विवाद के बाद भारतीय स्टेट बैंक ने गर्भवती महिलाओं की भर्ती संबंधी सर्कुलर वापस लिया

भारतीय स्टेट बैंक ने गर्भवती महिला उम्मीदवारों के लिए निर्धारित नियमों सहित बैंक में भर्ती संबंधी फिटनेस मानदंड की हाल में समीक्षा की थी. समीक्षा के बाद जारी नए नियमों के तहत तीन माह से अधिक अवधि की गर्भवती महिला उम्मीदवारों को अस्थायी रूप से अयोग्य माने जाने की बात कही गई थी और कहा गया था कि गर्भवती महिलाएं प्रसव के चार महीने के भीतर ही नौकरी शुरू कर सकती हैं.

​(फोटो: रॉयटर्स)​​​

भारतीय स्टेट बैंक ने गर्भवती महिला उम्मीदवारों के लिए निर्धारित नियमों सहित बैंक में भर्ती संबंधी फिटनेस मानदंड की हाल में समीक्षा की थी. समीक्षा के बाद जारी नए नियमों के तहत तीन माह से अधिक अवधि की गर्भवती महिला उम्मीदवारों को अस्थायी रूप से अयोग्य माने जाने की बात कही गई थी और कहा गया था कि गर्भवती महिलाएं प्रसव के चार महीने के भीतर ही नौकरी शुरू कर सकती हैं.

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नई दिल्लीः विवाद के बाद देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने गर्भवती महिलाओं की भर्ती से संबंधित सुर्कलर को वापस लेने का शनिवार को फैसला किया.

सुर्कलर के तहत तीन महीने से अधिक अधिक की गर्भवती महिला को अस्थायी तौर पर अयोग्य माना जाएगा और उन्हें प्रसव के चार महीने बाद ही दोबारा काम पर लौटने की अनुमति दी जाएगी.

इस सर्कुलर को लेकर एसबीआई को विभिन्न क्षेत्रों से आलोचना का सामना करना पड़ रहा था, जिसके बाद एसबीआई को यह कदम उठाना पड़ा.

दरअसल एसबीआई ने गर्भवती महिला उम्मीदवारों के लिए निर्धारित नियमों सहित बैंक में भर्ती संबंधी फिटनेस मानदंड की हाल में समीक्षा की थी.

समीक्षा के बाद जारी नए नियमों के तहत तीन माह से अधिक अवधि की गर्भवती महिला उम्मीदवारों को अस्थायी रूप से अयोग्य माने जाने की बात कही गई थी और कहा गया था कि गर्भवती महिलाएं प्रसव के चार महीने के भीतर ही नौकरी शुरू कर सकती हैं.

इस प्रावधान को श्रमिक संगठनों और दिल्ली के महिला आयोग समेत समाज के कई तबकों ने महिला विरोधी बताते हुए निरस्त करने की मांग की थी.

विवाद बढ़ने पर एसबीआई ने जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए गर्भवती महिला उम्मीदवारों की भर्ती संबंधी संशोधित दिशानिर्देशों को स्थगित करने का निर्णय लिया है.

एसबीआई ने एक बयान में कहा है कि गर्भवती महिलाओं की भर्ती संबंधी पुराने नियम ही प्रभावी होंगे. बैंक ने कहा कि भर्ती संबंधी मानकों में संशोधन के पीछे उद्देश्य अस्पष्ट या बहुत पुराने बिंदुओं पर स्थिति साफ करने का था.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि, कर्मचारी संघ इससे संतुष्ट नहीं है, क्योंकि पहले के नियम भी गर्भवती महिलाओं के साथ भेदभावकारी हैं.

31 दिसंबर 2021 को जारी ई-सर्कुलर में एसबीआई ने देशभर के अपने स्थानीय कार्यालयों को संशोधित चिकित्सक मानकों के बारे में सूचित किया था.

इन नियमों के तहत तीन महीने से अधिक अधिक की गर्भवती महिला को अस्थायी तौर पर अयोग्य माना जाएगा और उन्हें प्रसव के चार महीने बाद ही दोबारा काम पर लौटने की अनुमति दी जाएगी.

विभिन्न कर्मचारी संघों के प्रतिनिधियों और दिल्ली महिला आयोग ने एसबीआई के चेयरमैन दिनेश कुमार खारा को पत्र लिखा. इसके साथ ही शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखा.

इस संबंध में सोशल मीडिया पर आक्रोश के बाद बैंक ने बयान जारी कर इन निर्देशों को वापस ले लिया.

बयान में कहा गया, ‘एसबीआई ने गर्भवती महिलाओं की भर्तियों के संबंध में संशोधित निर्देशों को वापस लेने का फैसला किया है और इस संबंध में मौजूदा निर्देश जारी रहेंगे.’

हालांकि, बैंक के पहले के नियमों में भी गर्भवती महिलाओं की भर्ती पर रोक है.

इन नियमों के अनुसार, ‘छह महीने की गर्भवती महिला स्त्रीरोग विशेषज्ञ से एक प्रमाण-पत्र पेश करें, जिसमें कहा गया हो कि गर्भावस्था के इस चरण में बैंक की नौकरी स्वीकार करने पर उनकी गर्भावस्था में किसी तरह के हस्तक्षेप की संभावना नहीं है या भ्रूण के सामान्य विकास में किसी तरह की बाधा उत्पन्न नहीं होगी या इससे गर्भपात की आशंका नहीं है या महिला के स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा.’

अखिल भारतीय स्टेट बैंक कर्मचारी संघ के महासचिव केएस कृष्णा ने बताया, ‘गर्भावस्था कोई बाधा नहीं होनी चाहिए. हमारी मांग यह है कि छह महीने से अधिक की गर्भवती महिलाओं के लिए भी नियमों में बदलाव होना चाहिए क्योंकि गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं है.’

संघ ने यह भी कहा कि नए नियम सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 के तहत मातृत्व लाभ के लिए महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित करने का प्रयास है.

एसबीआई के चेयरमैन को लिखे पत्र में दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 के उल्लंघन के लिए इस सर्कुलर को अवैध बताया.

डीसीडब्ल्यू प्रमुख स्वाति मालीवाल ने ट्वीट कर कहा, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय स्टेट बैंक ने तीन महीने से अधिक अवधि की गर्भवती महिलाओं की भर्ती को लेकर दिशानिर्देश जारी किए हैं और उन्हें अस्थायी रूप से अयोग्य करार दिया है. यह भेदभावपूर्ण और अवैध है. हमने उन्हें नोटिस जारी कर इस महिला विरोधी नियम को वापस लेने की मांग की है.’

आयोग ने नोटिस में नए दिशानिर्देशों की एक प्रति के साथ-साथ इससे पहले लागू समान नियमों की एक प्रति मांगी है. इस मामले में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट भी मांगी गई है.

वहीं, शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने केंद्रीय वित्त मंत्री सीतारमण को लिखे पत्र में मांग की कि इस तरह की नीतियों को लागू नहीं किया जाना चाहिए.

शिवसेना प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्या प्रियंका चतुर्वेदी ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लिखे पत्र में कहा कि इन दिशानिर्देशों से महिलाओं को सशक्त बनाने की प्रक्रिया को नुकसान होगा.

उन्होंने कहा, ‘नए प्रस्तावित दिशानिर्देशों से महिलाओं के लिए भर्ती और पदोन्नति की प्रक्रिया में देरी होगी. ये दिशानिर्देश ऐसे समय में जारी किए गए हैं जब भारत की महिला कार्यबल की स्थिति खराब हो रही है. इस तरह के प्रतिगामी और लैंगिक भेदभाव वाले दिशानिर्देश महिलाओं के समक्ष आने वाली असमानता को भी बढ़ा देंगे.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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