कांग्रेस, टीएमसी, वामपंथी दलों, राजद, एनसीपी और बसपा ने तर्क दिया कि संविधान नागरिकों को उनके धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है. राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने कहा कि बाधा हिजाब नहीं है बल्कि इसका विरोध कर रहे लोगों की मानसिकता है.
नई दिल्लीः विपक्षी दलों ने कर्नाटक के कॉलेजों में हिजाब पहनी छात्राओं को प्रवेश नहीं देने की आलोचना करते हुए शनिवार को धार्मिक पोशाक पहनने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और समानता का अधिकार इन तीन सिद्धांतों का आह्वान किया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी पार्टियां, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), एनसीपी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने तर्क दिया कि संविधान नागरिकों को उनके धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है.
पहली बार इस मुद्दे पर बोलते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, ‘छात्राओं के हिजाब को उनकी शिक्षा के रास्ते में आने देने से हम देश की बेटियों का भविष्य उनसे छीन रहे हैं. मां सरस्वती सभी को ज्ञान देती है. वह अंतर नही करती.’
राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ‘छात्राएं दशकों से हेडस्कार्फ पहनकर स्कूल रही हैं. किसी ने पहले कोई आपत्ति नहीं जताई. अब वे इसका विरोध क्यों कर रहे हैं? वे ध्यान भटकाने के लिए ऐसा कर रहे हैं. रोजगार नहीं है, वे महंगाई पर लगाम नहीं लगा पा रहे. वे उडुपी और मैंगलोर जैसे इलाकों का इस्तेमाल प्रयोग के तौर पर कर रहे हैं. अगर यह सफल होता है तो वे राज्य में अन्य जगहों पर भी इसे दोहरा सकते हैं.’
माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, ‘अदालतें इससे निपट रही हैं. लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए. यह हमारा रुख है.’
राजद के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने संविधान का हवाला देते हुए कहा, ‘हिजाब कोई बाधा नहीं है बल्कि बाधा इसका विरोध कर रहे लोगों की मानसिकता में है.’
उन्होंने कहा, ‘मैं एक विश्वविद्यालय में पढ़ाता हूं, बीते कई सालों से मेरी कई छात्राएं ऐसी रहीं, जो हिजाब पहनती हैं. मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ कि मुझे इसे लेकर कोई चिंता करनी चाहिए. हमें यह देखना चाहिए कि संविधान विशेष रूप से अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार) इसके बारे में क्या कहता है. क्या हमने अब हर उस विचार को त्यागने का फैसला कर लिया है, जो इस देश को प्रिय है क्योंकि आप ध्यान भटकाने के लिए हर दिन लोगों और समुदायों के बीच नई बाधा पैदा करना चाहते हैं.’
तृणमूल कांग्रेस की सांसद सुष्मिता देव ने कहा, ‘जहां तक देश के व्यक्तिगत कानून, रीति-रिवाज और परंपराओं का सवाल है, लोगों को कोई नहीं बता सकता कि क्या करें और क्या पहनें? यह उनकी संस्कृति और रिवाजों का हिस्सा है. आपको इसका सम्मान करना चाहिए.’
बसपा के लोकसभा सांसद कुंवर दानिश अली ने कहा कि हिजाब पहनी छात्राओं को रोकने का यह कदम मोदी सरकार के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना को कमजोर करता है.
उन्होंने कहा, ‘एक देश के रूप में हम उन लोगों के एक बड़े वर्ग की मानसिकता को बदलने की कड़ी मेहनत कर रहे हैं, जो लड़कियों की शिक्षा को दूसरी प्राथमिकता मानते हैं. यह तथ्य है कि दलितों, आदिवासियों विशेष रूप से मुस्लिमों सहित कई समुदायों में लड़कियों की शिक्षा अभी भी शीर्ष प्राथमिकता नहीं है.’
एनसीपी सांसद माजिद मेनन ने कहा, ‘इस कदम का मकसद दो अलग-अलग समुदायों के छात्रों के बीच दरार पैदा करना है जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है.’
उन्होंने कहा, ‘कोविड-19 से प्रभावित शिक्षा के फिर से बहाल होने पर लड़कियों को हिजाब के मुद्दे पर दोबारा मुसीबत खड़ी नहीं करनी चाहिए. जब तक सरकारी समिति कोई फैसला नहीं लेती, यह सही रहेगा कि प्रशासन इन छात्राओं को कक्षा में प्रवेश करने दें. हालांकि, मुस्लिम लड़कियों और उनके परिजनों को स्कूली यूनिफॉर्म के नियमों का पालन करना चाहिए.’
हालांकि, इस मामले पर शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी की राय कुछ अलग है. उनका कहना है कि स्कूल शिक्षा का स्थान है और छात्रों को सिर्फ छात्र रहना चाहिए न कि किसी धर्म के ब्रांड एंबेसडर.
चतुर्वेदी ने बताया,’ जब हम स्कूल में थे. स्कूल की वर्दी सभी धर्मों से परे थी. अगर कोई स्कूल नियम बना रहा है तो हमारे नेता और धार्मिक नेता उसमें शामिल क्यों हो रहे हैं और इसे धर्म से जुड़ा मुद्दा क्यों बना रहे हैं. जैसे, किसी क्लब में प्रवेश के लिए अगर आपको सैंडल पहनने की इजाजत नहीं है तो आप उन नियमों का पालन करोगे. स्कूल शिक्षा का स्थान है और हर स्कूल यूनिफॉर्म के नियमों का पालन करता है.’
उन्होंने कहा, ‘महाराष्ट्र में हमारे पास एक समान यूनिफॉर्म थी, कैनवास स्कूल बैग, कैनवस के जूते, गुथी हुई चोटियां. हम छात्रों की तरह स्कूल जाते थे. हम धार्मिक एबेंसडर की तरह स्कूल नहीं गए.’
उन्होंने कहा, ‘बेशक लोकतंत्र आपको चुनने की स्वतंत्रता देता है. स्कूल के बाद आप जो पहनना चाहें, पहन सकते हैं. अगर आप धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की बात करते हैं तो एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को नियमों और मानदंडों का पालन करना होगा.’
बता दें कि बीते जनवरी माह में कर्नाटक में उडुपी ज़िले के एक कॉलेज में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने का विरोध करने का मामला सामने आने के बाद ऐसी ही दो घटनाएं इसी ज़िले के कुंडापुर में हुई हैं.
इन दोनों कॉलेजों में भी हिजाब पहनकर आने वाली छात्राओं को प्रवेश नहीं करने दिया गया है.