केंद्र की स्वामित्व योजना से बाहर रखे जाने पर क्यों नाख़ुश है दिल्ली की ग्रामीण आबादी

साल 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'स्वामित्व योजना' की शुरुआत की थी. तब बताया गया था कि ग्रामीण ज़मीनों का सर्वेक्षण करने के बाद उनका मालिकाना हक़ ग्रामीण आबादी को दिया जाएगा. इस साल जुलाई में संसद में बताया गया कि दिल्ली की ग्रामीण क्षेत्र में यह योजना लागू नहीं होगी, जिसके बाद से यहां के लोगों ने केंद्र की इस उपेक्षा पर सवाल उठाए हैं.

/
दिल्ली के शहरीकृत घोषित गांव नागल ठाकरान के ग्रामीण. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

साल 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘स्वामित्व योजना’ की शुरुआत की थी. तब बताया गया था कि ग्रामीण ज़मीनों का सर्वेक्षण करने के बाद उनका मालिकाना हक़ ग्रामीण आबादी को दिया जाएगा. इस साल जुलाई में संसद में बताया गया कि दिल्ली की ग्रामीण क्षेत्र में यह योजना लागू नहीं होगी, जिसके बाद से यहां के लोगों ने केंद्र की इस उपेक्षा पर सवाल उठाए हैं.

दिल्ली का भाटी कलां गांव. (फोटो: विशाल जायसवाल/द वायर)

पिछले साल 24 अप्रैल राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन के दौरान ‘स्वामित्व योजना’ की घोषणा की, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों की गतिशीलता को बदलने की क्षमता का दावा किया गया. सरकार द्वारा दावा किया गया कि देश के विभिन्न राज्यों में ग्रामीणों को यह सुख मिलेगा.

कहा गया था कि इसके तहत ग्रामीण इलाकों की भूमि का मालिकाना हक़ ग्रामीण नागरिकों को सौंपा जाएगा.

पंचायती राज मंत्रालय के अनुसार, स्वामित्व (ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर प्रौद्योगिकी के साथ गांवों और मानचित्रण का सर्वेक्षण) योजना का उद्देश्य ग्रामीण भारत के लिए एक एकीकृत संपत्ति सत्यापन समाधान प्रदान करना है. यह योजना ड्रोन तकनीक और सतत परिचालन संदर्भ स्टेशन का उपयोग करते हुए ग्रामीण आबादी क्षेत्र में भूमि के सर्वेक्षण के लिए थी.

मंत्रालय के अनुसार, स्वामित्व के परिणाम में राजस्व/संपत्ति रजिस्टर में अधिकारों का रिकॉर्ड अपडेट करना और संपत्ति मालिकों को संपत्ति कार्ड जारी करना शामिल होगा. इससे ऋण और अन्य वित्तीय सेवाओं के लिए ग्रामीण आवासीय संपत्तियों के मौद्रीकरण की सुविधा होगी.

इसके अलावा, यह संपत्ति कर के स्पष्ट निर्धारण का मार्ग भी प्रशस्त करेगा. ये योजना कर संग्रह और ग्राम पंचायतों की मूल्यांकन प्रक्रिया की मांग को मजबूत करने के लिए संपत्ति और संपत्ति रजिस्टर के अपडेशन को भी सक्षम करेगी.

बताया गया है कि अन्य ग्राम पंचायत और सामुदायिक संपत्ति जैसे कि सड़कें, तालाब, नहरें, खुले स्थान, स्कूल, आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य उप-केंद्र आदि का भी सर्वेक्षण किया जाएगा और जीआईएस नक्शे बनाए जाएंगे. इन मानचित्रों का उपयोग बेहतर गुणवत्ता ग्राम पंचायत विकास योजना तैयार करने के लिए किया जा सकता है.

हालांकि केंद्र सरकार के इन दावों ने अब दिल्ली की ग्रामीण आबादी को नाखुश कर दिया है और वजह है उन्हें इस योजना से बाहर रखा जाना.

उल्लेखनीय है कि दिल्ली के गांव के आबादी क्षेत्र को लाल डोरा कहते है, हरियाणा में भी गांव के आबादी क्षेत्र को इसी नाम से जाना जाता है (जिसे अब स्वामित्व की सुविधा मिल रही है) पंजाब और हिमाचल प्रदेश में इसे लाल लकीर कहते हैं. देश के अन्य राज्यों में भी गांव की आबादी को अलग-अलग नाम दिए गए हैं.

अब बात यह कि दिल्ली के ग्रामीणों के लिए इस योजना का क्या महत्व है. दिल्ली के 223 गांव को इस योजना में पहले शामिल कर फिर हटाया गया है, जिसका अर्थ है कि दिल्ली के मूलनिवासियों के साथ भेदभाव हुआ और उनकी ही पुश्तैनी जमीनों के मालिकाना हक़ से उन्हें महरूम किया जा रहा है.

सरकारी आंकड़े के अनुसार, दिल्ली शहर की 13,282.5 एकड़ ज़मीन (दिल्ली का लाल डोरा क्षेत्र) में मालिक कौन है किसी को नहीं मालूम, साफ़ शब्दों में देश की राजधानी में अभी भी जंगल के कानून काबिज़ है ‘जिसका कब्ज़ा वो मालिक.’

स्वामित्व योजना के लिए हो रहे सर्वेक्षण में दिल्ली के 360 गांवों में से 135 गांव सर्वेक्षण किए जाने वाले गांवों की सूची से नदारद थे और बाकी 222 गांवों का सर्वेक्षण योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार 2022-23 में किया जाना था, पर इस साल जुलाई में संसद में पूछे गए एक सवाल में ग्रामीण विकास मंत्री ने जवाब दिया कि दिल्ली देहात में यह योजना नहीं लाई जा रही है.

इसका कारण बताया गया कि पंचायती राज को दिल्ली में भंग कर दिया गया है और गांव अब नगर पालिका के अंतर्गत है.

उल्लेखनीय है कि दिल्ली प्रशासन द्वारा जनवरी 1990 में दिल्ली के उपराज्यपाल के नाम से यह आदेश प्रकाशित करने के बाद पंचायत चुनाव कभी नहीं हुए. दिल्ली के 223 ग्रामीण गांवों को 1993 में संविधान के 74वे संशोधन से मिलने वाली सुविधा और सहूलियत से वंचित कर दिया गया.

बाकी पूरे देश में इस नई योजना के अमल में आने के बाद दिल्ली के ग्रामीण देख रहे हैं कि देश भर के गांवों में लोग प्रधानमंत्री के आदेश अनुसार अपनी ज़मीन के मालिक बन रहे है, लेकिन उनके साथ यह नहीं हो रहा है. इस विषय में दिल्ली में तीन प्रकार के गांवों (घोषित शहरीकृत, ग्रामीण और शहरीकृत) के लोगों ने अपनी समस्याओं का जिक्र करते हुए भारत सरकार की इस उपेक्षा पर सवाल उठाए हैं.

कंझावला गांव के हरिपाल डबास कहते हैं कि सवाल यह है कि देश की राजधानी के लाल डोरे को स्वामित्व कैसे मिलेगा जब गांव या तो शहरीकृत हो चुके है या घोषित किए जा रहे है, पंचायत भंग करने का फैसला सरकार का था, ग्रामीण आज इसी फैसले के नतीजे भुगत रहे हैं.

ऐसा ही सवाल अमित यादव के मन में भी है, जो नजफगढ़ के झुलझुली गांव में रहते हैं और जैविक खेती करते हैं.

उनका कहना है, ‘हम अपने दादा के समय से सुनते आ रहे है की कभी दिल्ली की राजनीति में ये कहा जाता था कि ‘दिल्ली में तो खेती होती ही नहीं’ है. भारत सरकार द्वारा किसान या गांव के लिए बनाई किसी भी योजना का दिल्ली में हमें लाभ नहीं मिलेगा.’

वे आगे कहते हैं, ‘2018 में 95 गांवों को शहरी क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित किया गया था, यह सोचना मुश्किल है कि दिल्ली में क्या स्थिति होगी, क्योंकि शहर की कुख्यात कच्ची कॉलोनियां शहर में जड़ें जमा रही हैं. यहां तक ​​कि लॉकडाउन के दौरान ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण खबर थी कि एक किसान को मार दिया गया था जिसने शहर में अवैध निर्माणों के खिलाफ आवाज उठाई. दिल्ली देहात के नाम पर तो सिर्फ लूट हो रही है.’

‘ऐसी निराशाजनक स्थिति में हम प्रधानमंत्री से क्या उम्मीद रखे?’, यह कहना है देवेंदर जिलेदार का, जो राजधानी क्षेत्र में आने वाले नांगल ठाकरान गांव से हैं.

वे कहते हैं, ‘जब देश का किसान अपनी मेहनत से उगाई फसल का दाम तक नहीं लगा सकता तो स्वामित्व जैसी योजना से किसान को लाभ मिलेगा इस बात में ज़रा भी सच्चाई नहीं दिखाई देती. लाल डोरे के न बढ़ने से किसान को अपने बढ़ते परिवार के रहने के लिए जगह नहीं मिल रही, दूसरी और भारत सरकार दिल्ली शहर के विस्तार करने के लिए कृषि भूमि पर बड़ी-बड़ी इमारत बनाने की घोषणा कर रही है!’

दिल्ली के शहरीकृत घोषित गांव नागल ठाकरान के ग्रामीण. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

वे आगे जोड़ते हैं, ‘ग्रामीण कहां रहेंगे और शहर का कितना हिस्सा कानूनी रूप से शहरीकृत हो जाएगा और अवैध रूप से विकसित होने से बच जाएगा न तो राज्य/ केंद्र सरकार इस बारे में गंभीरता से सोच रही है, जबकि गांव ‘अवैधता’ का खामियाजा भुगत रहे हैं!’

ढांसा गांव के प्रदीप डागर के दो सवाल हैं- ‘पहला- जब कच्ची कॉलोनियों को मालिकाना हक़ देने के लिए भारत सरकार ने पहल की है जिनका अस्तित्व कुछ साल पुराना है, तो दिल्ली देहात के गांव जो हजारों साल से बसे हुए है उनके साथ इतना दुर्व्यवहार क्यों? दूसरा- जब सरकार गांव का शहरीकृत कर रही है तो ग्रामीणों को व्यापार और बाज़ार से ऋण की सुविधा से दूर क्यों कर रही है? इसे किस प्रकार से विकास माना जा रहा है?’

बताया गया है कि ग्रामीण सर्वेक्षण पूरे देश में चार साल की अवधि में 2020 से 2024 तक किया जाएगा. यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वित्तीय संपत्ति लाकर उनकी संपत्ति का उपयोग ऋण और अन्य वित्तीय लाभ लेने के लिए वित्तीय संपत्ति के रूप में करने में सक्षम करेगी.

सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार, योजना के माध्यम से सरकार को उम्मीद है कि संपत्ति विवाद और कानूनी मामले कम हो जाएंगे.

बुढ़ेला गांव के दीपक त्यागी पूछते हैं, ‘क्या इसका अर्थ ये है कि दिल्ली के गांव में ये सब समस्या नहीं है? वहां सब कुछ बहुत अच्छा है जिस कारण उन्हें स्वामित्व योजना से बाहर किया गया है! बड़े ताज्जुब की बात है क्योंकि दो साल पहले मार्च में दिल्ली में एक बैठक में दिल्ली विकास प्राधिकरण के आला अफसर ने सार्वजनिक रूप से ये बात कबूली थी कि डीडीए पर 26,000 मुकदमे चल रहे है. जमीनी विवाद ही दिल्ली में सबसे बड़ी समस्या है.’

देश में तेजी से शहरीकरण को देखते हुए और दिल्ली का उदाहरण लेते हुए यदि दिल्ली के गांवों को योजना में प्राथमिकता नहीं दी जाती है, तो क्या इसका मतलब यह है कि दिल्ली के गांवों में संपत्ति विवाद नहीं हैं? क्या दिल्ली में गैंगवार, गोलीबारी, हत्या और धोखाधड़ी से जुड़ी  जो खबरें छपती हैं कि कैसे एक गांव में सक्रिय गिरोह हैं, और दूसरा गैरकानूनी कामों का अड्डा बन गया है. सब बेबुनियाद हैं!

या सही मायने में शायद सरकार ने नियंत्रण या दिल्ली को छोड़ दिया है और यह स्वीकार कर लिया है कि यह एक बिगड़ैल गांव है, जहां कोई नियम कभी लागू नहीं होगा!

ज्ञात हो कि देश के लगभग 6.62 लाख गांवों को स्वामित्व योजना में शामिल किया जाएगा- हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लगभग एक लाख गांवों में यह शुरू भी हो गया है और दिल्ली से सटे हरियाणा में तो कई गांवों में मालिकाना हक ग्रामीणों को मिल गया है

संक्षेप में समझें तो हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्य अपनी ग्रामीण आबादी की देखभाल के मामले में दिल्ली से आगे हैं. लेकिन 1911 से दिल्ली के विकास के लिए अपनी पैतृक जमीनों को पीछे छोड़ते यहां के किसानों को देश के अन्य किसानों की तरह स्वामित्व से वंचित रखा जाना दिखता है कि सरकार के ‘दिल्ली मॉडल’ में खोट है. यह उदाहरण है कि कैसे एक शहर अनेक गांव की जमीनों और संसाधनों को एक अजगर की भांति निगल रहा है और देश के मुखिया को यह ‘विकास’ नज़र आ रहा है.

(लेखक सेंटर फॉर यूथ कल्चर लॉ एंड एनवायरनमेंट के सह-संस्थापक और अध्यक्ष हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25