इंटरनेट बैन के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली दलीलें क़ानून में परिभाषित नहीं: संसदीय समिति

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर बनी संसदीय समिति को बताया कि केंद्र व राज्य सरकारें 'सार्वजनिक सुरक्षा' और 'सार्वजनिक आपातकाल' की दलील देकर इंटरनेट प्रतिबंधित करते हैं, लेकिन भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम में ये शब्दावली परिभाषित नहीं है. समिति की रिपोर्ट के अनुसार, परिभाषा के अभाव के चलते प्रशासन आए दिन रोज़मर्रा के पुलिस एवं प्रशासनिक कामों के लिए भी इसका सहारा ले रहा है.

(फोटो: रॉयटर्स)

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर बनी संसदीय समिति को बताया कि केंद्र व राज्य सरकारें ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ और ‘सार्वजनिक आपातकाल’ की दलील देकर इंटरनेट प्रतिबंधित करते हैं, लेकिन भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम में ये शब्दावली परिभाषित नहीं है. समिति की रिपोर्ट के अनुसार, परिभाषा के अभाव के चलते प्रशासन आए दिन रोज़मर्रा के पुलिस एवं प्रशासनिक कामों के लिए भी इसका सहारा ले रहा है.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक संसदीय समिति को बताया है कि दूरसंचार और इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करने के लिए अक्सर राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली सार्वजनिक सुरक्षा और सार्वजनिक आपातकाल की दलील भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5(2) के तहत परिभाषित नहीं हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मंत्रालय ने कांग्रेस नेता शशि थरूर की अध्यक्षता वाली संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर बनी संसद की स्थायी समिति को ये जानकारी दी है.

गृह मंत्रालय ने कहा कि इसलिए इंटरनेट बैन करने के लिए ‘सार्वजनिक सुरक्षा और आपातकाल’ पर निर्णय ‘उपयुक्त अथॉरिटी की राय’ के आधार पर लिया जाता है.

संसदीय समिति ने बीते बुधवार को लोकसभा में पेश किए अपने रिपोर्ट में कहा है कि इन दो शब्दावली की व्याख्या या इसे परिभाषित किए बिना ही केंद्र और राज्य सरकारें इनका हवाला देते हुए दूरसंचार और इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी लगाती आ रही है.

समिति ने कहा कि ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ और ‘सार्वजनिक आपातकाल’ की स्थिति उत्पन्न होने की स्थिति में इंटरनेट पर जरूर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, लेकिन इसकी परिभाषा के अभाव के कारण प्रशासन आए दिन रोजमर्रा के पुलिस एवं प्रशासनिक कार्यों के लिए भी इसका सहारा ले रही है.

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कई बार परीक्षाओं में नकल रोकने के नाम पर भी इंटरनेट बन कर दिया जा सकता है जिसका सार्वजनिक सुरक्षा या आपातकाल से कोई लेना-देना नहीं है.

यूके स्थित निजता और सुरक्षा अनुसंधान फर्म Top10VPN के एक शोध के अनुसार, भारत को 2020 में इंटरनेट बंद होने के कारण दुनिया में सबसे ज्यादा आर्थिक प्रभाव का सामना करना पड़ा है. इससे 8,927 घंटे और 2.8 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है.

जिन 21 देशों ने साल 2020 में किसी न किसी रूप में दूरसंचार या इंटरनेट पर पाबंदी लगाई थी, उसमें से भारत पर प्रभाव, बाकी के 20 देशों के संयुक्त नुकसान का दोगुना से भी अधिक है.

दूरसंचार सेवाओं संबंधी प्रतिबंध के प्रावधानों का दुरुपयोग रोकने के लिए समिति ने सुझाव दिया है कि सरकार इसके लिए उपयुक्त व्यवस्था तैयार करे, जो जल्द से जल्द दूरसंचार/इंटरनेट पाबंदी की जरूरत पर फैसला करेगी.

उन्होंने कहा कि सार्वजनिक आपातकाल और सार्वजनिक सुरक्षा जैसी शब्दावली को परिभाषित कर इसके मापदंडों को लागू किया जाए, ताकि इंटरनेट निलंबन नियमों को लागू करते समय इसके पीछे की दलीलों में अस्पष्टता को समाप्त किया जा सके.

समिति ने यह भी कहा केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ-साथ दूरसंचार विभाग (डीओटी) को भारत में सभी इंटरनेट शटडाउन के केंद्रीकृत डेटाबेस को बनाए रखने के लिए एक तंत्र स्थापित करना चाहिए. उक्त डेटाबेस में विवरण होना चाहिए जैसे कि किसी क्षेत्र में दूरसंचार या इंटरनेट सेवा को कितनी बार निलंबित किया गया था, कारण, अवधि और इस संबंध में सक्षम प्राधिकारी का निर्णय.

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