मणिपुर सशस्त्र समूह ने म्यांमार के सैन्य जुंटा शासन से हाथ मिलायाः रिपोर्ट

म्यांमार के चिन नेशनल फ्रंट के प्रवक्ता ने बताया कि उनके आंदोलन को कुचलने के लिए मणिपुर के सशस्त्र समूह जोमी रिवोल्यूशनरी संगठन/जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी ने म्यांमार के जुंटा सैन्य शासन से हाथ मिलाया है. म्यांमार के सीमाई इलाकों में सक्रिय मणिपुर के कुछ मेईतेई समूहों पर भी जुंटा के साथ होने का आरोप लगा है.

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मिजोरम के सीमाई जिले चम्पाई के एक गांव में टीओ नदी पार करते लोग. (फोटो: रॉयटर्स)

म्यांमार के चिन नेशनल फ्रंट के प्रवक्ता ने बताया कि उनके आंदोलन को कुचलने के लिए मणिपुर के सशस्त्र समूह जोमी रिवोल्यूशनरी संगठन/जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी ने म्यांमार के जुंटा सैन्य शासन से हाथ मिलाया है. म्यांमार के सीमाई इलाकों में सक्रिय मणिपुर के कुछ मेईतेई समूहों पर भी जुंटा के साथ होने का आरोप लगा है.

मिजोरम के सीमाई जिले चम्पाई के एक गांव में टीओ नदी पार करते लोग. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्लीः म्यांमार के चिन स्टेट के एथनिक राजनीतिक संगठन चिन नेशनल फ्रंट (सीएनएफ), जो देश के सैन्य शासन के खिलाफ खड़े लोकतंत्र समर्थक पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) की मदद कर रहा है, ने मणिपुर स्थित सशस्त्र समूह जोमी रिवोल्यूशनरी संगठन (जेडआरओ)/जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (जेडआरए) पर उनके आंदोलन को कुचलने के लिए म्यांमार के जुंटा सैन्य शासन के साथ हाथ मिलाने का आरोप लगाया है.

रिपोर्ट के अनुसार, यह पूर्वोत्तर सशस्त्र समूह शांति समझौते पर पहुंचने के लिए 2017 से ही नरेंद्र मोदी सरकार के साथ औपचारिक बातचीत का हिस्सा है.

सीएनएफ के प्रवक्ता सलात हेतेत नी ने द इरावडी को दिए साक्षात्कार के दौरान यह आरोप लगाए. सलात ने म्यांमार के सीमावर्ती इलाकों में सक्रिय मणिपुर के कुछ मेईतेई समूहों पर भी जुंटा  साथ होने का आरोप लगाया है.

यह पूछे जाने पर कि क्या म्यांमार का जुंटा सैन्य शासन चिन स्टेट में प्रतिरोधी समूहों को कुचलने के लिए पूर्वोत्तर भारत से अलगाववादी समूहों को एकजुट कर रहा है, पर सीएनएफ प्रवक्ता ने कहा, ‘हां, यह सच है. इससे पहले भारत की सीमा से सटे सागिंग क्षेत्र में केल और तामू कस्बों में भी ऐसा ही किया गया.’

सीएनएफ विशेष रूप से चिन स्टेट के टेडिम टाउनशिप में जेडआरओ/जेडआरए पर म्यांमार के जुंटा की मदद करने का आरोप लगा रहा है.

म्यांमार में फरवरी 2021 में तख्तापलट के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में पीडीएफ के संयुक्त बलों, विभिन्न एथनिक समूहों और जुंटा के बीच भयंकर झड़प शुरू हुई. लगातार चल रहे इस संघर्ष के बीच हजारों लोगों को अपना घर छोड़कर जाना पड़ा. चिन स्टेट के हजारों प्रभावित परिवारों को शरण लेने के लिए मिजोरम जाना पड़ा.

पूर्वोत्तर भारतीय सशस्त्र समूह जेडआरओ/जेडआरए अगस्त 2017 में मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई बातचीत के बाद से यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (यूपीएफ) और कुकी नेशनल ऑर्गेनाइनेशन (केएनओ) का हिस्सा है.

यह समूह मणिपुर के चूड़ाचांदपुर जिले में सक्रिय है, जो म्यांमार की सीमा से लगा है.

द इरावडी की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय सशस्त्र समूह दरअसल जुंटा के साथ समझौता होने के बाद टेडिम टाउनशिप में पीडीएफ के संयुक्त बलों के साथ संघर्ष में शामिल रहा है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि लेकिन जेडआरए ने किसी भी सेना या तानाशाही सरकार के साथ काम करने से इनकार कर दिया है.

ध्यान दें कि चिन स्टेट में चिन स्टेट के लोगों की एथनिकता न सिर्फ मिजोरम के मिजो लोगों के समान है बल्कि चूड़ाचांदपुर की जोमी आबादी जैसी भी है.

जेडआरए/जेडआरओ की मांग है कि या तो मणिपुर से अलग किए गए जोमी लोगों के लिए अलग से राज्य दिया जाए या असम के बोडो क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) की तर्ज पर स्वायत्त जिला परिषद बने.

सीएनएफ के प्रवक्ता ने मणिपुर के उस क्षेत्र और टेडिम के लोगों के बीच गाढ़े हो रहे संबंधों का हवाला देते हुए यह दावा किया कि यह समूह इस क्षेत्र में ‘पूर्वी जेडआरओ’ के तौर पर उनके लिए तेजी से एक चुनौती बनता जा रहा है.

सलाई हेतेत नी ने कहा, ‘जेडआरओ/जेडआरए का भारत सरकार के साथ संघर्षविराम समझौता हुआ है और यह भारत में सक्रिय है. यह म्यांमार में भी सक्रिय है, जहां इन्हें पूर्वी जेडआरओ कहा जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘जोमी जनजाति टेडिम और भारत में रहती है. म्यांमार में पूर्वी जेडआरओ के रूप में काम करते हुए इन्होंने हमेशा हमें हमारे गढ़ों से पीछे हटने की धमकी दी है. हमने उनके साथ कुछ भी नहीं किया लेकिन जब हम टेडिम में स्थानीय प्रतिरोध समूहों के साथ निकासी अभियान शुरू करते हैं, हमारा उनसे सामना होता है, जिसकी वजह से झड़प हो जाती है. बीते जनवरी महीने में ऐसा ही हुआ था.’

उन्होंने दावा किया कि यह संगठन 1995 से टेडिम से पीछे हटने के लिए धमकी दे रहा है.

उन्होंने कहा, ‘उस समय वे म्यांमार की तरफ सीमा पर नहीं थे. हमने पूर्ववर्ती सैन्य जुंटा के साथ हुए समझौते के बाद टेडिम को हमारा गढ़ बनाया.’

सीएनएफ प्रवक्ता ने द इरावडी को बताया, ‘जेडआरओ/जेडआरए 2020 और 2021 में अधिक सक्रिय हो गए हैं. इन्होंने हमारे कुछ सैनिकों को अगवा कर उन्हें हिरासत में ले लिया और उन्हें टेडिम में नहीं रहने को कहा.’

उन्होंने कहा, ‘इस तरह की गतिविधियों की वजह से सीएनएफ और पीडीएफ को हमारे क्षेत्र और हमारे सैनिकों की रक्षा के लिए निकासी अभियानों का नेतृत्व करने का मौका दिया.’

रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्वी जेडआरओ ने बीते 16 जनवरी को एक बटालियन का गठन किया था.

उन्होंने कहा, ‘जेडआरए के साथ हमारे संघर्ष का एक कारण यह है कि संघर्ष से पहले हमें यह पता चला कि ये टेडिम में म्यांमार की सैन्य इकाइयों का अक्सर दौरा करते हैं. इन्होंने हमारे सीएनएफ ऑफिस पर दो हमले किए. यह ऑफिस पूर्ववर्ती सैन्य जुंटा के साथ हुए राष्ट्रव्यापी संघर्षविराम समझौते के बाद खोला गया था.’

यह पूछने पर कि क्या सीएनएफ मतभेदों को सुलझाने के लिए जेडआरओ/जेडआरए के साथ वार्ता करेगा, उन्होंने कहा, ‘यह उनके रुख पर निर्भर करता है लेकिन उनके साथ बातचीत करना बहुत मुश्किल होगा क्योंकि उनका सैन्य जुंटा के साथ समझौता हुआ है.’

उन्होंने कहा, ‘हमारी मौजूदा स्थिति में उनके साथ वार्ता की कोई योजना नहीं है लेकिन अगर इन झड़पों से लोगों का नुकसान होगा तो हमें दुख होगा. हम लोगों के साथ खड़ा होने की पूरी कोशिश करेंगे.’

द वायर  ने इन आरोपों पर टिप्पणी के लिए भारत सरकार के साथ बातचीत की प्रक्रिया में शामिल मणिपुर के जेडआरओ/जेडआरए से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. यदि कोई प्रतिक्रिया आती है तो उसे रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा.

इस बीच सीएनएफ के प्रवक्ता ने यह भी बताया कि उनकी सेना की जनवरी के मध्य में चिन स्टेट में टोंजांग टाउनशिप में मणिपुर के अन्य सशस्त्र समूहों के साथ भिड़ंत क्यों हुई थी.

उन्होंने कहा, ‘हम हमारी जमीन पर अफीम की खेती कर रहे विदेशी सशस्त्र समूहों को स्वीकार नहीं करेंगे. इसे रोकना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है. कुछ समूह सैन्य जुंटा से समझौता होने के बाद नशीला कारोबार कर रहे हैं. यह झड़प तब हुई जब हमने वहां सुरक्षा अभियान चलाया.’

म्यांमार में मणिपुर के मेईतेई समुदाय के सशस्त्र समूह सक्रिय हैं. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) जैसे संगठन भारत में प्रतिबंधित है.

नवंबर 2021 में पीएलए चूड़ाचांदपुर जिले में सेना के काफिले पर घात लगाकर किए गए हमले में शामिल था, जिसमें 46 असम राइफल्स के एक कमांडिंग अधिकारी, उनकी पत्नी और उनके छह साल के बेटे के अलावा चार अन्य सुरक्षाकर्मियों की भी मौत हो गई थी.

सीएनएफ प्रवक्ता ने कहा, ‘हम सीएनएफ और स्थानीय प्रतिरोधी समूह मिलकर काम करेंगे और इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए पूरी कोशिश करेंगे.’

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