उत्तराखंड: 2007 माओवादी केस से बरी किए गए कार्यकर्ता प्रशांत राही

दिसंबर 2007 में उत्तराखंड पुलिस ने 'नक्सलवाद पर कड़ी चोट' का दावा करते हुए कार्यकर्ता प्रशांत राही को माओवादी बताते हुए गिरफ़्तार किया था. चौदह साल बाद इस दावे को साबित न कर पाने पर अदालत ने राही और तीन अन्य को बरी कर दिया.

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प्रशांत राही. (साभार: स्क्रीनग्रैब/यूट्यूब)

दिसंबर 2007 में उत्तराखंड पुलिस ने ‘नक्सलवाद पर कड़ी चोट’ का दावा करते हुए कार्यकर्ता प्रशांत राही को माओवादी बताते हुए गिरफ़्तार किया था. चौदह साल बाद इस दावे को साबित न कर पाने पर अदालत ने राही और तीन अन्य को बरी कर दिया.

प्रशांत राही. (साभार: स्क्रीनग्रैब/यूट्यूब)

नई दिल्ली: साल 2007 में उत्तराखंड पुलिस द्वारा माओवादी होने का आरोप लगाए जाने के चौदह साल बाद सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत राही और तीन अन्य को बरी कर दिया गया.

रेडिफ की रिपोर्ट के अनुसार, राही को दिसंबर 2007 में गिरफ्तार किया गया था और उन पर राजद्रोह और यूएपीए के तहत गंभीर आरोप लगाए गए थे.

पिछले हफ्ते उधम सिंह नगर के सत्र न्यायाधीश प्रेम सिंह खीमल ने यह फैसला सुनाया.

रेडिफ के अनुसार, राही की गिरफ्तारी को उत्तराखंड पुलिस ने ‘नक्सलवाद के खिलाफ एक बड़ी चोट’ के रूप में प्रस्तुत किया था, हालांकि पुलिस अदालत में कोई सबूत पेश नहीं कर सकी, इसलिए केस साबित नहीं हो सका.

अभियोजन पक्ष ने तीन स्वतंत्र गवाहों को अदालत में पेश किया, जिनमें से एक मुकर गया और अन्य दो की जिरह में ‘गंभीर विसंगतियां और विरोधाभास सामने आए.’

रेडिफ की खबर के अनुसार, यहां तक ​​कि पुलिसकर्मियों ने भी अपने बयानों में एक-दूसरे की बात का खंडन किया, साथ ही यह भी सामने आया कि कुछ प्रक्रियात्मक जरूरतों को भी पूरा नहीं किया गया था.

राही की बेटी शिखा ने रेडिफ को बताया कि वह फैसले से बहुत खुश हैं. उन्होंने यह भी बताया कि उसके पिता एक स्ट्रेचर पर थे क्योंकि वह साइटिका के मरीज हैं और उन्हें अस्पताल नहीं ले जाया गया.

उत्तराखंड मामले में बरी होने के बावजूद राही महाराष्ट्र की जेल में रहेंगे, जहां उन्हें गढ़चिरौली में दर्ज एक अलग मामले में माओवादी होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था.

साल 2011 में राही को जमानत पर रिहा किया गया था, लेकिन 2013 में महाराष्ट्र पुलिस ने उन्हें फिर से माओवादी होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

2017 में राही और दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में पढ़ाने वाले प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को इस मामले में दोषी ठहराया गया था. इस फैसले के खिलाफ अंतिम अपील लंबित है.

जहां उत्तराखंड पुलिस का दावा था कि राही को उधम सिंह नगर के जंगलों से गिरफ्तार किया गया था, जहां वे विशेष रूप से ‘कैंप लगाने वाले’  ‘माओवादियों को पकड़ने’ के लिए गई थी. उनका दावा था कि चार कथित माओवादी भाग गए और केवल राही को ही पकड़ा जा सका.

हालांकि राही का कहना है कि उन्हें 17 दिसंबर, 2007 को देहरादून के पास सादे कपड़ों में आए पुलिसकर्मियों द्वारा गिरफ्तार किया गया था और उनकी गिरफ्तारी पांच दिन बाद की दिखाई गई. राही ने इस अवधि के दौरान उन्हें बेरहमी से प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया था.

2013 में गिरफ्तार होने पर भी राही ने महाराष्ट्र पुलिस के खिलाफ इसी तरह के आरोप लगाए थे. जहां पुलिस ने दावा किया था कि उन्हें महाराष्ट्र के गोंदिया जिले में गिरफ्तार किया गया, वहीं राही का कहना था कि उन्हें छत्तीसगढ़ के रायपुर से गोंदिया ले जाया गया था.

उनकी दूसरी गिरफ्तारी के बाद टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए राही की पत्नी चंद्रकला ने कहा था कि उन्हें प्रशांत के खिलाफ उत्तराखंड मामले के जल्द खत्म होने की उम्मीद थी लेकिन यह गिरफ़्तारी उन्हें आजाद किए जाने से रोकने की चाल लगती है.

उनका यह भी कहना था कि राही को राजनीतिक कैदियों के लिए उनके द्वारा किए गए कामों के चलते निशाना बनाया जा रहा है.

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र मामले में राही का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों में से एक सुरेंद्र गाडलिंग थे, जिन्हें 2018 में कई कार्यकर्ताओं, वकीलों और कलाकारों के साथ एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में गिरफ्तार किया गया है.

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