‘हाउ इंडियंस व्यू जेंडर रोल्स इन फैमिलीज़ एंड सोसाइटी’ नाम की इस रिपोर्ट को नवंबर 2019 और मार्च 2020 के बीच 29,999 भारतीय वयस्कों पर किए गए सर्वेक्षण के बाद प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा तैयार किया गया है. इसके अनुसार भारतीय राजनीतिक नेतृत्व में महिलाओं को देखने के इच्छुक हैं लेकिन घर और रोज़गार में लैंगिक असमानता का रवैया दिखाई देता है.
नई दिल्लीः प्यू रिसर्च सेंटर की एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय लोग राजनीति में महिलाओं को नेतृत्व की भूमिका निभाते हुए देखने के इच्छुक हैं लेकिन जब बात घर या रोजगार में नेतृत्व की आती है तो लैंगिक भेदभाव साफ दिखाई देता है.
इस रिपोर्ट का शीर्षक ‘हाउ इंडियंस व्यू जेंडर रोल्स इन फैमिलीज एंड सोसाइटी’ है. इस रिपोर्ट को नवंबर 2019 और मार्च 2020 के बीच 29,999 भारतीय वयस्कों पर किए गए सर्वेक्षण के बाद प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा तैयार किया गया है.
इस रिपोर्ट में देश के विभिन्न समूहों में लैंगिक भेदभाव की धारणा में सूक्ष्म बदलावों का पता चलता है. रिपोर्ट में महिलाओं के प्रति भारतीयों के नजरिये और अन्य देशों में लैंगिक समानता की तुलना की गई है.
सर्वेक्षण से पता चलता है कि लैंगिक दृष्टिकोण को आकार देने में शिक्षा और धर्म का प्रभाव है. अधिक आश्चर्यजनक यह है कि भारतीय पुरुष और महिलाओं और विभिन्न उम्र के वयस्कों के बीच लैंगिक व्यवहार में मामूली अतंर है, फिर भले ही विचार कितने ही प्रगतिशील या प्रतिगामी क्यों ना हो. इसके साथ ही क्षेत्रीय अंतर भी कम ही हैं.
अधिकतर भारतीयों का कहना है कि महिलाएं और पुरुष समान रूप से अच्छे नेता हो सकते हैं जबकि दस में से एक से अधिक लोगों का कहना है कि महिलाएं, पुरुषों की तुलना में कहीं बेहतर नेता बन सकती हैं लेकिन घर के मामले में चीजें बदल जाती हैं.
हालांकि, कई भारतीयों ने घर में कुछ लैंगिक भूमिकाओं में समानतावादी विचार रखे. 62 फीसदी वयस्कों का कहना है कि बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी महिलाओं और पुरुषों दोनों की होनी चाहिए.
एक तिहाई से अधिक वयस्कों (34 फीसदी) का मानना है कि बच्चों की देखभाल मुख्य रूप से महिलाओं को ही करना चाहिए.
‘पत्नियों को पति की बात माननी चाहिए’
लगभग 87 फीसदी लोग पूर्ण रूप से या अधिकतर इस धारणा से सहमत हैं कि पत्नी को अपनी पति की बात हमेशा माननी चाहिए. इस धारणा को मानने वाले पुरुषों (67 फीसदी) की संख्या महिलाओं (61 फीसदी) से थोड़ी ही अधिक है.
देश के अधिकांश प्रमुख धार्मिक समूहों में किए गए सर्वेक्षण में शामिल आधे वयस्कों का कहना है कि सभी या अधिकतर मामलों में गर्भपात अवैध होना चाहिए. हालांकि, गैर धार्मिक और दक्षिणी राज्यों के लोगों ने यह बात कहने के इच्छुक नहीं दिखे.
इसके उलट कई भारतीयों ने कुछ परिस्थितियों में लैंगिक गर्भपात को स्वीकार्य माना है. दस में से चार भारतीयों का कहना है कि या तो यह पूरी तरह से स्वीकार्य हो या कुछ हद तक स्वीकार्य हो.
रिपोर्ट में कहा गया कि 54 फीसदी लोगों का कहना है कि परिवारों में पुरुष और महिलाएं दोनों को पैसे कमाने चाहिए लेकिन 43 फीसदी का मानना है कि यह मुख्य रूप से पुरुषों का दायित्व है.
भारतीय वयस्कों का मानना है कि अगर नौकरियों का अभाव है तो ऐसे में महिलाओं की तुलना में पुरुषों को नौकरियां मिलनी चाहिए. 56 फीसदी लोग इस बात से पूरी तरह से सहमत से थे, वहीं सर्वे में शामिल हर दस में से आठ इससे कुछ हद तक सहमत दिखे.
लगभग सभी भारतीयों का कहना है कि किसी भी परिवार के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि परिवार में कम से कम एक बेटा (94 फीसदी) और कम से कम एक बेटी (90 फीसदी) हो.
अधिकतर भारतीयों का कहना है कि बेटों और बेटियों दोनों का माता-पिता (64 फीसदी) की विरासत पर समान अधिकार होना चाहिए और उम्रदराज मां-बाप (58 फीसदी) की देखभाल करने की जिम्मेदारी होनी चाहिए.
रिपोर्ट कहती है, ‘लेकिन सर्वेक्षण में शामिल लोगों ने कहा कि इन क्षेत्रों में बेटियों की तुलना में बेटों की जिम्मेदारी अधिक होनी चाहिए और मां-बाप के अंतिम संस्कार में भी बेटियों की तुलना में बेटों की जिम्मेदारी अधिक होनी चाहिए.’
रिपोर्ट में कहा गया, ‘अन्य शब्दों में भारतीय महिलाएं बेटों को वरीयता देने और लैंगिक भूमिकाओं को लेकर समतावादी विचार व्यक्त करने को लेकर भारतीय पुरुषों की तुलना में अधिक मुखर नहीं है और ऐसा ही युवा भारतीय वयस्कों (18 से 34 वर्ष) के मामले में भी है.’
मणिपुर, सिक्किम, अंडमान एवं निकोबार द्वीप और लक्षद्वीप को छोड़कर सर्वे में देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल किया गया है.
रिपोर्ट में तमिलनाडु, तेलंगाना जैसे क्षेत्रों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि देश के अन्य हिस्सों की तुलना में दक्षिणी राज्यों की महिलाओं के औसतन सामाजिक-आर्थिक परिणाम बेहतर हैं लेकिन उनकी लैंगिक भूमिकाएं अधिक समतावादी नहीं हैं.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘तमिल लोग कम ही कहते हैं कि पत्नी को हमेशा पति की बात माननी चाहिए लेकिन राज्य (तमिलनाडु) में ऐसे लोगों की संख्या अधिक हैं जो कहते हैं कि बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी मुख्य रूप से महिलाओं की हैं.’
यह रिपोर्ट उस पैटर्न का समर्थन करती है, जिसमें कहा जाता है कि मुस्लिम परंपरागत लैंगिक भूमिकाओं का अधिक समर्थन करते हैं जबकि सिखों में ऐसा बहुत कम देखा जाता है.
भेदभाव और हिंसा की धारणा
सिर्फ 23 फीसदी भारतीयों का कहना है कि ‘देश में महिलाओं के खिलाफ काफी भेदभाव’ है और 16 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उन्हें व्यक्तिगत तौर पर भेदभाव का सामना करना पड़ा.
सर्वेक्षण में शामिल भारतीयों का प्रतिशत, जो यह कहते हैं कि देश में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव हैं, उनकी संख्या उस आबादी से थोड़ी-सी अधिक है, जो यह मानती है कि कुछ धार्मिक समूहों और निचली जातियों को भेदभाव को अधिक सामना करना पड़ता है.
रिपोर्ट में कहा गया, अधिकतर लोगों (76 फीसदी) का मानना है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा बड़ी समस्या है जबकि 65 फीसदी का मानना है कि सांप्रदायिक हिंसा बहुत बड़ी समस्या है.
सर्वेक्षण में यह पूछा गया कि इन दो में से कौन-सा विकल्प महिलाओं की सुरक्षा में सुधार के लिए अधिक महत्वपूर्ण है- लड़कों को सभी महिलाओं का सम्मान करना सिखाना या लड़कियों को उचित तरह से व्यवहार करना सिखाना .
इनमें से आधे भारतीयों का कहना है कि लड़कों को सभी महिलाओं का सम्मान करना सिखाना अधिक महत्वपूर्ण हैं जबकि एक चौथाई भारतीयों ने दूसरे विकल्प को चुना.
वैश्विक तुलना
रिपोर्ट में कहा गया कि 92 फीसदी उत्तरी अमेरिकियों, 90 फीसदी पश्चिमी यूरोपीय लोगों और 82 फीसदी लैटिन अमेरिकी लोगों की तुलना में 72 फीसदी भारतीय ही महिलाओं और पुरुषों के लिए समान अधिकार को महत्व देते हैं.
हालांकि, उप सहारा अफ्रीका (48 फीसदी) और पश्चिमी एशिया उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र (44 फीसदी) की तुलना में भारत का यह आंकड़ा बेहतर है.
भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान में 64 फीसदी लोग ही पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार का हकदार मानते हैं. वहीं, स्वीडन में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने का समर्थन करने वालों की संख्या सर्वाधिक 96 फीसदी है.
जहां रोजगार का सवाल आता है, वहां 2013 से 2019 के बीच 61 देशों में सर्वे किया गया, जिनमें से 17 फीसदी पूर्ण रूप से सहमत हैं कि रोजगार के अभाव की स्थिति में महिलाओं की तुलना में पुरुषों के पास नौकरी के लिए अधिक अधिकार होने चाहिए.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)