14 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में आधी से अधिक महिलाएं और बच्चे एनीमिया के शिकार: सर्वेक्षण

चौदह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जनसंख्या, प्रजनन व बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य विषयों के प्रमुख संकेतकों से जुड़े तथ्य 2019-21 एनएफएचएस -5 के चरण दो के तहत जारी किए गए हैं. सर्वे के मुताबिक़, बच्चों और महिलाओं में एनीमिया चिंता का विषय बना हुआ है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

चौदह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जनसंख्या, प्रजनन व बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य विषयों के प्रमुख संकेतकों से जुड़े तथ्य 2019-21 एनएफएचएस -5 के चरण दो के तहत जारी किए गए हैं. सर्वे के मुताबिक़, बच्चों और महिलाओं में एनीमिया चिंता का विषय बना हुआ है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: बच्चों और महिलाओं में रक्ताल्पता (एनीमिया) चिंता का विषय बना हुआ है और 14 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में आधी से अधिक महिलाओं व बच्चों में रक्ताल्पता की समस्या बनी हुई है. यह जानकारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के निष्कर्षों से सामने आयी है.

 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जनसंख्या, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य विषयों के प्रमुख संकेतकों से जुड़े तथ्य बुधवार को सरकार द्वारा 2019-21 एनएफएचएस -5 के चरण दो के तहत जारी किए गए.

राष्ट्रीय स्तर पर, महिलाओं और बच्चों में एनीमिया के मामले 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के समान ही रहे. राष्ट्रीय स्तर के तथ्यों की गणना एनएचएफएस-5 के पहले चरण और दूसरे चरण के आंकड़ों का उपयोग करके की गई.

पहले चरण में शामिल 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एनएफएचएस-5 के तथ्य दिसंबर, 2020 में जारी किए गए थे. सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुसार, बाल पोषण संकेतकों में अखिल भारतीय स्तर पर थोड़ा सुधार दिखा है.

बयान में कहा गया है कि दोनों चरणों में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में, बाल पोषण की स्थिति में सुधार हुआ है लेकिन यह बदलाव महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि इन संकेतकों में बहुत कम समय में व्यापक बदलाव होने की संभावना नहीं है.

इसमें कहा गया है, ‘बच्चों और महिलाओं में एनीमिया अब भी चिंता का विषय बना हुआ है. चरण दो में शामिल सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों और अखिल भारतीय स्तर पर एनएफएचएस -4 की तुलना में आधे से अधिक बच्चे और महिलाएं (गर्भवती महिलाओं सहित) रक्ताल्पता से पीड़ित हैं, जबकि 180 दिनों या उससे अधिक समय की गर्भवती महिलाओं द्वारा आयरन, फोलिक एसिड (आईएफए) गोलियों की मात्रा में पर्याप्त वृद्धि हुई है.’

छह महीने से कम उम्र के बच्चों को विशेष रूप से स्तनपान के मामले में अखिल भारतीय स्तर पर सुधार हुआ है और 2015-16 में यह 55 प्रतिशत था जो 2019-21 में बढ़कर 64 प्रतिशत तक पहुंच गया.

दूसरे चरण में शामिल सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में खासी प्रगति दिखी है.

बयान में कहा गया है कि अखिल भारतीय स्तर पर संस्थागत जन्म दर 79 प्रतिशत से बढ़कर 89 प्रतिशत हो गई हैं. पुडुचेरी और तमिलनाडु में संस्थागत प्रसव 100 प्रतिशत है, वहीं चरण दो के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह 90 प्रतिशत से अधिक है.

इसमें कहा गया है कि संस्थागत प्रसव में वृद्धि होने के साथ ही कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ‘सी-सेक्शन’ (सीजेरियन)प्रसव में भी काफी वृद्धि हुई है, खासकर निजी अस्पतालों में.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पांचवें एनएफएचएस 2019-21 के आंकड़े बताते हैं कि सभी आयु समूहों में एनीमिया में सबसे अधिक वृद्धि 6-59 महीने की आयु के बच्चों में हुई हैं.

आंकड़ों के मुताबिक, 6-59 महीने की आयु के बच्चों में एनीमिया शहरी क्षेत्रों में 64.2 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में 68.3 फीसदी है.

इसके बाद 15-19 वर्ष की आयु की महिलाओं में एनीमिया का प्रतिशत 59.1 है. इस समूह में भी शहरी क्षेत्र के 54.1 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में 58.7 प्रतिशत है.

15-49 वर्ष की आयु की गर्भवती महिलाओं को पिछले सर्वेक्षण के 50.4 प्रतिशत की तुलना में 52.2 प्रतिशत एनीमिक पाया गया. लेकिन इस समूह में शहरी क्षेत्रों (45.7 प्रतिशत) और ग्रामीण क्षेत्रों में (54.3) के प्रतिशत के बीच काफी अंतर है.

आंकड़ों से पता चलता है कि पुरुषों में एनीमिया का प्रसार अन्य समूहों की तुलना में काफी कम था: 15-49 आयु वर्ग में 25 प्रतिशत और 15-16 आयु वर्ग में 31.1 प्रतिशत.

एनएफएचएस-5 के अनुसार, देश ने पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण के दो प्रमुख संकेतकों- स्टंटिंग (सही से विकास न होना) और वेस्टिंग (कमजोर होते जाना) में मामूली सुधार दर्ज किया है।

एनएफएचएस-5 के आंकड़े बताते हैं कि एनएफएचएस-4 में बताए गए 38.8 फीसदी की तुलना में पांच साल से कम उम्र के 35.5 फीसदी बच्चे अविकसित (उम्र के हिसाब से) हैं.

नवीनतम आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों के 30.1 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में 37.3 प्रतिशत अविकसित बच्चे हैं.

बच्चों में सर्वेक्षण के दूसरे चरण के आंकड़ों में राजस्थान 31.8 प्रतिशत ने 7.3 प्रतिशत अंक की कमी देखी गई. उसके बाद उत्तर प्रदेश 39.7 प्रतिशत में 6.6 प्रतिशत की कमी आई.

हालांकि, उत्तराखंड 27 फीसदी और हरियाणा 27.5 फीसदी में 6.5 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई और मध्य प्रदेश 35.7 फीसदी में 6.3 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई.

एनएफएचएस -5 ने एनएफएचएस -4 में 21 प्रतिशत की तुलना में पांच साल से कम उम्र के 19.3 प्रतिशत बच्चों में वजन कमी (ऊंचाई की तुलना में) के बारे में भी बताया है. इस श्रेणी के बच्चों का प्रतिशत शहरी क्षेत्र में 18.5 और ग्रामीण क्षेत्रों 19.5 है.

लेकिन आंकड़ों में एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति सामने आई है. एनएफएचएस -4 में 7.5 प्रतिशत की तुलना में पांच साल से कम उम्र के 7.7 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से ‘वेस्टेड’ (ऊंचाई की तुलना में कम वजन) श्रेणी में हैं.

एनएफएचएस -5 पांच साल से कम उम्र के बच्चों के बीच एक और खतरे का संकेत दिया है. एनएफएचएस -4 में रिपोर्ट किए गए 2.1 प्रतिशत की तुलना में 3.4 प्रतिशत अधिक वजन (ऊंचाई की तुलना में अधिक वजन) हैं.

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, अधिक वजन होना कुपोषण का संकेत देता है, जो खाने की मात्रा के लिए बहुत कम कैलोरी खर्च करने के परिणामस्वरूप होता है, जिसके कारण बाद में गैर-संचारी रोगों के जोखिम बढ़ता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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