इलाहाबाद हत्याकांडः पुलिस ने कथित उच्च जाति के आरोपियों को सितंबर में दर्ज मामले में जेल भेजा

25 नवंबर को इलाहाबाद के फाफामऊ के मोहनगंज गोहरी गांव में दो महिलाओं व एक बच्चे समेत दलित परिवार के चार सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. इस मामले में पुलिस ने कथित उच्च जाति से जुड़े 11 लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कर आठ को गिरफ़्तार किया गया था, लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर 19 साल के दलित युवक को हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है.

(फोटोः पीटीआई)

25 नवंबर को इलाहाबाद के फाफामऊ के मोहनगंज गोहरी गांव में दो महिलाओं व एक बच्चे समेत दलित परिवार के चार सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. इस मामले में पुलिस ने कथित उच्च जाति से जुड़े 11 लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कर आठ को गिरफ़्तार किया गया था, लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर 19 साल के दलित युवक को हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है.

(फोटोः पीटीआई)

नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के गोहरी गांव में दलित परिवार के चार सदस्यों की हत्या के आरोपी कथित उच्च जाति के परिवार के 11 सदस्यों में से चार को पीड़ितों के संबंधियों की सितंबर में दर्ज कराए गए अलग मामले की शिकायत के आधार पर जेल भेजा गया है.

इलाहाबाद के मोहनगंज गोहरी इलाके में दलित परिवार के पचास वर्षीय शख्स, 45 वर्षीय उनकी पत्नी, उनकी बेटी और 10 साल के बेटी की 25 नवंबर को उनके घर में हत्या कर दी गई थी. यह मामला फाफामऊ पुलिस थाना क्षेत्र में आता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस का कहना है कि 24 नवंबर की रात को परिवार की हत्या कर दी गई थी. लड़की का शव कमरे में मिला था जबकि तीन अन्य सदस्यों के शव घर के आंगन में मिले थे. लड़की का शव कमरे में मिलने से संदेह जताया गया कि उसके साथ गैंगरेप किया गया.

लड़की की उम्र को लेकर भी कहा जा रहा था कि वह नाबालिग थी लेकिन पुलिस ने बाद में दावा किया कि लड़की नाबालिग नहीं थी उसकी उम्र 25 साल थी लेकिन इस दावे का पीड़ित परिवार के संबंधियों ने विरोध किया था.

दलित परिवार के संबंधियों ने इस अपराध के लिए कथित उच्च जाति के एक परिवार के 11 सदस्यों पर आरोप लगाते हुए कहा था कि पुलिस ने आरोपी परिवार के साथ समझौता करने का दबाव बनाने की कोशिश की. पुलिस ने इन 11 में से आठ आरोपियों को गिरफ्तार भी किया था.

विपक्ष के दबाव के बीच उत्तर प्रदेश पुलिस ने दो पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया था, जिसमें फाफामऊ पुलिस स्टेशन के प्रभारी राम केवल पटेल और हेड कॉन्स्टेबल सुशील सिंह शामिल हैं, जिन पर हत्या से पहले पीड़ित परिवार की शिकायत को गंभीरता से नहीं लेने और ड्यूटी में लापरवाही बरतने के आरोप में निलंबित किया गया है.

30 नवंबर को बताया गया कि पुलिस ने हत्या के लिए गिरफ्तार किए गए इन सभी ‘उच्च जाति’ के आठ सदस्यों को रिहा कर 19 साल के एक दलित युवक को गिरफ्तार कर लिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने सभी 11 आरोपियों को रिहा कर दिया है.

पुलिस का कहना है कि 30 नवंबर को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत पीड़ित परिवार के संबंधियों कि शिकायत पर मामला दर्ज किया था. इसमें आकाश सिंह, अभय सिंह, मनीष सिंह और रवि सिंह पर छेड़छाड़, उत्पीड़न और दलित परिवार के सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगाया गया था.

इनके खिलाफ दंगा करने, उत्पीड़न और आपराधिक धमकी देने के तहत आईपीसी की कई धाराओं में मामला दर्ज किया गया था.

यह शिकायत पीड़ित परिवार की महिला द्वारा दर्ज कराई गई थी कि आरोपी उनके घर में घुस आए और परिवार के सदस्यों की रॉड से बेरहमी से पिटाई की. पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘इस मामले में जल्द ही चार्जशीट दाखिल की जाएगी.’

पुलिस दलित युवक के सहयोगियों की तलाश में जुटी

इस बीच पुलिस की टीमें मामले में रविवार को गिरफ्तार किए गए मुख्य आरोपी 19 साल के दलित युवक पवन सरोज के फरार सहयोगियों की तलाश में पुणे और लखनऊ गईं.

पुलिस का कहना है कि हत्याओं के बाद सरोज का सहयोगी गंगे पुणे भाग गया था जबकि उसका संबंधी सोनू लखनऊ फरार हो गया था.

पुलिस के मुताबिक,सरोज दलित समुदाय से ही है. वह दलित युवती को उसके मोबाइल फोन पर मैसेज भेजकर उसे परेशान करता था. उसे परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर गिरफ्तार किया गया है.

पीड़ित परिवार ने पुलिस के इस दावे पर सवाल उठाते हुए कहा है कि कथित उच्च जाति के आरोपियों को बचाने के लिए यह किया जा रहा है.

इससे पहले अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (इलाहाबाद जोन) प्रेम प्रकाश सिंह ने कहा कि जांच रिपोर्ट के आधार पर यह पुष्टि हुई है कि हत्या से पहले लड़की का बलात्कार किया गया था.

बता दें कि विपक्षी पार्टियों ने इस घटना पर तीखी प्रतिक्रियाएं देते हुए राज्य में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति पर यूपी सरकार की आलोचना करते हुए उसे दलित विरोधी सरकार बताया.

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