मेधा पाटकर ने केरल सरकार की ‘के-रेल’ परियोजना की आलोचना की

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने केरल सरकार की महत्वाकांक्षी ‘के-रेल’ परियोजना की आलोचना करते हुए कहा कि इससे कृषि भूमि और आर्द्रभूमि नष्ट होने का ख़तरा है. इस परियोजना के पारिस्थितिक प्रभाव को मापने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया गया है. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के साथ ही केंद्र ने भी इसके लिए अभी तक अनुमति नहीं दी है.

Bhopal: Social activist Medha Patkar addresses a press conference to draw attention towards conservation of river Narmada and farmers’ issue during a Jan Adalat, in Bhopal on Monday, June 04, 2018. (PTI Photo) (PTI6_4_2018_000060B)
मेधा पाटकर. (फोटो: पीटीआई)

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने केरल सरकार की महत्वाकांक्षी ‘के-रेल’ परियोजना की आलोचना करते हुए कहा कि इससे कृषि भूमि और आर्द्रभूमि नष्ट होने का ख़तरा है. इस परियोजना के पारिस्थितिक प्रभाव को मापने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया गया है. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के साथ ही केंद्र ने भी इसके लिए अभी तक अनुमति नहीं दी है.

Bhopal: Social activist Medha Patkar addresses a press conference to draw attention towards conservation of river Narmada and farmers’ issue during a Jan Adalat, in Bhopal on Monday, June 04, 2018. (PTI Photo) (PTI6_4_2018_000060B)
मेधा पाटकर. (फोटो: पीटीआई)

कोच्चि: सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने रविवार को केरल में वाम सरकार की महत्वाकांक्षी ‘के-रेल’ परियोजना की आलोचना करते हुए कहा कि इससे कृषि भूमि और आर्द्रभूमि नष्ट होने का खतरा है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने राज्य सरकार से सेमी हाई-स्पीड रेलवे परियोजना (के-रेल) की समीक्षा करने का आग्रह किया, जिसका विभिन्न हलकों से कड़ा विरोध हो रहा है.

उन्होंने कहा कि सिल्वरलाइन परियोजना पारिस्थितिक आपदा का कारण बनेगी जैसा कि कोंकण रेलवे परियोजना के निर्माण के कारण महाराष्ट्र में देखा गया था, जिसने सावित्री नदी के प्राकृतिक प्रवाह को अवरुद्ध कर दिया था.

उन्होंने कहा, ‘इस परियोजना के पारिस्थितिक प्रभाव को मापने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया गया है. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण से कोई अनुमोदन प्राप्त नहीं हुआ है और यहां तक ​​कि केंद्र ने भी परियोजना के लिए अभी तक अनुमति नहीं दी है.’

पाटकर ने कहा, ‘मैं पिनाराई विजयन से हाथ जोड़कर अपील करती हूं कि वह परियोजना की समीक्षा कर सकते हैं और भारतीय रेलवे के निजीकरण के मुद्दे को उठाकर वर्तमान रेलवे प्रणाली में सुधार कर सकते हैं.’

पाटकर ने कहा कि देश पर शासन करने वाले प्राकृतिक संसाधनों के मूल्य को समझने में विफल रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमने ऑक्सीजन की कमी के कारण लाखों बहनों और भाइयों को खो दिया है और फिर भी हमारे देश के शासक लोगों के जीवन और आजीविका के लिए प्राकृतिक संसाधनों के मूल्य को समझने में विफल हैं. इसलिए जहां भी सवाल उठें, हमें आत्मविश्वास और साहस के साथ खड़ा होना होगा. इसमें के-रेल परियोजना भी शामिल है.’

उन्होंने कहा कि केरल में भी बाढ़ आएगी, ठीक उसी तरह जैसे कोंकण रेलवे लाइन के निर्माण के बाद महाराष्ट्र के कई जिलों में आई थी.

कार्यकर्ता ने कहा, ‘इस खूबसूरत और समृद्ध राज्य ने बाढ़ का सामना किया है और केरल एक ऐसा स्थान था, जिसके बारे में हमने कभी नहीं सोचा था कि यह बाढ़ की चपेट में होगा. लेकिन, यह निश्चित है कि केरल को अब विकास परियोजनाओं से संबंधित हर एक निर्णय को देखना होगा अन्यथा यह बाढ़ प्रभावित होने के साथ विनाश प्रभावित भी हो जाएगा.’

एर्नाकुलम प्रेस क्लब में ‘मीट द प्रेस’ कार्यक्रम में पाटकर ने कहा कि राज्य सरकार को के-रेल जैसी बड़ी परियोजनाओं से पहले एंडोसल्फान पीड़ितों और उनके परिजनों को मुआवजा देना सुनिश्चित करना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘तीन दशक से परेशानी झेल रहे एंडोसल्फान के पीड़ितों और उनके परिजनों को इंसाफ देने में देर नहीं होनी चाहिए. 6,700 से ज्यादा पीड़ितों में से आधे से अधिक को अब तक किसी तरह का मुआवजा नहीं मिला है.’

पाटकर ने कहा कि प्रभावित लोगों के पुनर्वास से पहले किसी भी प्रकार की विकास परियोजना पर विचार नहीं किया जाना चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)