भारत में लॉकडाउन ने छोटे व्यवसायों को भारी नुकसान पहुंचाया: सरकारी अध्ययन

लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री नारायण राणे ने बताया कि उनके मंत्रालय द्वारा कराए गए एक अध्ययन में सामने आया है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान 67 फीसदी एमएसएमई तीन महीने से अस्थायी तौर पर बंद थे और 50 फीसदी से अधिक इकाइयों ने अपने राजस्व में 25 फीसदी से अधिक की गिरावट का सामना किया.

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(फोटो: रॉयटर्स)

लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री नारायण राणे ने बताया कि उनके मंत्रालय द्वारा कराए गए एक अध्ययन में सामने आया है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान 67 फीसदी एमएसएमई तीन महीने से अस्थायी तौर पर बंद थे और 50 फीसदी से अधिक इकाइयों ने अपने राजस्व में 25 फीसदी से अधिक की गिरावट का सामना किया.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

ऩई दिल्ली: वर्षों से अर्थशास्त्रियों का एक खास वर्ग कह रहा है और हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि भारत में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) जगत ने नरेंद्र मोदी सरकार की कई गलत नीतियों के कारण व्यापक नुकसान उठाया है.

जिन नीतियों को उन्होंने गलत बताया है, वे नोटबंदी, जीएसटी और कोविड-19 लॉकडाउन रहीं. अब इस बात के प्रमाण भी सामने आए हैं कि महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन ने एमएसएमई क्षेत्र को चौपट कर दिया.

रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा सरकार के लिए शर्म की बात यह है कि यह डेटा किसी तीसरे पक्ष द्वारा जारी नहीं किया गया है बल्कि एमएसएमई मंत्रालय के आदेश पर किए गए एक अध्ययन में सामने आया है.

फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक, बीते सप्ताह गुरुवार को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में एमएसएमई मंत्री नारायण राणे ने अध्ययन संबंधी डेटा साझा किया.

भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) द्वारा किए गए इस अध्ययन में 20 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में फैले 1,029 एमएसएमई को नमूनों के तौर पर शामिल किया गया था.

सिडबी को इस क्षेत्र में एमएसएमई वर्गीकरण में बदलाव के प्रभाव का आकलन करने का निर्देश दिया गया था. अध्ययन में अन्य बातों के साथ-साथ कोविड-19 महामारी के कारण एमएसएमई सेक्टर को हुए नुकसान का आकलन भी शामिल था.

27 जनवरी 2022 को प्रस्तुत अध्ययन की रिपोर्ट से पता चलता है कि अध्ययन में जवाब देने वाले 67% एमएसएमई वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान तीन महीने से अस्थायी रूप से बंद थे और 50% से अधिक इकाइयों ने अपने राजस्व में 25% से अधिक की गिरावट का सामना किया. करीब 66% उत्तरदाताओं ने बताया कि उनके राजस्व और लाभ में गिरावट आई है.

यह सभी बातें एमएसएमई मंत्री ने लोकसभा में बताई हैं.

एमएसएमई क्षेत्र में लॉकडाउन के कारण हुए नुकसान की गंभीरता का आकलन इस बात से लगाया जा सकता है कि बड़ी संख्या में एमएसएमई को सरकार की आपातकालीन ऋण योजना का सहारा लेना पड़ा.

अध्ययन से पता चलता है कि सर्वे में शामिल करीब 65% एमएसएमई ने आपातकालीन ऋण गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) के तहत लाभ उठाया है और करीब 36% ने भी सूक्ष्म और लघु उद्यम ऋण गारंटी फंड ट्रस्ट (सीजीटीएमएसई)  के तहत ऋण प्राप्त किया है.

बता दें कि एमएसएमई सेक्टर के लिए कठिन दौर की शुरुआत तब हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को अचानक ही नोटबंदी की घोषणा कर दी. इसने अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख दिया और लाखों लघु और संकटग्रस्त एमएसएमई को कारोबार से बाहर कर दिया.

नोटबंदी ने असंगठित क्षेत्र को एक बड़ा झटका देते हुए करीब तीन करोड़ लोगों को बेरोजगार कर दिया था, जो भारत में एमएसएमई का एक बड़ा हिस्सा थे.

इसके बाद असफल तरीके से जीएसटी को लागू किया गया. जिसने अनौपचारिक या असंगठित क्षेत्र को बर्बाद कर दिया और सरकार की ओर से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली. इसके बाद जब सोचा गया कि चीजें और खराब नहीं हो सकतीं, तो कोरोना महामारी आ गई और राष्ट्रीय लॉकडाउन लग गया.

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