राज्यसभा में पेगासस से जुड़े सांसदों के प्रस्तावित संशोधन को नामंज़ूरी पर विपक्ष ने सवाल उठाए

माकपा नेता एलामारम करीम ने सभापति एम. वेंकैया नायडू को लिखे पत्र में पेगासस जासूसी मामले और केंद्र सरकार के कोविड-19 प्रबंधन से जुड़े प्रस्तावित संशोधनों को स्वीकृति न देने पर नाराज़गी जताई है. उन्होंने यह भी कहा कि यह एकतरफा कार्रवाई पूरी तरह से अलोकतांत्रिक और अनैतिक है.

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(फोटोः पीटीआई)

माकपा नेता एलामारम करीम ने सभापति एम. वेंकैया नायडू को लिखे पत्र में पेगासस जासूसी मामले और केंद्र सरकार के कोविड-19 प्रबंधन से जुड़े प्रस्तावित संशोधनों को स्वीकृति न देने पर नाराज़गी जताई है. उन्होंने यह भी कहा कि यह एकतरफा कार्रवाई पूरी तरह से अलोकतांत्रिक और अनैतिक है.

संसद परिसर (फोटोः पीटीआई)

नई दिल्लीः संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए सदस्यों द्वारा पेश किए गए पेगासस जासूसी मामले में संशोधनों को राज्यसभा सचिवालय द्वारा स्वीकृत न किए जाने को लेकर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, माकपा ने सभापति एम. वेंकैया नायडू को पत्र लिखकर नाराजगी जताई है और इस पर निर्णय लेने की मांग की है.

राज्यसभा में माकपा नेता एलामारम करीम ने नायडू को लिखे पत्र में कहा, ‘पेगासस मामले को लेकर उनके और कुछ अन्य सदस्यों द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को स्वीकृत नहीं किए जाने और सचिवालय द्वारा कोविड-19 प्रबंधन किए जाने से जनता में एक धारणा पैदा हो सकती है कि राज्यसभा सचिवालय ने जानबूझकर ऐसे संशोधनों को स्वीकृत सूची से बाहर रखा है जो उन घटनाओं से जुड़ी है, जिससे केंद्र सरकार बेपर्दा हो सकती है.’

करीम, उनके पार्टी के सहयोगियों जॉन ब्रिटास और वी. शिवदासन के अलावा कांग्रेस के शक्ति सिंह गोहिल द्वारा प्रस्तावित दस संशोधनों में से एक पेगासस विवाद से जुड़ा है.

उन्होंने पत्र में कहा, ‘यह एकतरफा कार्रवाई पूरी तरह से अलोकतांत्रिक और अनैतिक है.’ उन्होंने कहा, ‘मैं राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर नियम 16 के तहत मेरे द्वारा कुछ प्रस्तावित संशोधनों को राज्यसभा सचिवालय द्वारा अस्वीकृत किए जाने पर आपत्ति जताना चाहूंगा.’

करीम ने कहा कि निर्देश दिए गए थे कि धन्यवाद प्रस्ताव पर एक सदस्य द्वारा सिर्फ 10 संशोधनों पर ही विचार किया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘मैंने 10 संशोधन सुझाए थे, जिनमें सरकार की कई कमियों का उल्लेख किया गया था जो राष्ट्रपति के अभिभाषण में नहीं थे लेकिन दुर्भाग्य से इनमें से सिर्फ आठ संशोधनों को ही स्वीकृत संशोधन सूची में शामिल किया गया.’

उन्होंने कहा, ‘ये अस्वीकृत संशोधन वे हैं, जिनमें पेगासस मामले और कोविड-19 से प्रभावी तरीके से निपटने में केंद्र सरकार की असफलता और एक विस्तृत वैक्सीन नीति तैयार करने का उल्लेख किया गया था. ऐसा समझ आ रहा है कि कई अन्य सदस्यों के साथ भी ऐसा ही हुआ है जिन्होंने इन विषयों पर संशोधनों को अस्वीकार कर दिया गया.’

उन्होंने कहा, ‘यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है कि इस तरह के फैसलों ने राज्यसभा सांसद के मूल अधिकारों का उल्लंघन किया है. ये संशोधन लोगों की चिंताओं को दर्शाते हैं और उनके प्रतिनिधि होने की वजह से यह हमारा कर्तव्य है कि हम इन मुद्दों को सदन में उठाएं. इन संशोधनों को एकतरफा तरीके से खारिज करना दुर्भाग्यपूर्ण है.’

करीम ने कहा, ‘स्वीकृत किए गए संशोधनों की सूची में हमें कहीं भी पेगासस शब्द या सरकार द्वारा लोगों की अवैध जासूसी के संबंध में कोई वाक्य नहीं मिलेगा. कोविड-19 प्रबंधन में केंद्र सरकार की असफलता का खुलासा करने वाले मुद्दों को भी स्वीकृत नहीं किया गया है. इस पर सदन को फैसला करना है कि क्या इन संशोधनों पर विचार किया जाए या नहीं. हम सदन में इन पर चर्चा कर सकते हैं. अगर सदन यह फैसला करता है कि ये बिंदु विचार करने योग्य नहीं है तो इन्हे खारिज किया जा सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘सदन द्वारा इस पर विचार किए जाने से पहले प्रस्तावित संशोधनों को अस्वीकार करने का यह सही तरीका नहीं है इसलिए मैं सभापति से जानने का आग्रह करता हूं कि किस तरीके से या किस आधार पर सांसदों द्वारा प्रस्तावित संशोधनों पर विचार किया जाता है या उसे अस्वीकृत किया जाता है.’

दिलचस्प है कि लोकसभा में जासूसी मामले से जुड़े सांसदों के प्रस्तावित संशोधनों को स्वीकार कर लिया गया.

उन्होंने कहा, ‘सिर्फ राज्यसभा में इस तरह चुनिंदा संशोधनों को सूची से बाहर कर दिया गया इसलिए राज्यसभा इन्हें बाहर रखे जाने के कारणों को उजागर करने के लिए पारदर्शिता बनाए रखने की जवाबदेही से नहीं बच सकते.’

करीम ने बताया कि वह और उनके पार्टी के सहयोगी ब्रिटास और शिवदासन ने भी इसी तरह के संशोधन प्रस्ताव दिए थे.

पेगासस पर करीम द्वारा प्रस्तावित संशोधनों में कहा गया, ‘खेद है कि अभिभाषण में इजरायली कंपनी एनएसओ के साथ भारत सरकार की भागीदारी और पेगासस के जरिये हजारों पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, विपक्षी दलों के नेताओं, सरकारी अधिकारियों, कारोबारियों और सुप्रीम कोर्ट के जजों की अवैध सर्विलांस का कोई उल्लेख नहीं है.’

कोविड-19 पर संशोधन में कहा गया, ‘यह भी खेदजनक है कि संबोधन में कोरोना से निपटने में सरकार की नाकामी, नदियों में शवों के बहने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना और सभी नागरिकों के लिए निशुल्क वैक्सीन सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी वैक्सीन नीति तैयार करने और सभी राज्यों में वैक्सीन की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने में नाकामी का कोई उल्लेख नहीं है.’

गोहिल द्वारा प्रस्तावित संशोधन में कहा गया, ‘खेद है कि अभिभाषण में यह भी उल्लेख नही है कि सरकार ने कब और क्यों पेगासस खरीदा और इसे खरीदने में कितनी धनराशि खर्च की गई?

केंद्र ने राज्यसभा सचिवालय को पत्र लिख लोकतंत्र सूचकांक से जुड़े सवाल रोकने को कहा

इस बीच केंद्र सरकार ने राज्यसभा सचिवालय को पत्र लिखकर एक लोकतंत्र सूचकांक में भारत की स्थिति को लेकर पूछे गए सांसदों के अनंतिम स्वीकृत प्रश्न (पीएक्यू) को स्वीकार न करने को कहा.

रिपोर्ट के मुताबिक, सांसदों ने पीकेक्यू के जरिये इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) के लोकतंत्र सूचकांक में भारत के फिसलकर 53वें स्थान पर रहने का कारण जानना चाहा था.

तृणमूल कांग्रेस सांसद शांता छेत्री ने यह सवाल पूछा था, जिस पर 10 फरवरी को जवाब दिया जाना है.

छेत्री चाहती हैं कि विदेश मंत्रालय से उन कारणों का हवाला दें, जो ईआईयू लोकतंत्र सूचकांक में भारत के फिसलकर 53वें स्थान पर पहुंचने की वजह है.

उन्होंने कहा कि क्या सरकार इससे वाकिफ है कि इससे भारत में गरीबों को गलत तरीके से दर्शाया गया और क्या सरकार ने भारत की रैंकिंग में सुधार के लिए कोई कदम उठाए थे.

विदेश मंत्रालय ने बुधवार को राज्यसभा सचिवालय को लिखे पत्र में कहा कि पिछल साल जुलाई में मॉनसून सत्र के दौरान कानून एवं न्याय मंत्रालय ने इन्हीं सवालों को मंजूरी नही दी थी.

रिपोर्ट के मुताबिक, यह पता चला है कि विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसने कानून एवं न्याय मंत्रालय से इन सवालों को स्वीकृत करने का आग्रह किया था लेकिन बाद में सवाल को स्वीकार करते हुए राज्यसभा सचिवालय को पत्र लिखकर इसे अस्वीकार करने को कहा गया.

पिछले साल लोकतंत्र सूचकांक में भारत को कमियों से भरे (Flawed) लोकतंत्र के रूप में वर्गीकृत करने के बाद सरकार ने लंदन स्थित ईआईयू से जुड़ने की कोशिश की थी.

कानून मंत्रालय द्वारा 15 जुलाई को राज्यसभा सचिवालय को लिखे पत्र में इस सवाल के संवेदनशील होने की वजह से इसे अस्वीकृत करने को कहा गया.

कानून मंत्रालय ने यह भी कहा कि रैंकिंग को लेकर ईआईयू की कार्यप्रणाली मंत्रालय के साथ साझा नहीं की गई थी और बिना सरकारी एजेंसियों से चर्चा किए बगैर ये रैंकिंग दी गई.