नॉर्थ ईस्ट डायरीः पूर्व छात्र नेता पर गोलीबारी को लेकर असम सरकार को मानवाधिकार आयोग का नोटिस

इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में असम, मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख समाचार.

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प्रतीकात्मक तस्वीर. (फोटो: रॉयटर्स)

इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में असम, मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख समाचार.

प्रतीकात्मक तस्वीर. (फोटो: रॉयटर्स)

गुवाहाटी/अगरतला/कोहिमा/ईटानगर: असम मानवाधिकार आयोग ने मुख्य सचिव जिष्णु बरुआ को नोटिस जारी कर पूछा है कि राज्य सरकार को ड्रग तस्करी के आरोप में पुलिस द्वारा गोली मारकर घायल किए गए असम के पूर्व छात्र नेता को मुआवजा क्यों नहीं दिया जाना चाहिए?

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य असम के नागांव में 22 जनवरी को पुलिस ने ड्रग विरोधी अभियान के दौरान पूर्व छात्र नेता कीर्ति कमल बोरा को गोली मार दी थी.

पुलिस ने उस पर ड्रग रैकेट में शामिल होने का आरोप लगाया था, लेकिन उनके परिवार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू)  की स्थानीय इकाई का कहना है कि बोरा को मामले में फंसाया गया है.

दो दिन बाद इस घटना पर संज्ञान लेते हुए असम मानवाधिकार समिति ने का कि यह प्रथमदृष्टया मानवाधिकार उल्लंघन का मामला है.

समिति ने कहा, ‘असम के मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी करना आवश्यक है आखिर क्यों पीड़ित को अंतरिम राहत के तौर पर 1.5 लाख रुपये का भुगतान क्यों नहीं किया जाए?’

मामले की सुनवाई 28 फरवरी को निर्धारित की गई. विपक्षी दल कांग्रेस और रायजोर दल और असम जातीय परिषद जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने कहा कि राज्य में भाजपा नीत सरकार के जंगल राज की वजह से यह घटना फर्जी मुठभेड़ का एक और मामला है.

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने 23 जनवरी को घटना की जांच के आदेश दिए थे. आयोग ने एक हफ्ते के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा है.

बता दें कि शर्मा के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मई 2021 के बाद से कथित ड्रग तस्करों, मवेशी तस्करों, हत्यारों, अपहरणकर्ताओं, बलात्कारियों और अन्य अपराधियों के एनकाउंटर में 28 लोगों की मौत हो गई है और लगभग 50 लोग घायल हुए हैं.

मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्रियों को बिना मंजूरी के नई योजनाओं के ऐलान पर रोक

असम सरकार ने मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा सहित सभी मंत्रियों को बिना पूर्व अनुमति और वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता पर विचार किए बगैर नई योजना के ऐलान पर प्रतिबंध लगा दिया.

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री शर्मा की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक के दौरान सार्वजनिक कार्यक्रमों में नई योजनाओं का ऐलान नहीं करने का फैसला लिया गया.

ट्विटर पर मुख्यमंत्री द्वारा शेयर की गई आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया, आधिकारिक दौरों और सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान मंत्री सिर्फ उन्हीं योजनाओं के बारे में जानकारी देंगे, जो पहले से ही बजट या किसी अन्य सरकारी ऐलान का हिस्सा है.

विज्ञप्ति में कहा गया, ‘मुख्यमंत्री और अन्य मंत्री वित्तीय संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता पर विचार किए बिना किसी नई योजना का ऐलान नहीं करेंगे. हालांकि, विभागों से चर्छा के बाद समारोह के दौरान किए गए आग्रह के अनुसार योजनाओं का ऐलान किया जा सकता है.’

कैबिनेट की बैठक में फैसला लिया गया कि असम विधानसभा का बजट सत्र 14 मार्च से शुरू होगा.

असम-मेघालय सीमा विवाद समझौते से नाराज़ वैष्णव मठ, अदालत जाने की धमकी दी

असम में वैष्णव मठों के अग्रणी संगठन असम सत्र महासभा ने असम और मेघालय के बीच सीमा विवाद हल करने को लेकर मंजूर करार पर आपत्ति जताई है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, असम सत्र महासभा का आरोप है कि इस समझौते की वजह से असम स्थित उसके दो सत्र (वैष्णव मठ) और 20 से ज्यादा नामघर (प्रार्थना भवन) मेघालय चले जाएंगे, जो उसे मंजूर नहीं है.

बीते सप्ताह असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा और मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर उन्हें दोनों राज्यों की क्षेत्रीय समितियों की सिफारिशों से अवगत कराया था.

इन समितियों ने 12 विवादित सीमा क्षेत्रों में से छह को विभाजित करने का सुझाव दिया है. समझौते पर अमल दोनों राज्यों के बीच लेन-देन यानी जमीनों की अदला-बदली के रूप में होगा.

दोनों मुख्यमंत्रियों ने शाह से आग्रह किया कि केंद्र सरकार इस बारे में आवश्यक कदम उठाए ताकि इन सिफारिशों पर अमल किया जा सके.

इन सिफारिशों के अनुरूप दोनों राज्यों के छह इलाकों की 36.79 वर्ग किलोमीटर जमीन विवादित है. असम के गिजांग, ताराबेरी, बोकलापाड़ा, खानपाड़ा-पिलिंगकाटा और राताछेर्रा को 18.51 वर्ग किलोमीटर जमीन जबकि मेघालय को 18.28 वर्ग किलोमीटर जमीन मिलेगी.

इन सिफारिशों के जरिये दोनों पड़ोसी राज्यों के बीच लगभग छह दशक पुराने सीमा विवाद को हल करने की मांग की गई और इसे पहले दोनों राज्यों की कैबिनेट से भी मंजूरी मिल गई है.

असम सत्र महासभा के महासचिव कुसुम कुमार महंता ने कहा, ‘हमने सीखा है कि इस सौदे की वजह से दो सत्र और 20 नामघर, जो असम का हिस्सा हैं, वे मेघालय को सौंप दिए जाएंगे. यह हमें स्वीकार्य नहीं है और हम इसकी मंजूरी नहीं देंगे.’

उन्होंने कहा, ‘दोनों सत्र जो मेघालय को सौंपे जा सकते हैं, वे मोहमोरांग के बाबेरी गोसाई सत्र और लोंगसाई के नेतवाजापा सत्र हैं. ये दोनों सत्र और नामघर बोकलापाड़ा में आते हैं, जो पश्चिम गुवाहाटी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है.’

त्रिपुराः झील में 100 से अधिक प्रवासी पक्षी मृत पाए गए

अमेरिका के कैलिफोर्निया से आए 100 से अधिक प्रवासी पक्षी पर्पल मूरेंस त्रिपुरा के गोमती जिले में स्थित विशाल सुखसागर झील में मृत पाए गए हैं.

प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) ने बताया कि गोमती जिले के विशाल सुखसागर झील में मृत पये गये पक्षियों की पहचान पर्पल मूरेंस के रूप में की गयी है.

इसके साथ ही उन्होंने लोगों को चेताया कि इन मृत पक्षियों को न खायें क्योंकि यह जहरीला हो सकता है.

गोमती संभाग के वन अधिकारी महेंद्र सिंह और उदयपुर के उपमंडलीय वन अधिकारी कमल भौमिक गुरुवार को मौके पर पहुंचे और पोस्टमार्टम के लिए कुछ मृत पक्षियों को एकत्रित किया.

अधिकारी ने बताया, ‘मामले में जांच के आदेश दिये गये हैं और मृत पक्षियों को पोस्टमार्टम के लिए अगरतला भेजा गया है.’

उन्होंने कहा, ‘पक्षियों की तस्वीर देखने से यह पता चलता है कि ये पर्पल मूरेंस थे. विभागीय अधिकारी इलाके में जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं ताकि लोग इन पक्षियों को न खायें.’

उन्होंने कहा, ‘हम लोग मामले की जांच कर रहे हैं और अगर इन पक्षियों को कीड़े मारने वाली दवाओं से मारा गया है तो इसे खाने वाले लोगों के लिये यह हानिकारक हो सकता है.’

अधिकारी ने बताया कि इन पक्षिये के शव पूरी झील में मिले हैं और इनकी सही संख्या का बताना बहुत कठिन है.  हालांकि, ऐसा लगता है कि 100 से अधिक पक्षियों की मौत हुई है.

स्थानीय लोगों का दावा है कि बहुत से लोग मृत पक्षियों को खाने के लिए लेकर गए हैं जबकि कई को आवारा कुत्ते उठाकर ले गए.

भाजपा में अंदरूनी कलह के बीच मुख्यमंत्री बिप्लब ने बागी नेताओं पर साधा निशाना

बिप्लब कुमार देब. (फोटो साभार: ट्विटर)

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने राज्य में भाजपा की अगुवाई में गठबंधन सरकार की कथित नाकामी के खिलाफ बोलने के लिए अभियान चलाने वाले पार्टी के बागी नेताओं पर निशाना साधा.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सुदीप रॉय बर्मन और उनकी मंडली का नाम लिए बगैर कहा कि लोगों का भाजपा में विश्वास है क्योंकि वे सीपीआई (एम) के लंबे कुशासन को समाप्त करने के लिए गैर वामपंथी नेताओं के एक वर्ग की अनिच्छा से हताश थे.

बता दें कि बर्मन की अगुवाई में पार्टी के विधायकों और नेताओं का एक वर्ग अपनी ही पार्टी और सरकार के खिलाफ बोलने के लए राज्य का दौरा कर रहा है.

इन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से बातचीत करने के लिए गुरुवार को गोमती जिले के उदयपुर का दौरा किया जिन्होंने उनके अनुसार 2018 में राज्य में राजनीतिक बदलाव लाने के लिए निरंतर काम किया लेकिन भाजपा की जीत के बाद उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया.

वहीं, बर्मन और अन्य विधायक आशीष कुमार साहा का कहना है कि वे 2023 का विधानसभा चुनाव भाजपा के टिकट से नहीं लड़ेंगे और उचित समय आने पर अपनी राजनीतिक योजना को सार्वजनिक करेंगे.

मुख्यमंत्री बिप्लब ने बर्मन और अन्य विधायकों के इस दावे को खारिज किया कि राज्य सरकार अपनी प्रतिबद्धताओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों को समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाने में असफल रही.

उन्होंने इस आरोप को भी खारिज किया कि राज्य सरकार का व्यवहार और काम करने का तरीका अलोकतांत्रिक और निरंकुश है.

मुख्यमंत्री देब ने कहा, ‘2018 विधानसभा चुनाव से पहले भी लोग 2015 और 2016 स्थानीय चुनावों में भाजपा के साथ थे, उस समय पार्टी का वोत प्रतिशत 36 फीसदी बढ़ा था. ऐसा इसलिए क्योंकि लोग गैर वामपंथी नेताओं की संदिग्ध राजनीति से हताश थे और उन्होंने इसे नकार दिया था.’

नगालैंडः मुख्यमंत्री रियो ने कहा- केंद्र आफस्पा हटाने की मांग पर विचार कर रहा

नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो का कहना है कि केंद्र सरकार नगालैंड से आफस्पा हटाने की राज्य सरकार की मांग पर विचार कर रहा है. उन्होंने इस दिशा में सकारात्मक फैसले की उम्मीद जताई है.

मुख्यमंत्री रियो ने सचिवालय में गणतंत्र दिवस समारोह को संबोधित करते हुए कहा, ‘मोन में सुरक्षाबलों द्वारा 14 नागरिकों की हत्या की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के काम में प्रगति हुयी है.’

उन्होंने कहा, ‘हम उन लोगों के परिवार के लोगों के दर्द को कम करने के लिए हरसंभव उपाय कर रहे हैं जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है और जो लोग जख्मी हुए हैं.’

उन्होंने कहा कि हमें विश्वास है कि पीड़ितों के परिजनों के साथ न्याय होगा.

रियो ने कहा, ‘मोन में हत्या के बाद राज्य कैबिनेट ने केंद्र के समक्ष सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (आफस्पा), 1958 को तुरंत हटाने की मांग की थी और 20 दिसंबर को इस सिलसिले में विधानसभा में प्रस्ताव भी पारित किया था.’

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने नगालैंड से आफस्पा को हटाने का मामला केंद्र के समक्ष उठाया है.

रियो ने कहा, ‘केंद्र सरकार मामले पर विचार कर रही है और हमें जल्द सकारात्मक निर्णय की उम्मीद है. नगा राजनीतिक समूहों और केंद्र के बीच राजनीतिक मुद्दे पर समझौता सौहार्दपूर्ण माहौल में हो रहा है ताकि कोई समाधान निकल सके.’

मुख्यमंत्री ने कहा कि सभी विधायक एकजुट हैं और विपक्ष रहित सरकार बनाई है ताकि समझौता कर रहे पक्षों को बताया जा सके कि राज्य सरकार सम्मानजक, समग्र एवं स्वीकार्य समाधान की उम्मीद कर रही है.

नगालैंड नागरिकों की मौत: एसआईटी के सामने सेना ने कहा, पहचानने में ग़लती से हुई घटना

नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की गोलीबारी में मारे गए लोगों के अवशेष. (फोटोः पीटीआई)

नगालैंड के मोन जिले में 13 निहत्थे आम नागरिकों की भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा हत्या के ठीक दो दिन बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में दावा किया था कि घटना ‘पहचान करने में हुई गलती’ का नतीजा थी.

इस असंवेदनशील बयान और हत्याओं को जल्दबाजी में छिपाने के शाह के इस प्रयास की हर ओर आलोचना हुई. लेकिन, अब एक महीने बाद सेना भी अपने बचाव में शाह की राह पर चल दी है.

द वायर  को मिली जानकारी के अनुसार, फायरिंग और उसके बाद हुई मौतों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के सामने गवाही देने वाले सुरक्षा बल के 37 जवान सर्वसम्मति से इस बात पर अड़े हुए हैं कि उन्हें जो खुफिया जानकारी मिली थी, वह गलत साबित हुई जिसके चलते 13 नागरिक मारे गए.

पूछताछ में शामिल सेना के इन 37 जवानों में से 31 उस ऑपरेशन में शामिल थे. एसआईटी ने अन्य 85 नागरिकों से भी पूछताछ की, इनमें से ज्यादातर उस ओटिंग गांव से थे जहां घटना हुई.
इनमें से दो बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए गए. एसआईटी का मानना है कि ये दो गवाह जांच के लिए महत्वपूर्ण हैं और वे अपने बयान से पीछे नहीं हटेंगे.

ऑपरेशन में शामिल रहे सेना के अधिकारियों को अलग-अलग तारीखों पर गवाही के लिए बुलाया गया था और उनके बयान 6 दिसंबर से मध्य जनवरी के बीच दर्ज किए गए थे.

एसआईटी जांच की जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने द वायर  से इस बात की पुष्टि की है कि सेना के ‘बिना सोचे-समझे दिए गए जवाब’ जवाबों से अधिक सवाल खड़े करते हैं, खासकर कि सेना ने हाल के महीनों में कई बार मिली समान तरह की खुफिया सूचनाओं की अनदेखी क्यों की, जबकि विशेष तौर पर 4 दिसंबर को मिली प्राप्त जानकारी पर कार्रवाई की.

पुलिस अधिकारी ने पुष्टि की है कि ये सूचनाएं इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के तहत काम करने वाले मल्टी एजेंसी सेंटर के जरिये मिली थीं.

उन्होंने आगे बताया कि सभी एजेंसियां ​​नियमित तौर पर खुफिया सूचनाओं का एक सामान्य पूल बनाती हैं और उनके ऑपरेशन इन सूचनाओं पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं. अगर कोई इनपुट या सूचना गलत होती है, तो इससे ऑपरेशन की योजना पर गंभीर प्रभाव भुगतना पड़ता है.

एसआईटी ने पाया है कि 4 दिसंबर को नगालैंड पुलिस, आईबी, सैन्य एजेंसी और कुछ सहयोगी एजेंसियों से खुफिया जानकारी मिली थी. अब उन सूचनाओं की बारीकी से जांच की जा रही है.

अधिकारी ने यह भी बताया कि अब एसआईटी घटना वाले दिन मिले खुफिया इनपुट और अतीत में मिले ऐसे इनपुट्स  की बारीकी से तुलना करने जा रही है. उन्होंने बताया कि सेना को रोजाना ऐसी सूचनाएं मिलती हैं. हर सूचना चरमपंथियों की गतिविधियों की ओर इशारा करती है.

उन्होंने आगे कहा कि सुरक्षा बलों की टीम ने घात लगाकर हमला किया था, इसलिए यह अचानक हुआ टकराव नहीं था और ऐसा नहीं था कि विशेष बल इससे अनजान थे.

बता दें कि कोन्याक जाति से ताल्लुक रखने वाले सभी ग्रामीण कोयला खदान में मजदूरी करते थे. जब उन्हें गोली मारी गई तब शाम के चार बजे से कुछ अधिक ही समय हुआ था और उस समय उजाला भी था.

पुलिस अधिकारी ने बताया कि घात लगाए बैठे सैन्यकर्मियों का दावा है कि उन्होंने तब ग्रामीणों के पास हथियार जैसा कुछ देखा था. हालांकि, वे सभी निहत्थे थे. उनमें से छह की मौके पर ही मौत हो गई जबकि बाकी दो गंभीर रूप से घायल हो गए.

भले ही, ग्रामीणों को शाम के चार बजे मार दिया गया था लेकिन सशस्त्र बल के जवान मौके पर 9 बजे तक तक रहे. पुलिस अधिकारी का कहना है कि इन पांच घंटों तक उनका मौके पर मौजूद रहना गंभीर सवाल खड़ा करता है.

असम-अरुणाचल सीमा विवादः दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक के बाद दोबारा तनाव

असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच दशकों पुराने सीमा विवाद पर स्थाई समाधान के लिए दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक के कुछ दिनों बाद अंतरराज्य सीमा पर दोबारा तनाव की खबर है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह ताजा विवाद अरुणाचल प्रदेश के लोअर सियांग जिले में लिकाबली-दुरपई पीएमजीएसवाई सड़क परियोजना पर है.

असम का दावा है कि 2019 से निर्माणाधीन इस सड़क के कुछ हिस्से धेमाजी जिले के तहत आते हैं.

प्रशासन का कहना है, ’26 जनवरी को लोअर सियांग जिले के हिमे गांव में एक निर्माणाधईन पुल को असम की तरफ से आए कुछ अज्ञात शरारती तत्वों ने जला दिया. इसके बाद अरुणाचल प्रदेश की ओऱ से स्थानीय लोगों द्वारा हवा में फायरिंग करने की भी खबर आई, जिसकी पुष्टि नहीं की जाती.’

असम के धेमाजी जिले और अरुणाचल प्रदेश के लोअर सियांग जिले के अधिकारी 27 जनवरी की सुबह मौके पर पहुंचे और बताया कि यह मामूली घटना थी और अब स्थिति नियंत्रण में है.

बता दें कि दोनों जिले लगभग 150 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, यह तनाव उस समय शुरू हुआ, जब असम पुलिस की एक टीम ने हिमे में सड़क निर्माण का काम रुकवा दिया.

धेमाजी जिले के पुलिस अधीक्षक रंजन भुइयां ने बताया, ‘लिकाबली-दुरपई सड़क परियोजना सीमा पर कुछ बिंदुओं पर विवादित क्षेत्र के तहत आती है. हमारी टीम ने ऐसे ही एक निर्माणकार्य को रुकवा दिया था. यह एक विवादित क्षेत्र है इसलिए हमने पहले भी कई मौकों पर इस तरह निर्माण कार्य रुकवाया है.’

वहीं, लोअर सियांग जिले के एसपी कुशाल पाल सिंह ने कहा कि सड़क परियोजना कुछ जगह विवादित क्षेत्र के दायरे में आती है. इस वजह से 25 जनवरी को हिमे के स्थानीय ग्रामीणों और असम पुलिस के बीच कुछ बहस भी हुई थी.

उन्होंने कहा, ‘इसके बाद असम की तरफ से कुछ शरारती तत्वों ने एक निर्माणाधीन पुल को आग लगा दी.’

उन्होंने बताया कि उन्हें अरुणाचल की ओर से स्थानीय लोगों द्वारा हवा में फायरिंग की भी कुछ खबरें मिली थी जिनकी पुष्टि नहीं की जा सकती.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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