छत्तीसगढ़: बेचापाल में महीने भर से क्यों आंदोलनरत हैं हज़ारों ग्रामीण

बीजापुर ज़िले के धुर नक्सल प्रभावित बेचापाल में 30 नवंबर से ग्रामीण पुलिस कैंप के विरोध में धरने पर बैठे हैं. उनका कहना है कि उन्हें स्कूल, अस्पताल तो चाहिए लेकिन कैंप और पक्की सड़क नहीं. उनका दावा है कि यदि रोड बनती है तो फोर्स गांवों में घुसेगी, लोगों को परेशान किया जाएगा. झूठे नक्सल प्रकरण में जेल में डाला जाएगा.

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बेचापाल में आंदोलनरत ग्रामीण. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

बीजापुर ज़िले के धुर नक्सल प्रभावित बेचापाल में 30 नवंबर से ग्रामीण पुलिस कैंप के विरोध में धरने पर बैठे हैं. उनका कहना है कि उन्हें स्कूल, अस्पताल तो चाहिए लेकिन कैंप और पक्की सड़क नहीं. उनका दावा है कि यदि रोड बनती है तो फोर्स गांवों में घुसेगी, लोगों को परेशान किया जाएगा. झूठे नक्सल प्रकरण में जेल में डाला जाएगा.

बेचापाल में आंदोलनरत ग्रामीण. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

बस्तर: छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के धुर नक्सल प्रभावित इलाके बेचापाल में पिछले 28 दिनों से हजारों ग्रामीण पुलिस कैंप के विरोध में बैठे हुए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में पुलिस कैंप खुलता है तो उनकी मुश्किलें और बढ़ जाएंगी.

पुलिस कैंप के साथ बेचापाल समेत कई गांवों को ब्लॉक और जिला मुख्यालय से जोड़ने पक्की सड़क बन रही है जिसका विरोध भी ग्रामीण कर रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि जब तक कैंप हटाने की मांग पूरी नहीं होती है वे आंदोलनरत रहेंगे.

30 नंवबर  बेचापला, मिरतुर, फुलगट्टा, तिमेनार समेत अन्य गांव के सैकड़ों ग्रामीण आंदोलन पर उतर आए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें अपने गांव में स्कूल, अस्पताल चाहिए लेकिन पुलिस कैंप और पक्की सड़क नहीं.

उनका दावा है कि यदि सड़क बनती है तो फोर्स गांवों में घुसेगी. यहां के लोगों को परेशान किया जाएगा. झूठे नक्सल प्रकरण में जेल में डाला जाएगा. गांव अभी शांत है, कैंप खुलने से गांव का वातावरण खराब हो जाएगा. ग्रामीणों ने जवानों पर करंट लगाकर मारने का आरोप भी लगाया है.

बेचापाल में आंदोलनरत सुखारु राम ओरसा कहते हैं, ‘हमारे यहां रोड आ रहा है, जिससे ग्रामीणों के पेड़- पौधे, पशु का नुकसान हो रहा है, इसीलिए हमें रोड नही चाहिए. हाइवे रोड आएगा तो हमारे खेतों का नुकसान हो रहा है, हमारे पट्टे की जमीनों का नुकसान होता है.’

पुलिस कैंप को लेकर सुखारु का कहना है, ‘पढ़ने वाले बच्चों को लेकर परेशानी है. वे आरोप लगाते हैं. लाठीचार्ज किया जाता है, कैंप वाले परेशान करते है इसीलिए कैंप का विरोध कर रहे है.’

आंदोलन में शामिल एक अन्य ग्रामीण पंकज कडती बताते हैं, ‘जिले भर से हम ग्रामीण  लोग इकट्ठा हुए हैं. आदिवासी परंपरा के अनुसार हम लोग भाला या लोहे के औजार रखे रहते हैं, लेकिन कैंप वाले हमें नक्सली बताकर गिरफ्तार कर लेते हैं, मारते हैं, इसीलिए हम कैंप का विरोध कर रहे हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इस क्षेत्र में रोड-पुलिया बनने से पहले ग्राम सभा होना चाहिए, ग्राम सभा के निर्णय के बाद ही सरकार को पुल -पुलिया बनाना चाहिए। हमसे पूछे बिना ही सरकार निर्माण कार्य करवाती है. हमने प्रशासन के माध्यम से सरकार को कई बार अवगत कराया है, कई बार ज्ञापन भी दिए है लेकिन सरकार हमारी ओर ध्यान नहीं दे रही है. जब तक हमारी मांग पूरी नहीं होगी हम आंदोलन करते रहेंगे.’

आंदोलन में शामिल ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि शासन-प्रशासन जबरन ग्रामीणों की निजी जमीन हथियाकर सड़क निर्माण करवा रहे हैं. साथ ही इस निर्माण कार्य के लिए हजारों पेड़ काट दिए गए है. फोर्स उनके क्षेत्र में बलपूर्वक पुलिस कैंप खोल रही है और स्थानीय युवाओं को प्रताड़ित कर रही है. छात्राओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है इसलिए अब ये ग्रामीण इंसाफ के लिए आंदोलन के लिए उतर आए हैं.

आंदोलनरत ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस फर्जी मुठभेड़ बंद करें. उनके क्षेत्र में पुलिस कैंप न खोला जाए. फर्जी मुठभेड़ में मारे गए लोगों को 1-1 करोड़ रुपये और घायलों को 50 -50 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए.

इसके साथ ही निर्माण के दौरान काटे गए सभी पेड़ो के लिए भी सरकार ग्रामीणों को मुआवजा दें. ग्रामीणों ने कहा कि जब तक ये सारी मांगें पूरी नहीं होती है तब तक आंदोलन जारी रहेगा.

जब इस आंदोलन के बारे में विधायक विक्रम मंडावी से सवाल किया गया तब उन्होंने कहा, ‘मैं लगातार ग्रामीणों से संवाद कर रहा हूं. मैंने मुख्यमंत्री जी को भी इससे अवगत कराया है. ग्रामीणों से चर्चा की जा रही है, उनकी मांगों का निदान कैसे होगा इस पर विचार किया जा रहा है.’

उधर, बीजापुर के एएसपी पंकज शुक्ला का कहना है कि ग्रामीणों को मजबूरी में आंदोलन करने के लिए भेजा गया है.

उन्होंने कहा, ‘हम भी इस बात को समझते हैं. ग्रामीणों को भी मालूम है कि सरकार के द्वारा जो कार्य किए जा रहे हैं वह उनके हित में है. कैंप और सड़क बनने से नक्सलियों को नुकसान है. उनका आधार खिसकता जा रहा है. नक्सलवाद समाप्ति की ओर है. अपने अंतिम समय में वे प्रयास कर रहे हैं कि किसी तरह अपनी जड़ को भी बचाकर रखें.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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