यौनकर्मियों की पहचान का आधार नाको की ओर से मुहैया सूची तक सीमित नहीं रहे: सुप्रीम कोर्ट

29 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने राज्यों को पहचान के सबूत के बिना ही यौनकर्मियों को राशन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था. अब कोर्ट ने समुदाय आधारित संगठनों से अपने क्षेत्रों में यौनकर्मियों की एक सूची तैयार कर उसे संबंधित ज़िला क़ानूनी सेवा प्राधिकरण या नाको द्वारा सत्यापित करने का निर्देश दिया है. अदालत ने यह भी कहा कि ऐसा करते हुए राज्य के अधिकारी मामले में गोपनीयता बनाए रखें.

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(फोटो: पीटीआई)

29 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने राज्यों को पहचान के सबूत के बिना ही यौनकर्मियों को राशन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था. अब कोर्ट ने समुदाय आधारित संगठनों से अपने क्षेत्रों में यौनकर्मियों की एक सूची तैयार कर उसे संबंधित ज़िला क़ानूनी सेवा प्राधिकरण या नाको द्वारा सत्यापित करने का निर्देश दिया है. अदालत ने यह भी कहा कि ऐसा करते हुए राज्य के अधिकारी मामले में गोपनीयता बनाए रखें.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने यह उल्लेखित करते हुए कि बड़ी संख्या में यौनकर्मियों को राशन कार्ड जारी नहीं किया जाता है, सोमवार को कहा कि उनकी पहचान का आधार राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) द्वारा प्रदान की गई सूची तक सीमित नहीं रहना चाहिए.

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने समुदाय आधारित संगठनों से अपने क्षेत्रों में यौनकर्मियों की एक सूची तैयार करने को कहा, जिसे संबंधित जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण या राज्य एड्स नियंत्रण समिति द्वारा सत्यापित किया जाएगा.

शीर्ष अदालत ने कहा कि सत्यापन होने पर सूची सक्षम प्राधिकारी को भेजी जाएगी. शीर्ष अदालत ने राज्य के अधिकारियों को ऐसे करते हुए मामले में गोपनीयता बनाए रखने का निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यौनकर्मियों को मतदाता कार्ड या राशन कार्ड जारी करने की प्रक्रिया को पूरा करने का भी निर्देश दिया.

पीठ ने कहा, ‘राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को राशन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र जारी करने की प्रक्रिया को पूरा करने और आज से दो सप्ताह के भीतर इस अदालत को रिपोर्ट करने का निर्देश दिया जाता है. यौनकर्मियों की पहचान के आधार को नाको द्वारा प्रदान की गई सूची तक सीमित करने की आवश्यकता नहीं है. समुदाय आधारित संगठन यौनकर्मियों की एक सूची प्रस्तुत करेंगे, जिसे संबंधित जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण या राज्य एड्स नियंत्रण समिति द्वारा सत्यापित किया जाएगा.’

जिन राज्यों ने स्थिति रिपोर्ट दाखिल नहीं की है, उनके वकील ने सुनवाई के दौरान कहा कि मतदाता पहचान पत्र या राशन कार्ड जारी करने की प्रक्रिया चल रही है और इस अदालत द्वारा जारी निर्देश को लागू किया जा रहा है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली में सरकार द्वारा एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की गई है और 86 केंद्रों पर निवास प्रमाणपत्र पर जोर दिए बिना राशन वितरित किया जा रहा है.

पीठ ने कहा कि जहां तक ​​चंडीगढ़ का संबंध है, उन यौनकर्मियों के खातों में पैसा भेजा जा रहा है जिनकी पहचान की गई है.

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि बड़ी संख्या में यौनकर्मियों को नाको के पास उपलब्ध सूचियों से बाहर रखा गया है क्योंकि उनकी योजना के अनुसार समुदाय में न्यूनतम 1,000 यौनकर्मी होने चाहिए जिसके आधार पर नाको द्वारा तैयार सूची में समावेशन किया जाता है.

उन्होंने कहा कि यदि किसी समुदाय में एक हजार से कम यौनकर्मी हैं तो ऐसे समुदाय के सदस्यों का नाम सूची में नहीं है, जिससे उन्हें राशन कार्ड या राशन जारी नहीं किया गया है.

ग्रोवर ने यह भी कहा कि इस अदालत द्वारा पारित आदेश के बावजूद राज्य सरकार द्वारा यौनकर्मियों को केवल बीच-बीच में राशन उपलब्ध कराया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि सभी यौनकर्मियों को राशन कार्ड के माध्यम से राशन का पात्र बनाया जाए.

इस मामले में न्याय मित्र नियुक्त किए गए वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण ने कहा कि राज्यों को किसी भी कारण से यौनकर्मियों को राशन वितरण करना बंद नहीं किया जाना चाहिए.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, भूषण ने कहा कि इस अदालत ने स्पष्ट किया है कि यौनकर्मियों की सूची तैयार करने के लिए समुदाय आधारित संगठनों द्वारा दी गई जानकारी को ध्यान में रखा जाएगा.

भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के वकील ने कहा कि नाको द्वारा तैयार की गई सूची के आधार पर जिन यौनकर्मियों को आधार कार्ड दिए जा सकते हैं, उन्हें निवास का प्रमाण प्रस्तुत करने में छूट के संबंध में न्याय मित्र के सुझाव पर वह निर्देश लेंगे.

मामले की सुनवाई अब चार हफ्ते बाद होगी.

शीर्ष अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें कोविड -19 महामारी के कारण यौनकर्मियों की समस्याओं को उठाया गया है.

याचिका में कोविड -19 के कारण यौनकर्मियों की बदहाली को उजागर किया गया है और पूरे भारत में नौ लाख से अधिक महिला और ट्रांसजेंडर यौनकर्मियों के लिए राहत उपायों की मांग की गई है.

याचिका में कहा गया है कि यौनकर्मियों को भी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीने का अधिकार है और उनकी समस्याओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है.

याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी की वजह से यौनकर्मी सामाजिक लांछन के कारण अलग-थलग हैं और ऐसी स्थिति में उन्हें सहयोग की आवश्यकता है.

पिछले साल 29 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि वे राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन और विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा चिह्नित यौनकर्मियों को पहचान का सबूत पेश करने के लिए बाध्य किए बगैर ही सूखा राशन (दाल, आटा, चावल, चीनी और मिल्क पाउडर इत्यादि) उपलब्ध कराएं.

पीठ ने निर्देश दिया था कि प्राधिकरण राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) और राज्य एड्स नियंत्रण समितियों की सहायता ले सकते हैं, जो बदले में समुदाय आधारित संगठनों द्वारा उन्हें प्रदान की गई जानकारी का सत्यापन करने के बाद यौनकर्मियों की एक सूची तैयार करेंगे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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