सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए मानदंड तय करने से इनकार किया

सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय  पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें एससी/एसटी के प्रतिनिधित्व में कमी संबंधी आंकड़े एकत्र करने के लिए बाध्य हैं.

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(फोटो: रॉयटर्स)

सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय  पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें एससी/एसटी के प्रतिनिधित्व में कमी संबंधी आंकड़े एकत्र करने के लिए बाध्य हैं.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए कोई मानदंड तय करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया.

जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें एससी/एसटी के प्रतिनिधित्व में कमी के आंकड़े एकत्र करने के लिए बाध्य हैं.

पीठ ने कहा, ‘बहस के आधार पर हमने दलीलों को छह बिंदुओं में बांटा है. एक मानदंड का है. जरनैल सिंह और नागराज मामले के आलोक में हमने कहा है कि हम कोई मानदंड निर्धारित नहीं कर सकते.’

पीठ ने कहा, ‘परिमाणात्मक या आरक्षण की मात्रा निर्धारित करने वाले आंकड़ों को एकत्रित करने के लिहाज से हमने कहा है कि राज्य इन आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए बाध्य हैं.’

शीर्ष अदालत ने कहा कि एससी/एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के संबंध में सूचनाओं को एकत्रित करने को पूरी सेवा या श्रेणी से जोड़कर नहीं देखा जा सकता बल्कि इसे उन पदों की श्रेणी या ग्रेड के संदर्भ में देखा जाना चाहिए जिन पर पदोन्नति मांगी गई है.

पीठ ने कहा, ‘यदि एससी/एसटी के प्रतिनिधित्व से संबंधित आंकड़े पूरी सेवा के संदर्भ में होते हैं तो पदोन्नति वाले पदों के संबंध में परिमाणात्मक आंकड़ों को एकत्रित करने की इकाई, जो कैडर होनी चाहिए, निरर्थक हो जाएगी.’

सही अनुपात में प्रतिनिधित्व के संदर्भ में शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने इस पहलू को नहीं देखा है और संबंधित कारकों को ध्यान में रखते हुए पदोन्नति में एससी/एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का पता लगाने का काम राज्यों पर छोड़ दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, पीठ ने कहा कि आवधिक समीक्षा होने के बाद प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के अलावा मात्रा निर्धारित करने वाले आंकड़े अनिवार्य हैं. समीक्षा अवधि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए.

पीठ ने कहा कि आकलन की इकाई कैडर आधारित होनी चाहिए, न कि पूरी सेवा के आधार पर.

बता दें कि न्यायालय ने 26 अक्टूबर, 2021 को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

इससे पहले, केंद्र ने पीठ से कहा था कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के लिए केंद्र सरकार तथा राज्यों के लिहाज से एक निश्चित और निर्णायक आधार तैयार किया जाए.

केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि एससी/एसटी को सालों तक मुख्यधारा से अलग रखा गया है और ‘हमें उन्हें समान अवसर देने के लिए देश के हित में समानता (आरक्षण के संदर्भ में) लानी होगी.

अटॉर्नी जनरल ने कहा था, ‘अगर आप राज्यों और केंद्र के लिए निश्चित निर्णायक आधार निर्धारित नहीं करते तो बड़ी संख्या में याचिकाएं आएंगी. इस मुद्दे का कभी अंत नहीं होगा कि किस सिद्धांत पर आरक्षण देना है.’

वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत के 1992 के इंदिरा साहनी मामले से लेकर 2018 के जरनैल सिंह मामले तक का जिक्र किया. इंदिरा साहनी मामले को मंडल आयोग मामले के नाम से जाना जाता है.

मंडल आयोग के फैसले में पदोन्नति में आरक्षण की संभावना को खारिज कर दिया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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