सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, सेक्स वर्कर्स को राशन, वोटर आईडी, आधार कार्ड मुहैया कराएं सरकारें

यौनकर्मियों को राशन मुहैया कराने को लेकर दिए गए निर्देश का पालन न करने पर कोर्ट ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा कि गरिमा का अधिकार एक मौलिक हक़ है जो देश के प्रत्येक नागरिक को उसके व्यवसाय की परवाह किए बिना दिया जाना चाहिए.

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(फोटो: पीटीआई)

यौनकर्मियों को राशन मुहैया कराने को लेकर दिए गए निर्देश का पालन न करने पर कोर्ट ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा कि गरिमा का अधिकार एक मौलिक हक़ है जो देश के प्रत्येक नागरिक को उसके व्यवसाय की परवाह किए बिना दिया जाना चाहिए.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते मंगलवार को कहा कि मूल अधिकार प्रत्येक नागरिक को प्रदत्त है, चाहे उसका पेशा कुछ भी हो. इसके साथ ही न्यायालय ने केंद्र, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यौनकर्मियों (सेक्स वर्कर्स) को मतदाता पहचान पत्र, आधार और राशन कार्ड जारी करने की प्रक्रिया फौरन शुरू करने तथा उन्हें राशन मुहैया करना जारी रखने का निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत ने गैर सरकारी संगठन ‘दरबार महिला समन्वय समिति’ की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया. याचिका में कोविड-19 महामारी के चलते यौनकर्मियों को पेश आ रही समस्याओं को उठाया गया है.

न्यायालय उनके कल्याण के लिए आदेश जारी करता रहा है और पिछले साल 29 सितंबर को केंद्र तथा अन्य को उनसे (यौनकर्मियों से) पहचान सबूत मांगे बगैर उन्हें राशन मुहैया करने का निर्देश दिया था.

जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इसे लेकर नाखुशी प्रकट की कि यौनकर्मियों को राशन मुहैया करने का निर्देश 2011 में जारी किया गया था, लेकिन उसे लागू किया जाना बाकी है.

पीठ ने कहा, ‘राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को करीब एक दशक पहले राशन कार्ड एवं पहचान पत्र जारी करने का निर्देश दिया गया था तथा इसके लिए कोई कारण नहीं है कि अब तक वे निर्देश क्यों नहीं लागू किए गए.’

न्यायालय ने कहा, ‘देश के प्रत्येक नागरिक को मूल अधिकार प्रदत्त है चाहे उसका पेशा कुछ भी हो. सरकार देश के नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं देने के लिए कर्तव्यबद्ध है. केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और अन्य प्राधिकारों को राशन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और आधार कार्ड जारी करने की प्रक्रिया तत्काल शुरू करने का निर्देश दिया जाता है.’

पीठ ने निर्देश दिया कि प्राधिकार नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन (नाको) और राज्य एड्स कंट्रोल सोसाइटी की भी सहायता ले सकता है, जो समुदाय आधारित संगठनों द्वारा मुहैया की गई सूचना का सत्यापन कर यौनकर्मियों की सूची तैयार कर सकते हैं.

कोर्ट ने कहा, ‘गरिमा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है जो इस देश के प्रत्येक नागरिक को उसकी/उसके व्यवसाय की परवाह किए बिना दिया जाना चाहिए. इस देश के नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है. राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य प्राधिकरणों को नाको द्वारा तैयार की गई सूची से यौनकर्मियों को तुरंत राशन कार्ड/मतदाता पहचान पत्र जारी करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया जाता है.’

वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण, जो अदालत के न्यायमित्र हैं और अधिवक्ता पीयूष कांति रॉय इस मामले में उनका सहयोग कर रहे हैं, ने राज्य सरकारों द्वारा दायर कुछ हलफनामों का उल्लेख किया और कहा कि शीर्ष अदालत के निर्देशों को लागू नहीं किया जा रहा है.

पीठ ने आगे कहा, ‘यौनकर्मियों को राशन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और आधार कार्ड जारी करने के बारे में स्थिति रिपोर्ट आज से चार हफ्ते के अंदर दाखिल की जाए तथा इस बीच राज्य सरकारें और केद्र शासित प्रदेशों को पूर्व के आदेश में किए गए उल्लेख के अनुरूप राशन कार्ड या अन्य पहचान पत्र मांगे बगैर यौनकर्मियों को राशन वितरण जारी रखने का निर्देश दिया जाता है.’

पीठ ने कहा कि आदेश की प्रति राज्य और जिला विधिक सेवाएं प्राधिकारों को आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी जाए. साथ ही, सरकार को विभिन्न आईडी कार्ड बनाते समय यौनकर्मियों के नाम और उनकी पहचान गोपनीय रखने का भी निर्देश दिया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)