क्या सवाल उठाने वाली छात्राओं को इस देश में लाठियों से जवाब दिया जाएगा?

क्या वाइस चांसलर, पुलिस प्रशासन और देश की सरकारें उन लड़कियों को देशद्रोही मानती हैं जो यह शिकायत करें कि उनके साथ छेड़खानी और अभद्र हरकतें हो रही हैं?

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क्या वाइस चांसलर, पुलिस प्रशासन और देश की सरकारें उन लड़कियों को देशद्रोही मानती हैं जो यह शिकायत करें कि उनके साथ छेड़खानी और अभद्र हरकतें हो रही हैं?

BHU Police1

यदि देश के नागरिकों को, आवासीय परिसर के छात्रों और छात्राओं को सुरक्षा मांगने पर पुलिस की लाठियों का ईनाम मिले तो इसे विरोधियों की राजनीति माना जाना चाहिए? अगर लड़कियों को सुरक्षा मांगने पर लाठी मिले तो इस पर राजनीति क्यों नहीं होनी चाहिए?

लड़कियों की सुरक्षा की मांग पर उन्हें राजनीति से प्रेरित बता देना क्या राजनीति नहीं है? एक विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर का यह कह देना कि विश्वविद्यालय में जो भी हो रहा है, उसके सूत्रधार बाहरी लोग हैं, यह सब प्रधानमंत्री को बदनाम करने के लिए किया जा रहा है, तो यह राजनीति नहीं है?

क्या विश्वविद्यालय बाहरी लोग चलाते हैं? एनडीटीवी पर वाइस चांसलर गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कहा कि वे लड़कियों से मिलने हॉस्टल जाना चाहते थे लेकिन बाहरी अराजक तत्वों ने उन्हें हॉस्टल नहीं जाने दिया. क्या बाहरी तत्वों ने विश्वविद्यालय को अपने हाथ में ले लिया है? अगर वाइस चांसलर को हॉस्टल जाने से रोका गया तो पुलिस क्यों नहीं बुलाई गई?

छात्राओं पर लाठी चार्ज करने वाली पुलिस वाइस चांसलर को अराजक तत्वों से कैसे नहीं बचा पा रही है? छेड़खानी से पीड़ित लड़कियों के आंदोलन को नक्सली आंदोलन बताना क्या राजनीति नहीं है? वाइस चांसलर का कहना है कि लाठी चार्ज की जानकारी उन्हें नहीं थी और लड़कियों पर कोई लाठी चार्ज नहीं हुआ. क्या वाकई पुलिस बिना विश्वविद्यालय प्रशासन की अनुमति के अंदर आई?

क्या लाठी चार्ज की सभी ख़बरें झूठी हैं? क्या लड़कियों के घायल होने के सारे वीडियो फुटेज और फोटो झूठे हैं? क्या ये ख़बरें देने वाले सभी मीडियाकर्मी भी नक्सली हैं? क्या सुरक्षा गार्ड का छेड़खानी से पीड़ित छात्रा से यह कहना कि छह बजे के बाद घूमोगी तो यही होगा, यह राष्ट्रवाद है?

क्या वाइस चांसलर का यह बयान देना कि विश्वविद्यालय परिसर में राष्ट्रवाद कमज़ोर नहीं पड़ने देंगे, यह राजनीति नहीं है? क्या वाइस चांसलर पहले विश्वविद्यालय का मुखिया होने से पहले छेड़खानी छाप राष्ट्रवाद का ब्रांड एंबेस्डर है?

इतने बड़े विश्वविद्यालय में अगर लड़कियां लगातार भेदभाव की शिकायत करती हैं तो इससे राष्ट्रवाद कैसे कमज़ोर पड़ता है? लड़कियों के हॉस्टल के बाहर लड़कों के हस्तमैथुन करने का राष्ट्रवाद से क्या संबंध है?

क्या वाइस चांसलर, पुलिस प्रशासन और देश की सरकारें उन सभी लड़कियों को देशद्रोही, नक्सली और देश विरोधी मानती हैं जो यह शिकायत करें कि उनके साथ छेड़खानी और अभद्र हरकतें हो रही हैं?

वाइस चांसलर का कहना है कि यह घटना प्रधानमंत्री के दौरे के पहले कराई गई. इसके पहले कैंपस में भेदभाव की जो शिकायतें आ रही थीं, क्या वे भी विरोधी दलों ने प्रायोजित की थीं? क्या बीएचयू की सैकड़ों लड़कियों ने प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ कोई मोर्चा बना लिया है जिसके तहत वे अपनी अस्मिता की बाज़ी भी लगा रही हैं?

क्या बीएचयू और इसके वाइस चांसलर को बाहरी अराजक तत्वों ने इस हालत में ला दिया है कि वे अपनी ही छात्राओं को सुरक्षा की गारंटी न दे सकें? क्या बीएचयू के वाइस चांसलर को प्रधानमंत्री की सुरक्षा की भी ज़िम्मेदारी दी गई है? क्या उन्हें भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता पद की भी ज़िम्मेदारी है?

क्या लड़कियों के धरने पर बैठने के बाद धरनास्थल पर वाइस चांसलर ने जाकर लड़कियों का ज्ञापन लिया? क्या इतने बवाल के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने सुरक्षा का कोई रोडमैप दिया? अगर वाइस चांसलर कह रहे हैं कि यह प्रायोजित आंदोलन था तो इसका प्रायोजक कौन था?

नई दुनिया की वेबसाइट ने रिपोर्ट की है कि ‘बीएचयू परिसर में छात्राओं के साथ हुई छेड़खानी के विरोध में शुरू हुए उनके धरना-प्रदर्शन के कुछ ही घंटे बाद राजनीतिक दलों और नकारात्मक गुट के लोगों ने हाइजैक कर लिया था. इतना ही नहीं, इस मामले को पीएम के दौरे के दरम्यान ही बड़ा बनाने की भी पूरी तैयारी कर ली गई थी.’

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, जेएनयू प्रकरण के तौर पर बीएचयू को सुलगाने में जुटे लोगों को विश्वविद्यालय प्रशासन के अड़ियल व लापरवाह रवैए से खूब मौका मिला और वे अपने मंसूबे में कामयाब हो गए. अंततः छेड़खानी का मसला पीछे छूट गया और बीएचयू को एक बवाली परिसर के रूप में राष्ट्रीय फलक पर बदनाम कर दिया गया. बीएचयू मामले को ख़ुफिया विभाग ने सुनियोजित करार दिया है. पूरे मामले को बड़ा बनाने के लिए बीएचयू प्रशासन को भी दोषी माना गया है.’

यह ‘नकरात्मक गुट’ कौन है? क्या लड़कियों का सुरक्षा की मांग करना नकारात्मक आंदोलन था? इस रिपोर्ट के मुताबिक, यदि विश्वविद्यालय प्रशासन के अड़ियल व लापरवाह रवैए से लोगों को ख़ूब मौक़ा मिला, तो प्रशासन ने यह मौक़ा क्यों दिया गया? क्या विश्वविद्यालय प्रशासन भी इस नकारात्मक गुट का हिस्सा है? क्या विश्वविद्यालय प्रशासन भी प्रधानमंत्री के दौरे के ख़िलाफ़ आंदोलन चाहता था? यदि नहीं तो लड़कियों की शिकायत को थाने में धरने के बाद क्यों पहुंचाया गया?

यदि बीएचयू मामले को ख़ुफिया विभाग ने सुनियोजित करार दिया है तो यह योजना बनाने और कार्यान्वित करने वालों के ख़िलाफ़ कोई जांच बिठाई गई? यह कथित ख़ुफिया विभाग उस ‘सुनियोजन’ से पहले क्या कर रहा था? यह ख़ुफ़िया विभाग और पुलिस ऐसी योजना बनाकर उसे कारगर करने वालों में से किसपर कार्रवाई कर रहा है?

हर असफलता को विरोधियों की साज़िश और नक्सलियों, वामपंथियों का षडयंत्र बताना क्या राजनीति नहीं है? सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में आंदोलनकारी लड़कियों पर अभद्र टिप्पणी करना किस संसदीय परंपरा और सामाजिक शालीनता का हिस्सा है? पत्रकारों का लाठी चार्ज को जायज़ बताना किस संत परंपरा का हिस्सा है?

जेएनयू, डीयू और अब बीएचयू में टैंक और सेना तैनात करने की कामना करने वाले लोग किस राष्ट्र का भला कर रहे हैं? छात्रों से लेकर किसानों तक पर उनकी मांगों के बदले गोली चलाना किस आदर्श राष्ट्र राज्य का मॉडल है? जेएनयू में जो कथित देशद्रोह हुआ, उसमें एक भी व्यक्ति पर कार्रवाई आज तक नहीं हुई. वह पिलपिला राष्ट्रवाद कहां है जो छात्रों के ख़िलाफ़ टैंक तो तैनात करना चाहता है, लेकिन किसी दोषी को वर्षों तक नहीं खोज सकता?

अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि पुलिस, प्रशासन, सेना, तोप, बंदूकें और सुरक्षा व्यवस्था किसके लिए है? सुरक्षा व्यवस्था भंग करने वालों पर प्रयोग के लिए, या सुरक्षा मांगने वालों के लिए? छात्रों के सवाल उठाने पर, सुरक्षा मांगने पर, राजनीतिक प्रश्न करने पर उन्हें देशविरोधी, राष्ट्रद्रोही और नकारात्मक गुट का बता देना किस राष्ट्रवाद का हिस्सा है? हर घटना को राष्ट्रद्रोह और राष्ट्रवाद के खांचे में फिट करने से राष्ट्र का क्या फ़ायदा होगा, यह सबसे विचारणीय प्रश्न है, जिसपर हर किसी को मंथन करना चाहिए.