराध के दोषी पाए जा चुके और बाद में इनमें से किसी भी धारा के तहत दंडनीय अपराध के दोषी पाए जाने वालों को आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी, जिसका मतलब होगा कि उस व्यक्ति को बाकी जिंदगी जेल में बितानी होगी या फिर मौत की सजा दी जाएगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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