उत्तराखंड: विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस में घमासान क्यों मचा है

पिछले कुछ दिनों के भीतर उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाज़ी खुलकर सामने आ गई है. प्रदेश में पार्टी के सबसे कद्दावर नेता हरीश रावत ने 'संगठन का सहयोग न मिलने' की तंज़ भरे लहज़े में शिकायत की और राजनीति से 'विश्राम' का शिगूफ़ा छोड़ दिया, जिसके बाद पार्टी आलाकमान ने उन्हें दिल्ली बुलाया.

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दिसंबर 2021 में उत्तराखंड कांग्रेस में मची खींचतान के बाद दिल्ली में राहुल गांधी से मिलकर लौटते हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस के अन्य नेता. (फोटो: पीटीआई)

पिछले कुछ दिनों के भीतर उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाज़ी खुलकर सामने आ गई है. प्रदेश में पार्टी के सबसे कद्दावर नेता हरीश रावत ने ‘संगठन का सहयोग न मिलने’ की तंज़ भरे लहज़े में शिकायत की और राजनीति से ‘विश्राम’ का शिगूफ़ा छोड़ दिया, जिसके बाद पार्टी आलाकमान ने उन्हें दिल्ली बुलाया.

शुक्रवार को दिल्ली में राहुल गांधी से मिलकर लौटते हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस के अन्य नेता. (फोटो: पीटीआई)

देहरादून: गत 16 दिसंबर को देहरादून में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की रैली हुई तो वह भीड़ और लोगों के उत्साह के मामले में उसी मैदान पर हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली से इक्कीस साबित हुई. विधानसभा चुनाव से पहले उत्तराखंड में कांग्रेस के चुनाव अभियान की यह बड़ी कामयाबी थी.

लेकिन कुछ ही दिनों के भीतर उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी खुलकर सामने आ गई है. प्रदेश में पार्टी के सबसे कद्दावर नेता हरीश रावत ने ‘संगठन का सहयोग न मिलने’ की तंज भरे लहजे में शिकायत करते हुए ट्वीट किया और राजनीति से ‘विश्राम’ का शिगूफा छोड़ दिया.

डैमेज कंट्रोल के लिए पार्टी हाईकमान ने आनन-फानन में हरीश रावत समेत उत्तराखंड कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को दिल्ली बुलाया. राहुल गांधी से मुलाकात के बाद हरीश रावत ने कहा कि वे कैंपेन कमेटी के अध्यक्ष के तौर चुनाव को लीड करेंगे जिसमें सब लोग सहयोग करेंगे. मुख्यमंत्री के चेहरे का फैसला चुनाव के बाद लिया जाएगा.

जब वे मीडिया को यह बता रहे तब एआईसीसी के उत्तराखंड प्रभारी देवेंद्र यादव और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह भी उनके साथ थे. तो क्या राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद उत्तराखंड कांग्रेस में सब ठीक हो गया है? उससे भी बड़ा सवाल है कि आखिर उत्तराखंड कांग्रेस में हुआ क्या है?

उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, मौजूदा मंत्री हरक सिंह रावत और सतपाल महाराज जैसे दिग्गजों के भाजपा में जाने और इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद कांग्रेस में फिलहाल दो प्रमुख सत्ता केंद्र हैं. एक तरफ हैं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, जो पिछली बार दो जगह से विधानसभा लड़कर भी हार गए थे. फिर भी वे उत्तराखंड में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं.

दूसरी तरफ हैं नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह, जो गत जुलाई तक प्रदेश अध्यक्ष थे लेकिन उस भूमिका में कोई खास छाप नहीं छोड़ पाए तो कांग्रेस ने उनकी जगह हरीश रावत के करीबी गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया.

पार्टी ने प्रीतम सिंह को नेता प्रतिपक्ष और हरीश रावत को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर संतुलन साधने की कोशिश की, लेकिन हरीश रावत के धुर विरोधी रंजीत रावत समेत चार कार्यकारी अध्यक्षों और एनडी तिवारी के पीए रहे आर्येन्द्र शर्मा को कोषाध्यक्ष बनाना प्रीतम सिंह गुट की कामयाबी के तौर पर देखा गया.

हरीश रावत विरोधी और प्रीतम सिंह के खास माने जाने वाले नेताओं को संगठन में अहम पद दिलवाने के पीछे एआइसीसी के उत्तराखंड प्रभारी देवेंद्र यादव की अहम भूमिका मानी जाती है. इस तरह उत्तराखंड कांग्रेस की गुटबाजी फिलहाल हरीश रावत और प्रीतम सिंह-देवेंद्र यादव के खेमों में बंटी है.

इस विवाद के एक अहम किरदार आर्येन्द्र शर्मा हैं जिन्होंने 2017 में प्रदेश अध्यक्ष रहे किशोर उपाध्याय को हराने में अहम भूमिका निभाई थी. तब टिकट कटने के बाद उन्होंने कांग्रेस भवन में काफी उपद्रव मचवाया था. कार्यकारी अध्यक्ष बनाये गए रंजीत रावत हरीश रावत के खिलाफ काफी हमलावर रहे हैं और इस साल हुए सल्ट विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की हार की एक वजह वे भी थे.

हरीश रावत के खिलाफ प्रीतम गुट के ऐसे नेताओं को प्रमोट करवाना देवेंद्र यादव की बड़ी भूल थी जिसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ रहा है. जब ये नियुक्तियां हुईं तभी से माना जा रहा था कि हरीश रावत देर-सबेर देवेंद्र यादव के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे और वही हुआ.

इसमें कोई दोराय नहीं है कि देवेंद्र यादव को जब से उत्तराखंड की जिम्मेदारी मिली है, वे जमीनी स्तर पर काफी सक्रिय हैं और पार्टी संगठन को मजबूत करने में जुटे हैं. उन पर उत्तराखंड में पार्टी को एकजुट करने की जिम्मेदारी है लेकिन वे अपनी भूमिका से एक कदम आगे जाकर खुद ही सत्ता और गुटबाजी के केंद्र बन गए हैं.

इस बीच प्रीतम सिंह नेता प्रतिपक्ष की अपनी नई भूमिका में खरा उतरने की कोशिश कर रहे हैं और मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं. वे देवेंद्र यादव का भरोसा जितने में भी कामयाब होते दिख रहे हैं. देवेंद्र यादव और प्रीतम सिंह पार्टी लाइन के मुताबिक सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने पर जोर दे रहे हैं.

देवेंद्र-प्रीतम की यह जोड़ी ही हरीश रावत को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने में सबसे बड़ी बाधा है जबकि हरीश रावत पार्टी हाईकमान पर दबाव बनाकर खुद को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश करवाना चाहते हैं. इस खींचतान में उत्तराखंड जीतने की कांग्रेस की कोशिशों को झटका लगा है. पार्टी की गुटबाजी सड़कों पर आ गई है.

जिस समय कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं को भाजपा को घेरने चाहिए था वे हरीश रावत और देवेंद्र-प्रीतम गुटों में बंटकर एक-दूसरे पर हमलावर हैं.

देवेंद्र यादव की अगुवाई में दिल्ली व दूसरे राज्यों के नेताओं की एक बड़ी टीम उत्तराखंड में सक्रिय हैं. कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि उत्तराखंड में पार्टी संगठन पर देवेंद्र यादव की टीम के बढ़ते दबदबे के कारण स्थानीय नेता खासकर हरीश रावत समर्थक उपेक्षित महसूस कर रहे हैं.

यादव की टीम के लोग राहुल गांधी के नाम पर स्थानीय नेताओं को दबाव में लेने की कोशिश करते हैं. राहुल गांधी की देहरादून रैली में देवेंद्र यादव की टीम ने हरीश रावत समर्थकों को मंच पर नहीं चढ़ने दिया. ऐसी परिस्थितियों में प्रदेश अध्यक्ष गोदियाल और हरीश रावत के लिए काम करना मुश्किल हो गया है. इसी को लेकर हरीश रावत ने ट्वीट के जरिये अपनी नाराजगी जाहिर की है. लेकिन रावत हार मानने वालों में से नहीं हैं. इसलिए पार्टी छोड़ने की बजाय वे विरोधियों को झटके देते रहेंगे.

उत्तराखंड कांग्रेस के हालिया विवाद को भाजपा नेता और वन मंत्री हरक सिंह रावत के साथ-साथ पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की देवेंद्र यादव व प्रीतम सिंह के जरिये कांग्रेस में घर वापसी की संभावित कोशिशों से भी जोड़कर देखा जा रहा है.

इससे पहले भाजपा सरकार में परिवहन मंत्री रहे यशपाल आर्य भी हरीश रावत को बाईपास कर देवेंद्र यादव व प्रीतम सिंह के जरिये कांग्रेस में वापसी कर चुके हैं. हरीश रावत कतई नहीं चाहेंगे कि पार्टी में हरक सिंह रावत और विजय बहुगुणा की वापसी हो और मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की तादाद बढ़े.

कांग्रेस की मजबूरी यह है कि उसके पास हरीश रावत के कद का उत्तराखंड में कोई नेता नहीं है लेकिन पार्टी उन्हें न तो मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करना चाहती है और न ही संगठन और टिकट बंटवारे में फ्री हैंड देने को तैयार है.

इस बीच, हरीश रावत के कैप्टन अमरिंदर सिंह की राह पर चलने के कयास भी लगाए जा रहे हैं, पर इसकी उम्मीद कम है. फिलहाल हरीश रावत देवेंद्र यादव के बढ़ते दबदबे पर अंकुश लगाने में कामयाब होते दिख रहे हैं. पार्टी हाईकमान ने उन्हें तुरंत दिल्ली बुलाकर उत्तराखंड को लीड करने को कहा है.

हालांकि चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष के तौर पर यह जिम्मेदारी उन्हें पहले से ही मिली हुई थी. अब या तो देवेंद्र यादव बैकफुट पर आएंगे या फिर पार्टी में गुटबाजी बढ़ती जाएगी. उत्तराखंड में कांग्रेस की असली परीक्षा टिकट बंटवारे के दौरान होगी.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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