पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश बनीं जस्टिस आयशा मलिक

पाकिस्तान के न्यायिक आयोग ने इस महीने की शुरुआत में उनके नाम की अनुशंसा की थी लेकिन जस्टिस आयशा मलिक की पदोन्नति का मामला विवादों में रहा, क्योंकि उनकी पदोन्नति को वरिष्ठता के सिद्धांत के ख़िलाफ़ बताया जा रहा था. जस्टिस मलिक लाहौर हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की वरिष्ठता सूची में चौथे स्थान पर हैं.

जस्टिस आयशा ए. मलिक (फोटो साभारः फेसबुक)

पाकिस्तान के न्यायिक आयोग ने इस महीने की शुरुआत में उनके नाम की अनुशंसा की थी लेकिन जस्टिस आयशा मलिक की पदोन्नति का मामला विवादों में रहा, क्योंकि उनकी पदोन्नति को वरिष्ठता के सिद्धांत के ख़िलाफ़ बताया जा रहा था. जस्टिस मलिक लाहौर हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की वरिष्ठता सूची में चौथे स्थान पर हैं.

जस्टिस आयशा ए. मलिक (फोटो साभारः फेसबुक)

इस्लामाबाद: लाहौर हाईकोर्ट की जस्टिस आयशा ए. मलिक पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश होंगी. पाकिस्तान जैसे रूढ़िवादी मुस्लिम देश के न्यायिक इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण क्षण है.

कानून मंत्रालय की ओर से बीते 21 जनवरी को जारी अधिसूचना के अनुसार, राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने जस्टिस मलिक (55) की पदोन्नति को मंजूरी दे दी है और उनके पद की शपथ लेते ही उनकी नियुक्ति प्रभावी हो जाएगी.

अधिसूचना के मुताबिक, पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 177 के क्लॉज (1) तहत प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति को लाहौर हाईकोर्ट की जज आयशा ए. मलिक को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त करते हुए खुशी है. उनके पद की शपथ लेने के साथ ही उनकी नियुक्ति प्रभावी हो जाएगी.

सर्वोच्च न्यायपालिका की नियुक्ति से संबंधित द्विदलीय संसदीय समिति द्वारा न्यायाधीश मलिक की पदोन्नति को मंजूरी दिए जाने के दो दिन बाद यह ऐतिहासिक फैसला आया.

पाकिस्तान के न्यायिक आयोग (जेसीपी) ने इस महीने की शुरुआत में उनके नाम की अनुशंसा की थी, लेकिन जस्टिस मलिक की पदोन्नति का मामला विवादों में रहा, क्योंकि उनकी पदोन्नति को वरिष्ठता के सिद्धांत के खिलाफ बताया जा रहा है.

जस्टिस मलिक लाहौर हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की वरिष्ठता सूची में चौथे स्थान पर हैं.

उनकी पदोन्नति के पक्षधर लोगों का कहना है कि संविधान के अनुरूप सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए वरिष्ठता कोई आवश्यक्ता नहीं है. देश का न्यायिक इतिहास पुरुष जजों के ऐसे कई उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिनकी वरिष्ठता पर कोई विचार-विमर्श किए बिना उन्हें पदोन्नत किया गया है.

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सांसद फारूक एच. नाइक की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने उनके नामांकन को मंजूरी देते हुए वरिष्ठता के सिद्धांत को खारिज कर दिया.

फारूक ने कहा कि वह अभी भी जजों की नियुक्ति में वरिष्ठता के सिद्धांत में विश्वास करते हैं, लेकिन जस्टिस मलिक की पदोन्नति की मंजूरी इसलिए दी गई, क्योंकि पहली बार किसी महिला को सुप्रीम कर्ट में पदोन्नत किया जा रहा था.

उन्होंने कहा, ‘हमने राष्ट्रहित में जस्टिस मलिक के नाम को मंजूरी दी है.’

बता दें कि जेपीसी ने इस महीने की शुरुआत में लगभग साढ़े तीन घंटे तल चली बहस के दौरान बहुमत से जस्टिस मलिक को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किए जाने को मंजूरी दी.

बता दें कि जस्टिस मलिक को मार्च 2012 में लाहौर हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. वह अब जून 2031 में अपनी सेवानिवृत्ति तक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में काम करेंगी.

वह अपनी वरिष्ठता के आधार पर जनवरी 2030 में चीफ जस्टिस बनने की कतार में होंगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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