लड़कियों को यौन उत्पीड़न से बचने के लिए ख़ुद रेखा खींचनी चाहिए: जेएनयू सर्कुलर

जेएनयू की आंतरिक शिकायत समिति ने यौन उत्पीड़न पर काउंसिलिंग सत्र के आयोजन पर एक सर्कुलर जारी किया है, जिसमें कहा गया कि यौन उत्पीड़न से बचने के लिए महिलाओं को जानना चाहिए कि पुरुष दोस्तों के साथ कैसे दायरा बनाना है. छात्राओं के साथ राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इसे महिला-विरोधी बताते हुए वापस लेने की मांग की है.

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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय. (फाइल फोटो: पीटीआई)

जेएनयू की आंतरिक शिकायत समिति ने यौन उत्पीड़न पर काउंसिलिंग सत्र के आयोजन पर एक सर्कुलर जारी किया है, जिसमें कहा गया कि यौन उत्पीड़न से बचने के लिए महिलाओं को जानना चाहिए कि पुरुष दोस्तों के साथ कैसे दायरा बनाना है. छात्राओं के साथ राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इसे महिला-विरोधी बताते हुए वापस लेने की मांग की है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति ने एक सर्कुलर जारी किया है, जो विवादों में है.

रिपोर्ट के अनुसार, इस सर्कुलर में कहा गया है कि यौन उत्पीड़न के मामले में महिलाओं को खुद ही अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी.

आईसीसी ने जेएनयू की वेबसाइट पर इस सर्कुलर को अपलोड करते हुए कहा कि वह 17 जनवरी को यौन उत्पीड़न पर काउंसिलिंग सत्र का आयोजन करेगा और इस तरह के सत्र मासिक आधार पर किए जाएंगे.

सर्कुलर में उपशीर्षक ‘काउंसिलिंग सत्र की जरूरत क्यों है?’ के तहत कहा गया कि इसके जरिये छात्रों को जागरूक किया जाएगा कि यौन उत्पीड़न के बारे में जागरूक किया जाएगा.

इसमें कहा गया कि महिलाओं को यह पता होना चाहिए किए इस तरह के उत्पीड़न से बचने के लिए उन्हें अपने पुरुष दोस्तों के बीच वास्तविक रेखा कैसे खींचनी है?

सर्कुलर में कहा गया, ‘आईसीसी के समक्ष ऐसे कई मामले आए हैं, जहां करीबी दोस्तों के बीच यौन उत्पीड़न हुआ है. लड़के आमतौर पर (जाने-अनजाने) दोस्ती और यौन उत्पीड़न के बीच की महीन रेखा को लांघ देते हैं. लड़कियों को पता होना चाहिए कि इस तरह के उत्पीड़न की स्थिति से बचने के लिए उन्हें और उनके पुरुष दोस्तों के बीच असल दायरा कैसे बनाना है.’

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ की अध्यक्ष ओइशी घोष ने जारी बयान में कहा कि यह सर्कुलर एक तरीके से पीड़ितों पर ही दोष मढ़ने जैसा प्रतीत होता है.

उन्होंने बयान में कहा, ‘जेएनयू में आईसीसी ने पीड़िता पर ही दोष मढ़ देने वाला बयान दिया है, जिसमें महिलाओं से एक महीन रेखा खींचने को कहा गया है कि किस तरह से पुरुष साथियों से उत्पीड़ित नहीं हो. जेएनयू में आईसीसी ने बार-बार इस तरह की प्रतिगामी टिप्पणी की है.’

घोष ने कहा, ‘इस तरह की टिप्पणी एक ऐसी जगह तैयार करती है, जो महिलाओं के लिए असुरक्षित होगी.’

आईसीसी की पीठासीन अधिकारी पूनम कुमारी ने भी सर्कुलर से सहमति रखने वाले विचार रखते हुए कहा कि आईसीसी को ऐसी कई शिकायतें मिली हैं, जिसमें करीबी दोस्तों द्वारा ही यौन उत्पीड़न किया गया.

कुमारी ने महिलाओं को ही जिम्मेदार बताते हुए कहा, ‘वे एक-दूसरे को छूते हैं, एक-दूसरे को गले लगाते हैं लेकिन जब महिलाओं को लगता है कि वे इसे लेकर सहज महसूस नहीं करती तो उन्हें यह बात स्पष्ट रूप से अपने पुरुष मित्र को बतानी चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘यह जानना लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए महत्वपूर्ण है कि कहां रेखा खींचनी है… लड़कियों को भी मामला हाथ से निकल जाने से पहले यह कहने की जरूरत है कि उन्हें इसे तरह छुआ जाना या गले लगना पसंद नहीं है. इस तरह की चीजों को स्पष्ट रूप से बताना जरूरी है वरना उस शख्स को कैसे पता चलेगा. ये छोटी-छोटी चीजें हैं जो हमें उन्हें आईसीसी के नियमों के साथ-साथ बताए जाने की जरूरत है.’

इस ताजा सर्कुलर में कहा गया है कि इस तरह के सत्र का आयोजन सभी इच्छुक छात्रों के लिए मासिक आधार पर किया जाएगा. जो दरअसल यौन उत्पीड़न के संबंध में डूज़ और डोंट्स (क्या करें/क्या न करें) जानना चाहते हैं.

इन सत्रों के लाभ को सूचीबद्ध करते हुए विश्वविद्यालय ने कहा कि ‘इससे यौन उत्पीड़न के मामलों में यकीनन कमी आएगी.’ सर्कुलर में कहा गया, ‘यौन उत्पीड़न से संबंधित किसी भी भ्रम को दूर करिए। किसी को भी यौन उत्पीड़न से जुड़े सवालों का जवाब मिल सकता है.’

वहीं, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) ने काउंसिलिंग सत्र को ढकोसला बताया.

छात्र संगठन ने कहा, ‘जेएनयू के आईसीसी ने यौन उत्पीड़न के संबंध में जेएनयू छात्रों के लिए काउंसिलिंग सत्र को लेकर एक नोटिस जारी किया. इस तरह के सत्र का आयोजन करने के कारणों में से एक को बताते हुए आईसीसी ने कहा कि लड़कियों को यह पता होना चाहिए कि इस तरह के उत्पीड़न से बचने के लिए उन्हें अपने पुरुष दोस्तों के बीच बारीक रेखा कैसे खींचनी है. यह पीड़िता को ही दोषी ठहराने के रुख को दर्शाता है. यह काउंसिलिंग सत्र एक ढकोसला है और इससे जेएनयू महिलाओं के लिए असुरक्षित स्थान ही बनेगा.’

बता दें कि जेएनयू प्रशासन ने सिंतबर 2017 में अपनी 269वीं कार्यकारी परिषद की बैठक में जेंडर सेंसिटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट (जीएसकैश) के बजाय आईसीसी का गठन किया था. इस कदम की महिला अधिकार संगठनों के अलावा छात्रों और शिक्षक निकायों ने भी आलोचना की थी.

राष्ट्रीय महिला आयोग ने जेएनयू से ‘महिला विरोधी’ सर्कुलर वापस लेने को कहा

उधर, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने इस सर्कुलर को ‘महिला विरोधी’  करार देते हुए विश्वविद्यालय से इसे वापस लेने को कहा है.

शर्मा ने ट्विटर पर इस सर्कुलर को साझा करते हुए उसे वापस लेने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा, ‘सारा उपदेश लड़कियों के लिए ही क्यों होता है? अब पीड़ितों की बजाय उत्पीड़न करने वालों को पाठ पढ़ाने का समय आ गया है. जेएनयू के महिला विरोधी सर्कुलर को वापस लिया जाना चाहिए. आंतरिक समिति का रुख पीड़िता केंद्रित होना चाहिए न कि इसके विपरीत.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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